विचार / लेख
-कृष्ण कांत
बिहार में अब तक कोरोना से 96 डॉक्टरों की मौत हो चुकी है। पहली लहर में यहां 50 डॉक्टरों की मौत हुई थी। दूसरी लहर में अब तक 46 डॉक्टर जान गवां चुके हैं। देश भर का यही हाल है। सरकारों द्वारा लाई गई इस त्रासदी में डॉक्टर भी दयनीय स्थितियों में जान गवां रहे हैं।
बिहार के मधुबनी सदर अस्पताल की एक नर्स की कोरोना से मौत हो गई। नालंदा की रहने वाली नर्स 7 माह की गर्भवती थी और ड्यूटी के दौरान उसे कोरोना हो गया था और उसकी हालात बेहद खराब हो गई थी। नाजुक हालात में उन्हें डीएमएसएच रेफर कर दिया गया लेकिन ऑक्सीजन सिलेंडर और बेड न मिलने के कारण उसकी मौत हो गई। इस घटना से दुखी सदर अस्पताल के डॉक्टर और नर्स हड़ताल पर चले गए। उनकी मांग है कि कोविड केयर सेंटर और अस्पतालों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कराए जाएं। पानी, ग्लब्स, और कोरोना काल में में ड्यूटी भत्ता दिया जाए, तभी वे काम पर लौटेंगे।
साल भर में ये निकम्मी सरकारें ग्लब्स और ऑक्सीजन जैसी मामूली व्यवस्था नहीं कर पाई हैं और नेता भाषणबाजी करते हैं कि वे भारत को दुनिया का सिरमौर बना देंगे।
इलाहाबाद के नामी डॉक्टर जेके मिश्रा जिस स्वरूपरानी अस्पताल में पांच दशक तक लोगों का इलाज किया, जिनके पढ़ाए हुए तमाम छात्र उसी अस्पताल में डॉक्टर हैं, उन्हें कोरोना हुआ तो देखभाल के लिए कोई डॉक्टर तक नहीं मिला। उनकी डॉ. पत्नी रमा मिश्रा के हिस्से आया ये दुख ज्यादा बड़ा है कि न उनके छात्र उनके काम आए, न ही मैं एक डॉक्टर के तौर पर उनकी जान बचा सकी। उनके सामने ही उनके पति ने दम तोड़ दिया।
डॉ रमा मिश्रा बताती हैं, ‘पॉजिटिव आने के बाद हम लोग होम क्वारंटीन में ही थे। उनका ऑक्सीजन लेवल कम था। डॉक्टरों ने ही सलाह दी कि अस्पताल में भर्ती करा दीजिए। बेड की बहुत किल्लत थी। बेड का तो इंतजाम कर दिया, लेकिन उसके बाद के जो हालात थे, वो बेहद डरावने थे। अस्पताल के कोविड वॉर्ड में सिर्फ एक ही बेड मिल सका। उस रात मैं फर्श पर ही पड़ी रही। अगले दिन बेड मिला। वहां रात में हमने जो देखा, वो बेहद डरावना था। रात भर मरीज चिल्लाते रहते थे। कोई उन्हें देखने वाला नहीं था। बीच-बीच में जब नर्स या डॉक्टर आते थे, तो डांटकर चुप करा देते थे या कोई इंजेक्शन दे देते थे। उनमें से कई लोग सुबह सफेद कपड़े में लपेटकर बाहर कर दिए जाते थे, यानी उनकी मौत हो चुकी होती थी।’
पटना के पुनपुन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉक्टर अमीरचंद प्रसाद ने 23 तारीख को बेटी की शादी की थी। फिर कोरोना संक्रमित हो गए। रविवार की रात पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में उनका निधन हो गया।
दिल्ली के मैक्स अस्पताल के डॉक्टर विवेक ने कुछ दिन पहले ही आत्महत्या कर ली। हाल ही में उनकी शादी हुई थी। पत्नी दो महीने के गर्भ से है। बताया गया कि डॉ विवेक आईसीयू में तैनात थे, वहां लगातार मरीजों की मौत हो रही थी। डॉ. विवेक इससे बहुत परेशान थे।
कोई डॉक्टर सिर्फ भगवान नहीं होता। ऐसा तो डॉक्टरों के सम्मान में बोला जाता है। डॉक्टर भी हमारी तरह इंसान हैं। उनका भी अपना परिवार होता है। वे भी नागरिक होते हैं। उसकी भी जान वैसी ही होती है जैसी किसी दूसरे व्यक्ति की। लेकिन एक डॉक्टर तमाम लोगों की जान बचा सकता है, इसलिए वह ज्यादा खास है।
डॉक्टर लोगों की जान बचाते हैं। डॉक्टर की जान कौन बचाए? जान बचाने के लिए दवा चाहिए, ऑक्सीजन चाहिए। इन्हीं चीजों की कमी से डॉक्टर लोगों की जान नहीं बचा पा रहे हैं। इन्हीं चीजों की कमी से डॉक्टर अपने साथियों की जान नहीं बचा पा रहे हैं।
यह विचित्र देश है। हमारा लोकतंत्र ठगों, चोरों, लुटेरों, बहुरुपियों और जल्लादों का स्वर्ग है। दो सवा दो लाख मौतों के बाद भी किसी की जवाबदेही तय नहीं हो पा रही है। कोई नहीं पूछ रहा है कि अस्पताल के डॉक्टर एक साल बाद भी दस्ताने और मास्क के लिए हड़ताल क्यों कर रहे हैं? इसका जिम्मेदार कौन है?
गोदी मीडिया के कब्र पर लेटकर भी नेताओं का भजन करने से ज्यादा कुछ नहीं कर सकते! लेकिन आप नागरिक हैं। ये देश आपका है। आपको राजनीति नहीं करनी है। व्यवस्था सबसे पहले जान आपकी ही लेती है। आप सवाल क्यों नहीं पूछते?