सामान्य ज्ञान
वायरल हैपेटाइटिस या जोन्डिस को साधारण पीलिया के नाम से जाना जाता है। यह रोग बहुत ही सूक्ष्म विषाणु(वाइरस) से होता है। शुरू में जब रोग धीमी गति से और मामूली होता है तब इसके लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं,लेकिन जब यह उग्र रूप धारण कर लेता है तो रोगी की आंखे और नाखून पीले दिखाई देने लगते हैं ।
जिन वाइरस से यह होता है उसके आधार पर मुख्यत: पीलिया तीन प्रकार का होता है वायरल हैपेटाइटिस ए, वायरल हैपेटाइटिस बी तथा वायरल हैपेटाइटिस नान ए व नान बी। यह रोग ज्यादातर ऐसे स्थानो पर होता है जहां के लोग व्यक्तिगत और वातावरणीय सफाई पर कम ध्यान देते हैं । वायरल हैपटाइटिस बी किसी भी मौसम में हो सकता है। वायरल हैपटाइटिस ए तथा नाए व नान बी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के नजदीकी सम्पर्क से होता है। ये वायरस रोगी के मल में होते हैं। पीलिया रोग से पीडि़त व्यक्ति के मल से, दूषित जल, दूध अथवा भोजन द्वारा इसका प्रसार होता है। ऐसा हो सकता है कि कुछ रोगियों की आंख, नाखून या शरीर आदि पीले नही दिख रहे हों परन्तु यदि वे इस रोग से ग्रस्त हों, तो अन्य रोगियों की तरह ही रोग को फैला सकते हैं। वायरल हैपटाइटिस बी खून और यौन क्रिया द्वारा फैलता है। बिना उबाली सुई और सिरेंज से इन्जेक्शन लगाने पर भी यह रोग फैल सकता है। पीलिया रोग से ग्रस्त व्यक्ति वायरस, निरोग मनुष्य के शरीर में प्रत्यक्ष रूप से अंगुलियों से और अप्रत्यक्ष रूप से रोगी के मल से या मक्खियों द्वारा पहुंच जाते हैं। इससे स्वस्थ मनुष्य भी रोग ग्रस्त हो जाता है।
नील नदी
नील अफ्रीका से बहने वाली एक नदी है। यह विश्व की सबसे लम्बी नदी (6 हजार 650 किमी) है। इस नदी के बारे में कथा है कि मिस्त्र के राजा (फ़ैरो) के आदेश से नवजात यहूदी लडक़ों का कत्लेआम हुआ, जिससे मूसा की मां ने मूसा को नील नदी में बहा दिया था। रानी ने मूसा को पाला। बाद में रैमसी से मूसा का विवाद हुआ और मूसा के श्राप से नील नदी का पानी रक्त बन गया। महान कृति पिरामिडों के लिए पत्थर नील नदी के रास्ते ही लाया गया था।
मिस्त्र की भाषा में नील को इतेरु कहते हैं जिसका अर्थ है महान नदी। नील नदी के दो हिस्से हैं, सफेद नील नदी और नीली नील नदी। नील नदी के साथ अनेक इतिहास और पौराणिक कथाऐं जुड़ी हुई हैं।