सामान्य ज्ञान
गुर्दे की पथरियां तब बनती हैं जब पेशाब में मौजूद लवण और खनिज, गुर्दे के भीतर ठोस कणों का रूप ले लेते हैं। आमतौर पर ये पेशाब के साथ बाहर निकल जाते हैं , लेकिन कई बार ये बढऩे लगते हैं।
कभी कभी ये गुर्दे से निकलकर पेशाब की थैली को जोडऩे वाली नली जिसे यूरेटर कहते हैं उसमें अटक जाते हैं। इनसे कमर में भयंकर पीड़ा होती है, पेशाब में ख़ून आने लगता है, घुम्मी आने लगती है, बुख़ार और जाड़ा चढ़ता है।
गुर्दे की पथरियां होती क्यों हैं इसके कई कारण हैं। कम पानी पीने से, वंशानुगत कारणों से, थायरॉएड की दवाओं के प्रयोग से, अधिक प्रोटीन युक्त भोजन से, ख़ून में यूरिक ऐसिड के बढऩे से। इनका इलाज संभव है। आम तरीक़ा ये है कि गुर्दे की पथरी का पता लगाकर फिर लिथोट्रिप्टोर नाम की मशीन से तरंगे भेजकर इन्हें तोड़ा जाता है जिससे ये पेशाब के ज़रिए निकल सकें। बड़ी पथरी को शल्य चिकित्सा द्वारा निकाला जाता है।
गोल्डीलाक क्षेत्र किसे कहते हैं?
गोल्डीलाक क्षेत्र तारे से उस दूरी वाले क्षेत्र को कहा जाता है जहां पर कोई ग्रह अपनी सतह पर द्रव जल रख सकता है तथा पृथ्वी जैसे जीवन का भरण पोषण कर सकता है। यह निवास योग्य क्षेत्र दो क्षेत्रों का प्रतिच्छेदन (द्बठ्ठह्लद्गह्म्ह्यद्गष्ह्लद्बशठ्ठ) क्षेत्र है जिन्हें जीवन के लिए सहायक होना चाहिए। इनमें से एक क्षेत्र ग्रहीय प्रणाली का है तथा दूसरा क्षेत्र आकाशगंगा का है। इस क्षेत्र के ग्रह और उनके चन्द्रमा जीवन की सम्भावना के उपयुक्त है और पृथ्वी के जैसे जीवन के लिये सहायक हो सकते हंै। सामान्यत: यह सिद्धांत चन्द्रमाओं पर लागू नहीं होता क्योंकि चन्द्रमाओं पर जीवन उसके मातृ ग्रह से दूरी पर भी निर्भर करता है तथा हमारे पास इस बारे में ज्यादा सैद्धांतिक जानकारी नहीं है।
पहले यह माना जाता था कि द्रव जल सिर्फ सूर्य के आसपास ’गोल्डीलाक क्षेत्र’ में ही पाया जा सकता है। पृथ्वी की सूर्य से दूरी ’एकदम ठीक’ है, यह दूरी थोड़ी कम होने पर जल उबल कर उड़ जाएगा, दूरी थोड़ी ज्यादा होने पर जल जमकर बर्फ बन जाएगा।
वैज्ञानिक यह देख कर आश्चर्यचकित रह गये कि बृहस्पति के चन्द्रमा यूरोपा की बर्फीली सतह के नीचे द्रव जल हो सकता है। यूरोपा गोल्डीलाक क्षेत्र से काफी बाहर है, इसलिए वह फ्रैंक ड्रेक के समीकरण में नहीं आएगा। लेकिन यूरोपा पर ज्वारीय बल बर्फीली सतह को पिघलाकर एक द्रव जल के सागर बनाने में समर्थ है। यूरोपा जब बृहस्पति की परिक्रमा करता है, बृहस्पति का विशालकाय गुरुत्वाकर्षण बल यूरोपा को एक रबर की गेंद जैसे संपिडित करता है जिससे यूरोपा के केन्द्रक तक घर्षण पैदा होता है जो इसकी बर्फीली सतह को पिघला देता है। हमारे सौर मंडल मे ही लगभग सौ से ज्यादा चन्द्रमा है, इसका अर्थ यह है कि गोल्डीलाक क्षेत्र के बाहर हमारे सौर मंडल मे जीवन के लिए सक्षम चन्द्रमाओं की संख्या पूराने अनुमानों से कहीं ज्यादा है। सौर मंडल के बाहर अब तक 250 से ज्यादा महाकाय गैस ग्रह खोजे जा चूके हैं जिनके बर्फीले चन्द्रमा हो सकते हैं साथ ही जिन पर जीवन संभव हो सकता है।