विचार / लेख
-मनोज खरे
विज्ञान को तर्क, आर्ट और आस्था के नजरिये से समझना अत्यधिक खतरनाक है। यह सोशल मीडिया पर साल भर पोस्ट किए जाने वाले षड्यंत्र सिद्धांतों, कुछ अलग दिखने के लिए कोरोना को सामान्य बीमारी करार देने और देसी-घरेलू नुस्खों से कोरोना पर चामत्कारिक जीत का दावा ठोकने के वर्तमान हस्र से साबित हो गया है।
कोरोना की एक तेज और नई लहर ने ऐसे सब विद्वानों के दावों को ध्वस्त कर दिया है। पर इस क्रम में इन विद्वानों के लिखे पर भरोसा करने वाले कई लोग नुकसान उठा गए हैं और कई तो अपनी जान भी गवां बैठे हैं।
ये विद्वान ऐसे थे जो तर्क, लॉजिक, आस्था और स्वाभाविक बुद्धि के साथ स्कूल में पढ़े एलिमेंट्री साइंस के आधार पर कोरोना जैसी कॉम्प्लेक्स और छलिया बीमारी के चिकित्सा विज्ञान संबंधी प्रश्नों का उत्तर ढूंढने की कोशिश कर रहे थे। एक बार फिर से यहां दोहरा रहा हूं कि ऐसे किसी चक्कर में न पड़े। यह जानलेवा हो सकता है।
विज्ञान अपने प्रश्नों के उत्तर कैसे ढूंढता है, यहां इसे मैं एक सरल उदाहरण से स्पष्ट कर रहा हूँ। योग कहता है कि प्राणायाम से ब्लड प्रेशर में सुधार होता है। यह अनुभवजन्य हो सकता है पर वैज्ञानिक निष्कर्ष नहीं है। बाबा रामदेव अपने शिविरों में अनेक भागीदारों के मुंह में माइक अड़ा कर टेस्टिमनी दिलवाते थे कि कैसे पांच दिन में उनका बीपी एकदम कम हो गया। यह अवैज्ञानिक विधि है।
अब देखिए प्राणायाम के बीपी पर प्रभाव को विज्ञान कैसे जांच सकता है। अध्ययनकर्ता बीपी के रोज गोलियां खाने वाले, मान लीजिए 1000 मरीजों का रैंडम चयन करेगा। उनके औसत बीपी और दवा के डोज का डेटा एकत्र करेगा फिर रेंडमली 500-500 के दो ग्रुपों में बांट देगा। अब ग्रुप-1 के सदस्यों से रोज निर्धारित तरीके और मात्रा में तीन महीने तक लगातार प्राणायम करने को कहा जायेगा। ग्रुप-2 को कोई टास्क नहीं दिया जाएगा। तीन माह बाद दोनों ग्रुपों के औसत बीपी और दवाइयों की जरूरत में आए बदलावों के आंकड़े एकत्र करेगा। दोनों ग्रुपों के सदस्यों के आंकड़ों के विश्लेषण और तुलना से पता लगेगा कि ग्रुप-1 को ग्रुप-2 की तुलना में कितना फायदा होगा। यह प्राणायाम के प्रभाव का वैज्ञानिक आकलन होगा। अध्ययन की सैम्पल साइज जितनी अधिक होगी, निष्कर्ष उतने ही प्रामाणिक माने जाएंगे।
पर इतना भर नही। यह अध्ययन चिकित्सा जर्नल में प्रकाशित किया जाएगा। दूसरे शोधकर्ता इस अध्ययन का पिअर रिव्यू करेंगे और जब इसे व्यापक स्वीकृति मिल जाएगी तब अध्ययन के निष्कर्ष वैज्ञानिक निष्कर्ष बन जाएंगे। प्राणायाम के अध्ययन के लिए मोटे तौर वैज्ञानिक विधि का एक उदाहरण मात्र है जो सामान्य लोगों की समझ के लिए पेश किया गया है। इसके अध्ययन के लिए अन्य विधियां डिजाइन की जा सकती हैं।
तो मॉरल ऑफ स्टोरी यही है कि कोरोना पर वैज्ञानिक विषय के एक्सपर्ट जो निष्कर्ष देते हैं, सिर्फ उन्हीं पर भरोसा कीजिए और किसी पर नहीं। किसी पर यानि किसी पर नहीं।