विचार / लेख
-प्रकाश दुबे
मद्रास हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायाधीश सेंथिलकुमार रामास्वामी ने चुनाव कराते समय कोरोना कहर की अनदेखी करने के लिए सिर्फ और सिर्फ निर्वाचन आयोग को जिम्मेदार माना है। उनकी टिप्पणी विधि सम्मत है, परंतु लगता है, अधूरी है। अनेक देशवसियों को मौत के मुंह में झोंकने की जिम्मेदारी से अन्य कुछ संस्थाएं बच नहीं सकतीं। केन्द्र सरकार ने 14 मार्च 2020 को कोरोना कोविड-19 को आपदा घोषित किया। दसवें दिन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने सभी को परस्पर दूरी का पालन करने के निर्देश दिए। 13 महीने में प्राधिकरण की बैठकें हुईं? किसी एक में भी लगातार सोशल डिस्टेंसिंग के आदेश की निर्वाचन आयोग द्वारा अवहेलना पर विचार हुआ। प्रधानमंत्री प्राधिकरण के पदेन अध्यक्ष हैं।
आपदा प्रबंधन अधिनियम-2005 के अध्याय-दस में प्राधिकरण को अधिकार दिया गया है कि बाधा डालने या निर्देश का पालन न करने पर एक वर्ष तक कारावास में भेजा जा सकता है। प्राधिकरण ने कोई कदम नहीं उठाया। सफदरजंग के वातानुकूलित कमरों में आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ भाड़ तो नहीं झोंकते होंगे। किसी को केन्द्र सरकार के कैबिनेट मंत्री का दर्जा है, कोई राज्यमंत्री। किसी को सचिव की बराबरी का ओहदा है। महामारी के बीच यह जानकारी विवेकी व्यक्तियों को बीमार कर देगी कि प्राधिकरण में सदस्य और अधिकारियों के पद खाली पड़े हैं।
तमिलनाडु के राज्यपाल ने महामारी से बचाव के लिए निर्देश जारी किए। पुष्पहार और भेंट लाने पर रोक लगा रखी है। वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन राज्य निर्वाचन प्राधिकारी ए के लखोनी ने चोरी-छिपे धन और सामान बांटने वालों को पकड़ा। चुनाव गड़बड़ी रूकी। जयललिता सरकार ने आने के बाद लखोनी को मामूली से विभाग में भेजकर पुरस्कृत किया। आपदा प्रबंधन में अनदेखी कई राज्यों के साथ ही पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा तक के विरुद्ध कार्रवाई करना संभव है। नियम इसकी अनुमति देते हैं। अरोड़ा अब तो खुलकर बता सकते हैं कि कितने बार बिहार, असम, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में महामारी की विकरालता और राजनीतिक व्यक्तियों और प्रशासकों द्वारा की गई अनदेखी की समीक्षा की। कार्रवाई करने में उनके सामने क्या दिक्कत थी? दु:खद संयोग है कि एक तरफ अदालतें एक के बाद एक महामारी का सामना करने में असफलता पर टिप्पणी कर रही हैं। मुख्य निर्वाचन आयुक्त और एक अन्य आयुक्त पूरी सतर्कता के बावजूद दिल्ली में संक्रमित हैं। भेड़-बकरियों की तरह प्रचार का तमाशा देखने जुटाए देश के आम आदमी की संवेदना और घबराहट उन्होंने महसूस नहीं की। नेता और जनता, सत्ता और प्रतिपक्ष, अपने और पराए के आधार पर भेदभाव के आरोप लगाना जारी है। कार में अकेले बैठने और घर में रहते हुए मास्क लगाने के फरमान जारी होते हैं। उच्चतम न्यायालय ने अपने बचाव के लिए आभासी सुनवाई की। इसके बावजूद न्यायाधीश संक्रमित हुए। अनेक वकीलों ने बढ़ते संक्रमण की जानकारी दी। पूर्व मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े अपने कार्यकाल में न्यायाधीशों की नियुक्तियां नहीं करा सके। पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगाई की जगह सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति नहीं हुई। श्री बोबड़े जाते जाते महिलाओ के मुख्य न्यायाधीश बनने का सपना दिखा गए। उनकी सेवानिवृत्ति के दिन मात्र एक महिला उच्चतम न्यायालय में पदस्थ थी। उनसे संक्रमण पर कड़ा रुख अपनाने की अपेक्षा थी। किसान आंदोलन और महामारी दोनों मुद्दों पर उनकी सोच समान थी। किसी तीसरे को जिम्मा सौंपो। कुछ न्यायविद मानते हैं कि शीर्ष अदालत पल्ला झाड़ रही है। इसका फायदा सत्ता को मिलेगा।
महामारी के दौरान महाभारत के दो पात्र सजीव हो उठे। एक अभिमन्यु। दूसरा अश्वत्थामा। दोनों बाप के लाडले। महाभारत के 13वें दिन युधिष्ठिर को बंदी बनाने की योजना के तहत चक्रव्यूह रचा। जानकार अर्जुन को कुरुक्षेत्र से दूर लडऩे के लिए बाध्य किया। उनकी गैरहाजिरी में सोलह वर्षीय अभिमन्यु को घेर कर मारा गया। अगले दिन जवाबी अनैतिकता के अंतर्गत कौरवों के सेनापति द्रोणाचार्य को झूठी खबर दी गई-अश्वत्थामा मारा गया। पुत्र मोह में उन्होंने हथियार डाले। द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने द्रोण का सिर काटा। कुपित अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पांच बेटों और भाई धृष्टद्युम्न को मारकर बदला लिया। अभिमन्यु का अर्थ है-निर्भय क्रोधी। अश्वत्थामा का मतलब उग्र स्वभाव वाला।
महामारी के महाभारत में चक्रव्यूह न बेध पाने वाला कुपित अभिमन्यु मारा जाता है। अतीत के अश्वत्थामा को उसकी मां कृपि की पीड़ा का ध्यान कर द्रौपदी ने माफ किया था। अर्जुन ने उसके माथे से मणि छीनकर शक्तिहीन और घायल किया। अश्वत्थ संस्कृत में पीपल को कहा जाता है। पीपल के पत्ते हमेशा हिलते रहते हैं। गांव-देहातों में बच्चों को रात में पीपल के पेड़ के निकट जाने से रोका जाता है। अश्वत्थ यानी पीपल के पेड़ और अश्वत्थामा के वास का कोई तार्किक प्रमाण नहीं है। कई लोग मानते हैं कि पांच हजार वर्ष तक अमरता का वरदान पाने वाला अश्वत्थामा मध्य प्रदेश के बुरहानपुर से 20 किलोमीटर दूर असीरगढ़ के किले में आकर पूजा करता है। मान्यताओं से उपजेअंधविश्वास को छोडक़र विचार करें-लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूत करने के लिए बनी संस्थाएं अश्वत्थामा की तरह क्यों भटक रही हैं?
महान भारतीय गणितज्ञ आर्यभट की गणना के अनुसार महाभारत युद्ध ईसापूर्व 18 फरवरी 3102 को हुआ था।
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)