विचार / लेख

कनक तिवारी लिखते हैं- बुरा न मानो होली है !
28-Mar-2021 11:58 AM
कनक तिवारी लिखते हैं- बुरा न मानो होली है !

होली जनवादी सर्वहारा राष्ट्रीय त्यौहार है। इस दिन हर भारतीय अपनी असली औकात पर आ जाता है। वह भाषा बोलता है जो अन्दर कहीं ‘मन की बात’ के झूठ का पर्दाफाश करने बीरबल की खिचड़ी की तरह खदबदाती रहती है। पुलिसवाले आसानी से धारा 294 (अश्लील गाली गलौज) तथा 506 (धमकी) किसी भी नागरिक के खिलाफ कायम करते रहते हैं। वही उनका बाल प्राइमर होता है। होली के दिन जनता के लिए ‘मन की बात’ सूख जाती है। थाने के सामने खड़े होकर भी मनचले होली के दिन ‘सौजन्य-सप्ताह’ (?) मनाने वाली पुलिस का उसकी ही भाषा में स्वागत कर लेते हैं। थानेदार भी मंत्रियों की तरह चेहरे पर बेशर्मी का गुलाल मलकर जन-सेवक दिखने का अभिनय करते हैं। खिलाफ बोले गए उद्गारों को अपने चरित्र की गोपनीय रिपोर्ट मान लेते हैं। सडक़ें बदजुबान अश्लील नारों से पटती जाती हैं। महिलाएं और लड़कियां बेचारगी ढोती कटाक्षों को किसी तरह बर्दाश्त करती हैं। हर आदमी अपने चिकने चुपड़े चरित्र का काला निगेटिव हो जाता है। आईना उसकी औकात पर थूकता है। साल भर वह अपने ऊपर मनुष्य होने का नकाब चढ़ाए रहता है। 

कहते हैं भक्त प्रहलाद ने ‘आग लगाए जमालो दूर खड़ी’ जैसी बुआ होलिका को औकात बताकर उसकी गोद में बैठकर भी खुद को बचा लिया था। इसलिए हर नागरिक प्रहलाद होली जलाता है। करोड़ों ने खुद को प्रहलाद समझ लिया है जिससे होलिका के भाई की हुकूमत और सरकारी गोद की आग से बच सकें। बहुत अच्छी फसल हुई है। प्रहलादों की खेती की फसल हिरण्यकशिपु के कहने पर दलाल खरीदारों के जिम्मे कर दी गई थी। हुक्मनामा जारी होता रहा है जाओ उन्हें ही फसल बेचो। वही तुम्हारे मालिक हैं। हर प्रहलाद देश का धरती पुत्र है। इसलिए राजकुमार है। उन्हें होलिका फुसलाकर राजधानी की सीमाओं पर बार बार धकेलती रहती है। यह सब राजदरबार के इशारे पर वह करती है। 

होलिका ने कलियुग में अपने दो कॉरपोरेटी कारिन्दों के मार्फत सुबह टेलीफोन पर भतीजे प्रहलाद को चुनौती दी कि हिम्मत है तो बचकर दिखाए। प्रहलाद के टेलीफोन नम्बर पर ट्रूकॉलर लगा है। उसने होलिका का फोन रेकार्ड कर लिया। सबसे बड़े मंत्री के घर पहुंचकर रपट लिखाई। मंत्री ने मुस्कराते हुए कहा, ‘टेप रिकार्डर की आवाज साक्ष्य में नहीं मानी जाती। फिर होलिका ने जान से मारने की धमकी तो नहीं दी है। सिर्फ यही कहा है कि हिम्मत है तो बचकर दिखाओ। जाओ हिम्मत बटोरो और बच जाओ।’ 
मंत्री ने समझाया अब राज्य में यही करना होगा। जिसमें-जिसमें हिम्मत है, अपराधियों से खुद बचें। जो कायर हैं, रपटें लिखाते रहें। जो कम कायर हैं, अपराधियों से पिटते रहें। प्रहलाद ने देखा एक दरबार में जनप्रहलादों के प्रतिनिधियों को हिरण्यकशिपु के सूबेदारों के सुरक्षाकर्मियों ने खुले आम पीटा। जनता ने तो प्रतिनिधियों को विश्वास में चुना था कि वे गाहे बगाहे जनता की रक्षा करेंगे। वे तो खुद ही पिटते रहे। जनता ने चुनने की गलती नहीं की होती तो बेचारे कम से कम पिटते तो नहीं। ओरिजिनल प्रहलाद को लगा सतयुग में होलिका से पंगा लेकर उसने बहुत गलत कर दिया। 

प्रहलाद को नारद मुनि के वंशज नाम के एक व्यक्ति ने कहा कि उसे नरसिंह के नए अवतार रामजी के दर्शन करा सकता है। उस व्यक्ति ने ‘जयश्रीराम’ का नारा लगाकर दिखाया कि ये सफेद केश और दाढ़ीधारी व्यक्ति नरसिंह और राम सबके संरक्षक हैं। ये ही राम हैं, ये विष्णु भी हैं, ये नरसिंह भी हैं। प्रहलाद ने कहा ये अवतार तो बूढ़े दिखते हैं। मीडिया ने कहा इनके केश सफेद हैं लेकिन दिल ऐसा नहीं है। जाओ उनकी शरण में जाओ। ध्यान रहे। यह कलियुग है। तुम्हारा सतयुग नहीं, जब तुम्हारे पिता हिरण्यकशिपु ने तुम्हें बर्दाश्त कर लिया। आज अपनी बुआ से पंगा लोगे तो वह सुपारी देकर किसी को भेज देगी। 

‘सुपारी’ सुनकर प्रहलाद को लगा धर्म भारतभूमि पर शेष है। उसने पूछा, ‘क्या सुपारी के अलावा श्रीफल, केला और पंचामृत का प्रसाद भी मिलेगा?’ उस व्यक्ति ने बताया नारियल तो भैया नामक नये वंशधारियों के प्रभार में है। वे कहते रहते हैं, ‘आज पांच नारियल टपका डालना है। केले सस्ते हैं लेकिन उनका छिलका महंगा है। केन्द्रीय और सूबाई दरबारी राजपथ पर चलते सत्ता के केले का गूदा खाकर टैक्स के छिलके जनपथ पर बिछा देते हैं। उस पर प्रहलाद बनी जनता फिसलकर गिरती रहे। प्रहलाद! आजकल इन्कमटैक्स, एनआईए, ई.डी., सीबीआई और पुलिस से प्राप्त प्रसाद को पंचामृत कहते हैं। वह प्रसाद महाराज और होलिका के विरोधियों को छककर खिलाया जा रहा है। बोलो प्रहलाद इनमें से कौन सा प्रसाद लोगे? वही खाकर होलिका की गोद में बैठना है।’
 
दरअसल प्रहलाद अब तक सपना देख रहा था। सपना टूटते ही उसे ख्याल आया उसका बचपन होलिका से बचने दरदर की ठोकरें खाता रहा है। कभी वह बाल मजदूर कहलाता, कभी यौन शोषित होकर धर्म श्लोक पढ़ता, कभी कारखानों, खदानों और खेतों में काम करता रहा है। कभी फटे कपड़े पहने टेनिस कोर्ट पर साहबों को गेंदें उठाकर देता रहा है। कभी भैया लोगों से जेब काटने की ट्रेनिंग लेता रहा है। कभी होटलों में जूठी प्लेटें उठाता उसकी जूठन चाटता भी रहा है। 

वह हर हाल में लेकिन होलिका और हिरण्यकशिपु से अब एकबारगी निपट लेना चाहता है। कॉरपोरेटियों, मंत्रियों, अफसरों, ठेकेदारों, साहबों, दलालों की आंखों में होलिका के अट्टहास को वह देख सुन रहा है। होलिका उसे ललकार रही है कि इस बार बचकर तो दिखाए। कहती है कलियुग मे भी भाई हिरण्यकशिपु का राज है। जो विरोध करेगा, उसे न्यायशास्त्री औकात दिखाना शुरू कर चुके हैं। प्रहलाद को अब केवल जनता के मन की अग्नि का भरोसा है। सत्ता के सब नामों के रूपकों और मिथकों ने अपने अपने चरित्र ही बदल लिए हैं। केवल अग्नि ने नहीं बदला है। होलिका की हिंसा के मुकाबले लोकमत की अग्नि के चरित्र की ज्योति प्रज्ज्वलित कर ही हर प्रहलाद अपने को लोहे से इस्पात बना सकता है।

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