विचार / लेख

मैं चली पिया के देश!
27-Mar-2021 5:41 PM
मैं चली पिया के देश!

-ध्रुव गुप्त

‘बाबुल मोरा नैहर छूटल जाय’ हमेशा से ठुमरियों में मेरी पहली पसंद रही है। पिछले डेढ़ सौ सालों में इस ठुमरी को असंख्य गायको-गायिकाओं ने अपनी आवाज दी है। कुंदन लाल सहगल ने फिल्म ‘स्ट्रीट सिंगर’ में गाकर इसे लोकप्रियता का आसमान दिया था।

कल देर रात यह ठुमरी सुनते हुए मुझे इसके रचयिता वाजिद अली शाह की याद आई। अवध के दसवें और आखिरी नवाब वाजिद अली शाह भारतीय इतिहास के कुछ सबसे अलबेले चरित्रों में एक रहे हैं। शासक के रूप में उनका मूल्यांकन इतिहासकारों का काम है, मुझे उनके भीतर का कलाकार बहुत आकर्षित करता है। वाजिद अली को ठुमरी का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने न केवल दर्जनों ठुमरियों की रचना की थी, बल्कि वे खुद एक बेहतरीन ठुमरी गायक थे। उनके दरबार में हर शाम संगीत की महफिलें सजती थीं जिनमें ठुमरी को कत्थक नृत्य के साथ गाया जाता था। शास्त्रीय नृ्त्य शैली कत्थक के विकास में भी उनके दरबार की खास भूमिका रही थी। कत्थक के लिए उन्होंने कैसरबाग में एक परीखाने की स्थापना की थी। ठाकुर प्रसाद और दुर्गा प्रसाद उनके दरबारी नर्तक और नृत्य गुरु थे जिनसे उन्होंने नृत्य की शिक्षा ली थी।

उन्होंने भारत के प्रसिद्ध शास्त्रीय नर्तक पंडित बिरजू महाराज के पूर्वजों को संरक्षण और लखनऊ में उन्हें एक घर दिया था। अपने जीवन काल में हिन्दुओं और मुसलमानों की साझा संस्कृति के विकास की कोशिशों के सिलसिले में उन्होंने राधा और कृष्ण के प्रेम पर कई बेहतरीन नज़्मों और एक नाटक की रचना की थी। उस नाटक को लखनऊ में रहस की तर्ज पर खेला जाता था। वाजिद अली उसमें कृष्ण की भूमिका खुद निभाया करते थे। कृष्ण की अपनी भूमिका में वे इस क़दर लोकप्रिय हुए कि लोग उन्हें श्याम पिया के नाम से बुलाते थे !

अपनी रियासत के अधिग्रहण और अपने निष्कासन के बाद ‘बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय’ गाते हुए उन्होंने अपने लोगों को अलविदा कहा था। उन्हें कलकत्ता के मटियाबुर्ज में पनाह मिली थी जहां 1887 में 65 साल की उम्र में उनका देहावसान हुआ। उनके निष्कासन को जायज ठहराने के लिए अंग्रेजों ने उनकी विलासप्रियता के जितने भी सच्चे-झूठे किस्से फैलाए हों, अपनी रियाया में वे कितने लोकप्रिय थे, इसका अंदाजा आप उस दौर के इस प्रसिद्ध गीत से लगा सकते हैं जो उनके लखनऊ से निष्कासन के बाद लोग गाते थे-हाय तुम्हरे बिन बरखा ना सोहाय/अल्ला तुम्हे लाए हाय अल्ला तुम्हें लाए/ हम पर कृपा करो रघुनन्दन वाजिद अली मोरा प्यारा/गलियन गलियन रैयत रोवै/हटियन बनिया बजाज रे/महल में बैठी बेगम रोवै/डेहरी पर रोवै खवास रे!’

हिंदी तो क्या, उर्दू के भी कम लोगों को ही पता है कि ‘अख्तर’ उपनाम से वाजिद अली शाह एक बेहतरीन शायर थे। उनकी ज्यादातर रचनाएं अब लुप्तप्राय हैं, लेकिन शायरी का उनका स्तर क्या था इसे जानने के लिए उनके कुछ अशआर देखिए- ‘साकी कि नजर साकी का करम/सौ बार हुई, सौ बार हुआ/ये सारी खुदाई ये सारा जहां/मयख्वार हुई, मयख्वार हुआ / जब दोनों तरफ से आग लगी/राजी-व-रजा जलने के लिए/तब शम्मा उधर, परवाना इधर / तैयार हुई, तैयार हुआ। ‘या उनका यह प्रसिद्ध शेर-’ दर-ओ-दीवार पे हसरत की नजर करते हैं/ रुखसते अहले वतन हम तो सफर करते हैं। (नीचे परिवार के साथ नवाब वाजिद अली शाह की एक दुर्लभ तस्वीर)

 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news