विचार / लेख

क्या केजरीवाल सरकार कठपुतली है उपराज्यपाल की ?
26-Mar-2021 9:49 PM
क्या केजरीवाल सरकार कठपुतली है उपराज्यपाल की ?

-सुसंस्कृति परिहार

दिल्ली सरकार की घर-घर राशन योजना पर जिस तरह कहर बरपा उसकी हकीकत सामने आने लगी है। केन्द्र सरकार की मंशा के अनुरूप सुको का गत दिवस आया फैसला यह बताता है कि जनता द्वारा चुनी हुई सरकार यानि उसके मुख्यमंत्री और मंत्रियों के बहुत से अधिकार छीनकर उपराज्यपाल को दिए जाने वाले हैं। अभी तक तो व्यवस्थापिका को महत्त्वपूर्ण माना जाता रहा है। राष्ट्रपति तक को केन्द्रीय केबीनेट की कठपुतली की संज्ञा दी जाती थी।यह अधिकार छीनने की कोशिश ना केवल दिल्लीवासियों की हार होगी बल्कि तमाम केन्द्र शासित राज्यों के लिए खुली चुनौती होगी।

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र को लेकर फैसला सुनाया है, जिसमें भ्रष्टाचार रोधी शाखा और जांच कमीशन को केंद्र सरकार के अधीन रखा गया है जबकि बिजली एवं राजस्व विभाग को दिल्ली सरकार के अधीन रखा गया है. सेवाओं के मामले में दोनों जजों में मतभेद के चलते इसे तीन जजों की पीठ के समक्ष भेजा गया है.दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल (एलजी) मामले में जस्टिस एके सीकरी की अगुवाई वाली दो सदस्यीय पीठ ने  फैसला सुनाया हैं, जिसमें भ्रष्टाचार रोधी शाखा (एसीबी) को केंद्र सरकार के अधीन रखा गया है जबकि बिजली एवं राजस्व विभाग को दिल्ली सरकार के अधीन रखा गया है.गृह मंत्रालय ने 21 मई 2015 को एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसमें सर्विसेज़, सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और ज़मीन से जुड़े मामलों को उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में रखा गया था। इसमें ब्‍यूरोक्रेट के सर्विस से संबंधित मामले भी शामिल थे। इसे दिल्ली सरकार ने पहले उच्च न्यायालय में और बाद में सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

विवाद की शुरुआत तब हुई थी जब केंद्र सरकार ने 23 जुलाई, 2014 को भी एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसके तहत दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियों को सीमित कर दिया गया था और दिल्ली सरकार के ACB का अधिकार क्षेत्र दिल्ली सरकार के अधिकारियों तक सीमित किया गया था। इसके जाँच दायरे से केंद्र सरकार के अधिकारियों को बाहर कर दिया गया था। इस नोटिफिकेशन को दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी जिसे खारिज कर दिया गया था। 

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार की ओर से मामले को उठाते हुए कहा गया कि सर्विसेज़ तथा ACB जैसे मामलों में गतिरोध कायम है और इन मुद्दों पर सुनवाई की जरूरत है।पिछले वर्ष जून में सुप्रीम कोर्ट की 5 न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने फैसला दिया था कि ज़मीन, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस से संबंधित मामलों को छोड़कर दिल्ली सरकार के फैसलों में उपराज्यपाल की सहमति की आवश्यकता नहीं होगी। लेकिन इस फैसले में सेवाओं (Services) और अन्य मुद्दों को लेकर कुछ नहीं कहा गया था। इसके लिये दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।केंद्र सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि उपराज्यपाल को केंद्र से अधिकार मिले हुए हैं।सिविल सर्विसेज़ का मामला उपराज्यपाल के हाथ में है क्योंकि यह अधिकार राष्ट्रपति ने उपराज्यपाल को दिया है। इसलिये मुख्य सचिव की नियुक्ति आदि का मामला उपराज्यपाल ही तय करेंगे।दिल्ली के उपराज्यपाल की पावर अन्य राज्यों के राज्यपाल के अधिकार से अलग है।संविधान के तहत दिल्ली के उपराज्यपाल को विशेषाधिकार मिला हुआ है।विधानसभा होने का यह अर्थ नहीं है कि दिल्ली एक राज्य है और उसे अन्य राज्यों की तरह अधिकार प्राप्त हैं।दिल्ली पूर्णतया केंद्र द्वारा शासित प्रदेश है और अंतिम अधिकार केंद्र के ज़रिये राष्ट्रपति के पास है।

जबकि दिल्ली सरकार ने अपने पक्ष में कहा कि चुनी हुई सरकार के पास अधिकार होना ज़रूरी है।उपराज्यपाल को कैबिनेट की सलाह पर काम करना चाहिये।संविधान के अनुच्छेद 239AA के तहत चुनी हुई सरकार होती है, जो जनता के प्रति जवाबदेह होती है।ज़मीन, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस के अलावा राज्य और समवर्ती सूची में शामिल मामलों में दिल्ली विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार है।जैसे ही जॉइंट कैडर के अधिकारी की पोस्टिंग दिल्ली में होती है, वह दिल्ली प्रशासन के तहत आ जाता है।ACB को भी दिल्ली सरकार के दायरे में होना चाहिए क्योंकि आपराधिक दंड संहिता में ऐसा प्रावधान है।पिछले साल 4 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की संवैधानिक पीठ ने संविधान के अनुच्छेद-239AA की व्याख्या की थी, जिसमें उसने कहा था कि दिल्ली में उपराज्यपाल दिल्ली सरकार की मंत्री परिषद की सलाह से काम करेंगे, यदि कोई अपवाद है तो वह मामले को राष्ट्रपति को रेफर कर सकते हैं और जो फैसला राष्ट्रपति लेंगे, उस पर अमल करेंगे।उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों के बंटवारे को लेकर लंबे समय से चला आ रहा गतिरोध लगता है अभी पूरी तरह से खत्म नहीं होने वाला। सेवाओं को लेकर पीठ में मतैक्य नहीं होने की वज़ह से खंडित फैसला आया, इसीलिये अब यह मामला तीन जजों वाली खंडपीठ देखेगी।जब तक पूरा फैसला नहीं आता टकराव बरकरार रहेगा। तब तक मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उपराज्यपाल की कठपुतली बन कर ही काम करेंगे। आखिरकार दिल्ली केंद्र शासित राज्य की सजा भोगेगा ही ।अन्य केन्द्र शासित राज्यों को इस मुद्दे पर विचार करना आवश्यक है वरना जनता भी अपना वजूद खो देगी।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news