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नेपाल में प्रचंड और ओली की पार्टी के विलय को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज
08-Mar-2021 8:48 AM
नेपाल में प्रचंड और ओली की पार्टी के विलय को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' की अगुवाई वाली नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के विलय को रद्द कर दिया.

साल 2017 के आम चुनाव में उनके गठबंधन की जीत के बाद 2018 में दोनों पार्टियों ने विलय कर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी बनाई थी.

हालांकि ऋषि राम कात्याल ने इस विलय के फै़सले के खि़लाफ एक याचिका दायर की जिसमें कहा गया था उन्होंने इस नाम से पहले ही एक पार्टी रजिस्टर करवा रखी है.

कत्याल ने मई 2018 में ओली और प्रचंड की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) को पंजीकृत करने के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी थी.

सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फ़ैसला
जस्टिस वम कुमार श्रेष्ठ और कुमार रेगमी की संयुक्त पीठ ने रविवार को दो साल पुराने इस मामले में फैसला सुनाया. पीठ ने कहा कि पहले से पंजीकृत नाम से एक नई पार्टी का पंजीकरण नहीं किया जा सकता.

अदालत ने कहा कि अब नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकजुट मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) विलय के पूर्व की स्थिति में लौट आएंगे.

इस फैसले के साथ ही संसद में अब की संख्या को दोनों पार्टियों की जीती गई सीटों के आधार पर बांट दिया जाएगा.

साल 2017 के चुनावों में, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकजुट मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ने 121 सीटें जीती थीं और पाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने 53 .

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर उन्हें विलय करना है तो उन्हें चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार आवेदन करना होगा.

संयुक्त पीठ ने 69 वर्षीय ओली और 66 वर्षीय प्रचंड को एक बार फिर चुनाव आयोग के समक्ष एक अलग नाम का प्रस्ताव देते हुए आवेदन दायर करने का अवसर दिया है.

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चीन की तरफ़ झुकाव
फ़ैसले के बाद कत्याल ने कहा, "अगर वे अब संविधान के अनुसार जाना चाहते हैं तो मुझे लगता है कि उन्हें एक अलग नाम के साथ आना होगा. लेकिन वर्तमान स्थिति में, दोनों पक्ष सहमत नहीं दिखते हैं. वे अधिक परेशानी में प्रतीत हो रहे हैं."

ओली और प्रतिद्वंद्वी समूह दोनों नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी को नियंत्रित करने का दावा करते हैं. प्रचंड के साथ सत्ता के लिए रस्साकशी के बीच ओली को चीन की तरफ़ झुकाव के लिए जाना जाता है.

केपी शर्मा ओली ने पिछले साल 20 दिसंबर को संसद को भंग कर दिया था. ऐसी ख़बरें सामने आईं कि इस फैसले को लेकर पार्टी एकमत नहीं थी. पिछले महीने नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने संसद को बहाल रखने का फ़ैसला सुनाया था.

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने सुनवाई में प्रधानमंत्री केपी ओली के 20 दिसंबर को संसद भंग करने की सिफ़ारिश को असंवैधानिक करार दिया था. इतना ही नहीं अदालत ने 13 दिनों के भीतर संसद के निचले सदन की बैठक बुलाने के लिए प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और सदन के स्पीकर को आदेश जारी किया था.

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ओली और प्रचंड समूह के नेताओं का क्या कहना है?
प्रधानमंत्री केपी शर्मा के निकट सहयोगी खगराज अधिकारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी है कि यह निर्णय एक वैध तरीके से किया जाना चाहिए और उन्होंने इसे सकारात्मक रूप से लिया है.

उन्होंने कहा, "अब अगर हम संतुष्ट हैं, तो साथ आ सकते हैं, नहीं तो हम अलग हो सकते हैं. तीन साल के हमारे साथ की समीक्षा के बाद ये फैसला लिया जाएगा कि आगे हमें क्या करना है."

उन्होंने कहा कि अगल पार्टी फिर से एकजुट नहीं होती है, तब भी वो मुद्दो पर साथ आ सकते हैं और साथ मिलकर काम कर सकते हैं.

रविवार को सदन के सदस्यों की बैठक शुरू हुई जिसमें कुछ सांसदों ने विरोध किया और फिर वॉकआउट कर गए. सदन के सदस्यों की बैठक अब बुधवार तक के लिए टाल दी गई है.(bbc.com)

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