विचार / लेख
ध्रुव गुप्त
प्रेम, विरह, सौंदर्य और जिंदगी की खूबसूरती तथा तल्खियों के बेहतरीन शायर रघुपति सहाय ‘फिराक’ गोरखपुरी का जिक्र शायरी के एक अलग अहसास, एक अलग आस्वाद का जिक्र है। उन्हें उर्दू के महानतम आधुनिक शायरों में एक माना जाता है। वे उन शायरों में एक थे जिन्होंने शायरी में नई परंपरा की बुनियाद रखी थी। जिस दौर में उन्होंने लिखना शुरू किया, उस दौर की शायरी का एक बड़ा हिस्सा परंपरागत रूमानियत और रहस्यों से बंधा था। समय की सच्चाई और लोकजीवन के विविध रंग उसमें लगभग अनुपस्थित थे। नजीर अकबराबादी और इल्ताफ हुसैन हाली की तरह फिराक ने इस रिवायत को तोडक़र शायरी को नए मसलों, नए विषयों और नई भाषा के साथ जोड़ा। उनकी गजलों में सामाजिक दुख-दर्द व्यक्तिगत अनुभूति बनकर ढला है। वहां रूमान के साथ जि़न्दगी की कड़वी सच्चाइयां भी हैं और आने वाले कल की उम्मीद भी। उर्दू गजल की बारीकी, नाजुकमिजाजी और सौंदर्य को देश की संस्कृति और प्रतीकों से जोडक़र फिराक ने अपनी शायरी का एक अनूठा महल खड़ा किया था। अदबी दुनिया में फिराक की बेबाकी, दबंगई और मुंहफटपन के किस्से खूब कहे-सुने जाते हैं। अपनी शायरी की अनश्वरता पर खुद उनका आत्मविश्वास किस कदर गहरा था, यह उनके इस शेर से समझा जा सकता है- आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हमअसरों जब भी उनको ध्यान आएगा तुमने फिराक को देखा है।
आज फिराक गोरखपुरी की पुण्यतिथि पर उनकी स्मृतियों को नमन, उनकी एक गजल के चंद अशआर के साथ !
सितारों से उलझता जा रहा हूं
शब-ए-फ़ुरक़त बहुत घबरा रहा हूं
यक़ीं ये है हक़ीक़त खुल रही है
गुमां ये है कि धोखे खा रहा हूं
तेरे पहलू में क्यों होता है महसूस
कि तुझसे दूर होता जा रहा हूं
जो उलझी थी कभी आदम के हाथों
वो गुत्थी आज तक सुलझा रहा हूं
मुहब्बत अब मुहब्बत हो चली है
तुझे कुछ भूलता-सा जा रहा हूं
ये सन्नाटा है मेरे पांव की चाप
‘फिराक’अपनी ही आहट पा रहा हूं।