सामान्य ज्ञान
साल 1896 में पहली मार्च के दिन वैज्ञानिक ऑनरी बेकेरल के एक प्रयोग के कारण रेडियोधर्मिता क्या होती है, इसका पहली बार पता चला। उन्होंने फोटोग्राफिक प्लेट को काले कागज में लपेटा और फिर अंधेरे में चमकने वाले फॉस्फोरेसेंट सॉल्ट को उस पर डाला। फिर यूरेनियम सॉल्ट का इस्तेमाल करते ही प्लेट काली होने लगी। इन रेडिएशन को बेकेरल किरणें कहा गया।
जल्द ही साफ हो गया कि प्लेट का काला होना फॉस्फोरेसेंट से नहीं जुड़ा है क्योंकि प्लेट काली तब हुई जब वह अंधेरे में रखी गई थी। यह भी समझ में आ रहा था कि किसी तरह का रेडिएशन हो है जो कागज को पार कर सकता है और प्लेट को काला कर सकता है। वर्ष 1895 में विल्हेम रोएंटगेन ने एक्सरे का शोध कर लिया था। लेकिन फिर भी बेकेरल ने सोचा कि वह इन फोटोग्राफिक प्लेटों को डेवलप करेंगे और उन्होंने पाया कि तस्वीरें फिर भी एकदम साफ हैं। इससे ये पता चला कि बिना किसी बाहरी ऊर्जा के यूरेनियम ने रेडिएशन छोड़ा। यही थी, रेडियोधर्मिता की पहली जानकारी। फिर उन्होंने एक और प्रयोग के जरिए बताया कि जो रेडिएशन उन्होंने ढूंढा वह एक्सरे नहीं है। एक्सरे न्यूट्रल होती हैं और चुंबकीय क्षेत्र में रखने पर वो मुड़ती नहीं, लेकिन ये किरणें मुड़ गईं।
बेकेरल 1852 में पेरिस में पैदा हुए। रेडियोधर्मिता की खोज करने के लिए उन्हें 1903 में मेरी और पियरे क्यूरी के साथ भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया गया।