विचार / लेख
-कृष्ण कांत
कुछ लोग कहते हैं कि सावरकर की तरह कई कांग्रेसी और वामपंथी नेताओं ने भी अंग्रेजों से माफी मांगी थी, लेकिन सावरकर को वामपंथियों ने बदनाम कर दिया।
ऐसे लोग आंख मूंदकर इतिहास पढ़ते हैं। क्या जिन कांग्रेसियों या वामपंथियों ने जेल से छूटने के लिए माफी मांगी, वे सब बाद में अंग्रेजों का साथ देने लगे थे? कुछ सावरकर समर्थक नेहरू और डांगे की माफी का जिक्र करते हैं। क्या जेल से छूटकर नेहरू या डांगे भी अंग्रेजों के लिए रंगरूटों की भर्ती कर रहे थे?
क्या कभी वामपंथियों, समाजवादियों या कांग्रेसियों ने भी अंग्रेजों का साथ दिया? गांधी कभी भी अंग्रेजों की हत्या के पक्ष में नहीं थे तो क्या गांधी को अंग्रेजपरस्त कह दिया जाएगा?
यह सच है कि सावरकर 1910-11 तक क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थे और इसके लिए वे सम्मान के पात्र हैं। वे पकड़े गए और 1911 में उन्हें अंडमान की कुख्यात जेल में डाल दिया गया। उन्हें 50 वर्षों की सजा हुई थी, लेकिन सजा शुरू होने के कुछ महीनों में ही उन्होंने अंग्रेज सरकार के समक्ष याचिका डाली कि उन्हें रिहा कर दिया जाए।
इसके बाद उन्होंने कई याचिकाएं लगाईं। अपनी याचिका में उन्होंने अंग्रेज़ों से यह वादा किया कि ‘यदि मुझे छोड़ दिया जाए तो मैं भारत के स्वतंत्रता संग्राम से ख़ुद को अलग कर लूंगा और ब्रिट्रिश सरकार के प्रति अपनी वफादारी निभाउंगा।’ अंडमान जेल से छूटने के बाद उन्होंने यह वादा निभाया भी और कभी किसी क्रांतिकारी गतिविधि में न शामिल हुए, न पकड़े गए। सजा से बचने के लिए माफी एक रणनीति हो सकती है. मसला ये नहीं है कि सावरकर ने जेल से छूटने के लिए माफी मांगी, मसला ये है कि वे जेल से छूटकर अंग्रेजों के साथ और भारत की आजादी आंदोलन के खिलाफ हो गए।
सावरकर को सबसे महान बनाने और गांधी-नेहरू से बड़ा दिखाने की कोशिश करके दक्षिणपंथी उन्हें और नीचा दिखाते हैं। उन्हें ये कोशिश बंद कर देनी चाहिए।