सामान्य ज्ञान
गिलोय का वैज्ञानिक नाम है--तिनोस्पोरा कार्डीफोलिया । इसे अंग्रेजी में गुलंच कहते हैं। कन्नड़ में अमरदवल्ली , गुजराती में गालो , मराठी में गुलबेल , तेलगू में गोधुची ,तिप्प्तिगा , फारसी में गिलाई,तमिल में शिन्दिल्कोदी आदि नामों से जाना जाता है।
गिलोय में ग्लुकोसाइन ,गिलो इन , गिलोइनिन , गिलोस्तेराल तथा बर्बेरिन नामक एल्केलाइड पाए जाते हैं। ज्यादातर नीम के पेड़ के साथ इसकी बेल को चढ़ाया जाता है, जिससे गिलोय के गुण और बढ़ जाते हैं। नीम पर चढ़ी हुई गिलोय उसी का गुड अवशोषित कर लेती है ,इस कारण आयुर्वेद में वही गिलोय श्रेष्ठ मानी गई है जिसकी बेल नीम पर चढ़ी हुई हो। गिलोय को अमृता भी कहा जाता है क्योंकि यह स्वयं भी नहीं मरती है और उसे भी मरने से बचाती है , जो इसका प्रयोग करे। कहा जाता है की देव दानवों के युद्ध में अमृत कलश की बूंदें जहां -जहां पड़ी , वहां वहां गिलोय उग गई । इसकी बेल बड़ी तेजी से बढ़ती है। इसके पत्ते पान की तरह बड़े आकार के हरे रंग के होते हैं। गर्मी के मौसम में आने वाले इसके फूल छोटे गुच्छों में होते हैं और इसके फल मटर जैसे अण्डाकार, चिकने गुच्छों में लगते हैं जो बाद में पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं। गिलोय के बीज सफेद रंग के होते हैं। जमीन या गमले में इसकी बेल का एक छोटा सा टुकड़ा लगाने पर भी यह उग जाती है और बड़ी तेज गति से स्वछन्द रूप से बढ़ती जाती है और जल्दी ही बहुत लम्बी हो जाती है।
कुछ तीखे कड़वे स्वाद वाली गिलोय देशभर में पाई जाती है। आयुर्वेद में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। आचार्य चरक ने गिलोय को वात दोष हरने वाली श्रेष्ठ औषधि माना है। वैसे इसका त्रिदोष हरने वाली, रक्तशोधक, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली, ज्वर नाशक, खांसी मिटाने वाली प्राकृतिक औषधि के रूप में खूब उपयोग किया जाता है। यह एक झाड़ीदार लता है। इसकी बेल की मोटाई एक अंगुली के बराबर होती है इसी को सुखाकर चूर्ण के रूप में दवा के तौर पर प्रयोग करते हैं।
टाइफायड, मलेरिया, कालाजार, डेंगू, एलीफेंटिएसिस, विषम ज्वर, उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, धातु विकार, यकृत निष्क्रियता, तिल्ली बढऩा, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, झाइयां, झुर्रियां, कुष्ठ आदि में गिलोय का सेवन आश्चर्यजनक परिणाम देता है। यह शरीर में इंसुलिन उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। रोगों से लडऩे, उन्हें मिटाने और रोगी में शक्ति के संचरण में यह अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है। सचमुच यह प्राकृतिक ‘कुनैन’ है। इसका नियमित प्रयोग सभी प्रकार के बुखार, फ्लू, पेट कृमि, रक्त विकार, निम्न रक्तचाप, हृदय दौर्बल्य, क्षय (टीबी), मूत्र रोग, एलर्जी, उदर रोग, मधुमेह, चर्म रोग आदि अनेक व्याधियों से बचाता है। गिलोय भूख भी बढ़ाती है। इसकी तासीर गर्म होती है। एक बार में गिलोय की लगभग 20 ग्राम मात्रा ली जा सकती है। इसमें प्रचुर मात्रा में एन्टी आक्सीडेन्ट होते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर सर्दी, जुकाम, बुखार से लेकर कैंसर तक में लाभकारी है।