विचार / लेख
- डॉ. परिवेश मिश्रा
मोदोजी ने स्टेडियम को अपने नाम क्या किया, कल से सोशल मीडिया में उनका बचाव करते भक्त कांग्रेस के नेताओं के नामों पर स्थापित संस्थाओं की लिस्ट जारी करने में लग गए हैं। यह भी आरोप दिख रहे हैं कि नेहरूजी और इंदिरा जी ने प्रधानमंत्री रहते स्वयं को भारत रत्न दे दिया था।
भारत में स्थानों/संस्थाओं के साथ नेताओं के नाम चस्पा करने की परम्परा पुरानी रही है। अंग्रेज (क्वीन) विक्टोरिया और राजाओं (किंग जॉर्ज और एडवर्ड जैसे) के नामों का उपयोग करते थे। अब अधिकांश नाम बदल दिये गये हैं वह अलग बात है।
कॉलेज में मेरा दाखिला जबलपुर में हुआ था। वह कॉलेज अब नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज कहलाता है। पहला साल पूरा होते ही स्थानांतरित हो कर मैं भोपाल चला गया। भोपाल विश्वविद्यालय (बाद में बरकतुल्ला विश्वविद्यालय) उसी वर्ष स्थापित हुआ था और सुभाष स्कूल की बिल्डिंग से संचालित होता था। आगे की मेरी शिक्षा भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में हुई। जीवन में बहुत कम शहर ऐसे मिले जहां का मुख्य मार्ग महात्मा गांधी (एम.जी. रोड) के नाम पर न हो। करेंसी नोट ने तो गांधी की पहुंच देश के हर व्यक्ति तक पहुंचा दी थी।
गांधी से लेकर दीन दयाल उपाध्याय तक, सभी दलों ने-जिसे जब मौका मिला-नामकरण करने का अवसर लपक कर हथियाया। सभी नामों की लिस्ट बनाना समय की बर्बादी है। आमतौर पर नामकरण एक तरह से नेताओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का तरीका रहा है। उन व्यक्तियों के योगदान को रेखांकित करने का तरीका।कलकत्ता को दिल्ली से जोडऩे वाले नेशनल हाईवे क्र. 2 को अंग्रेज ग्रैन्ड ट्रंक (जी.टी.) रोड कहते थे। समय समय पर इसे उत्तरपथ, फौजों के कारण जरनैली सडक़ और सडक़-ए-आज़म का नाम भी मिला। एक समय काबुल तक पहुंचाने वाली इस सडक़ को आजादी के बाद इसके निर्माता के नाम पर शेरशाह सूरी मार्ग कर दिया गया था।
बेशक अपवाद भी रहे हैं- हर काल और हर क्षेत्र में, हर राजनैतिक दल के दौर में। दूध का धुला कोई नहीं है।
एक बात अवश्य कॉमन रही- नामकरण नेताओं की स्मृति में किए गए-मरणोपरांत। भारतीय संस्कृति में किसी के जीवनकाल में इस तरह के नामकरण करना (या फोटो पर माला अर्पण करना) अशुभ माना जाता रहा है (या कम से कम अशोभनीय या अवांछित)। पहला चर्चित अपवाद मायावती जी रहीं। दूसरे अब मोदी जी बने हें। बीच में एक कम चर्चित अपवाद और आया था जब छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार ने हर ग्राम पंचायत में दो-दो लाख की राशि दे कर ‘अटल चौक’ बनवा दिए थे। अटल जी तब तक जीवित और स्वस्थ थे।
भारत रत्न इंदिराजी को पाकिस्तान पर ऐतिहासिक सैन्य विजय प्राप्त करने तथा बांग्लादेश के नाम से एक नये राष्ट्र के निर्माण में उनकी भूमिका की पृष्ठभूमि में 1971 में दिया गया था। पंडित जवाहरलाल नेहरू को यह पुरस्कार 1955 में दिया गया था। तकनीकी रूप से आरोप लगाया जा सकता हैं कि उन्होंने प्रधानमंत्री के पद का उपयोग कर स्वयं इसे हासिल कर लिया। किन्तु यह सच नहीं होगा। नेहरू को यह सम्मान स्वतंत्रता आंदोलन तथा उसके बाद देश के नव-निर्माण में उनकी भूमिका के कारण दिया गया था। और वे अकेले नहीं थे। उनके साथ डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. ज़ाकिर हुसैन, गोविन्द वल्लभ पन्त, डॉ. बिधान चन्द्र रॉय जैसे लोगों को भी भारत रत्न सम्मान दिया गया था। और ये सारे के सारे उस समय राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, गृह मंत्री, मुख्यमंत्री जैसे पदों पर आसीन थे। सिर्फ नेहरू का उल्लेख करना पूर्वाग्रह-ग्रसित माना जाएगा।