सामान्य ज्ञान
बेंवर खेती , कृषि का ही एक पारंपरिक तरीका है। शोध बताते हैं कि इस प्रकार की खेती करने से मिट्टी-पानी के संरक्षण होता है। साथ ही इससे जैव विविधता बनी रहती है और पर्यावरण का संरक्षण होता है। यह पूरी तरह प्राकृतिक, जैविक व पर्यावरण को सुरक्षित रखने का एक उपाय है।
बेंवर खेती बिना जुताई की जाती है। गर्मी के मौसम में पेड़ों की छोटी-छोटी टहनियों, पत्ते, घास और छोटी झाडिय़ों को एकत्र कर उनमें आग लगा दी जाती है और फिर उसकी राख की पतली परत पर बीजों को बिखेर दिया जाता है जब बारिश होती है तो उन बीजों में अंकुरण हो जाता है।
एक जगह पर केवल एक फसल ली जाती है। अगले साल दूसरी जगह पर फसल उगाई जाती है। इस खेती को स्थानांतरित खेती भी कहते हैं। इस प्रकार की खेती के अंतर्गत कोदो, कुटकी, ज्वार,सलहार (बाजरा) मक्का, सांवा, कांग, कुरथी, राहर, उड़द, कुरेली, बरबटी, तिली जैसे अनाज की फसल ली जाती है। अध्ययन बताते हैं कि बेंवर खेती से जंगल को नुकसान नहीं पहुंचता है। इसमें बड़े लकड़ी पेड़ों को नहीं जलाया जाता। बल्कि इससे जैव विविधता कायम रहती है, जो कार्बन उत्सर्जन के नुकसान को नियंत्रित करती है।