सामान्य ज्ञान

राग दरबारी
24-Feb-2021 1:02 PM
राग दरबारी

राग दरबारी श्रीलाल शुक्ल का लिखा एक ऐसा उपन्यास है जो गांव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है। शुरू से आखिर तक इतने निस्संग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिंदी का शायद यह पहला वृहत् उपन्यास है। ‘राग दरबारी’ का लेखन 1964 के अंत में शुरू हुआ और अपने अंतिम रूप में 1967 में समाप्त हुआ। 1968 में इसका प्रकाशन हुआ और 1969 में इस पर इसे साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला। तब से अब तक इसके दर्जनों संस्करण और पुनर्मुद्रण हो चुके हैं। रागदरबारी विख्यात लेखक श्रीलाल शुक्ल की प्रसिद्ध व्यंग्य रचना है।
हिंदी का एक और कालजयी उपन्यास है श्रीलाल शुक्ल का  राग दरबारी , जिसने लोकप्रियता के नए मानदंड स्थापित किए। इस उपन्यास से पहले श्रीलालजी के दो उपन्यास  सूनी घाटी का सूरज  (1957) और  अज्ञातवास (1962) और एक व्यंग्य-संग्रह  अंगद का पांव  (1958) आ चुके थे, किंतु उनकी पहचान व्यंग्य-लेखक की ही थी। उनके इसी रूप का विस्तार हुआ राग दरबारी में। एक सरकारी अफसर रहते हुए वे इस उपन्यास को छपा सकते हैं या नहीं, इसको लेकर सरकारी ढांचे में लंबे समय तक जो उधेड़बुन मची रही, उसकी एक रोचक अंतर्कथा स्वयं श्रीलालजी के शब्दों में हिंदी पाठकों के सामने आ चुकी है। 
छपते ही शीर्ष पर आखिरकार सरकार इसके लिए राजी हो गई और उपन्यास की पांडुलिपि भगवती बाबू (भगवतीचरण वर्मा) के माध्यम से राजकमल प्रकाशन में आई। वहां से इसको तत्काल प्रकाशित किया गया और प्रकाशित होते ही, यानी इसके ठीक अगले वर्ष 1969 का साहित्य अकादमी पुरस्कार घोषित हो गया। तब से लेकर अब तक राग दरबारी की बिक्री में रुकने या सुस्त पडऩे का कोई क्षण नहीं आया। अब तक इसके 27 सजिल्द संस्करण हो चुके हैं और 1984 में पहला पेपरबैक संस्करण निकलने के बाद से अब तक इस रूप में भी 43 संस्करण निकल चुके हैं।

समान अवसर आयोग 
केंद्र  सरकार ने समान अवसर आयोग के गठन के मसौदे को 20 फरवरी 2014 को  मंजूरी प्रदान की है।  यह वैधानिक आयोग नौकरिओं एवं शिक्षा में अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले भेदभाव के मामलों की जांच करेगा। इसके साथ ही साथ समान अवसर आयोग यह भी सुनिश्चित करेगा कि किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव न हो। समान अवसर आयोग के गठन की सिफारिश जस्टिस सच्चर कमेटी ने की थी।
 प्रारंभ में  इस आयोग के गठन को लेकर अन्य राष्ट्रीय आयोगों और मंत्रालयों की शिकायत थी की सामान अवसर आयोग को जो अधिकार दिए जाने है, उससे उनके अधिकारों का अतिक्रमण  होगा। इस स्थिति को देखते हुए रक्षा मंत्री एके एंटनी की अध्यक्षता में एक मंत्री समूह गठित किया गया था, जिसने यह तय किया कि समान अवसर आयोग सिर्फ अल्पसंख्यकों से जुड़े मामलों को ही देखेगा।
 

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