सामान्य ज्ञान
गौत्र शब्द का अर्थ होता है वंश/कुल । गौत्र प्रणाली का मुख्या उद्देश्य किसी व्यक्ति को उसके मूल प्राचीनतम व्यक्ति से जोडऩा है उदहारण के लिए यदि को व्यक्ति कहे की उसका गोत्र भरद्वाज है तो इसका अभिप्राय यह है की उसकी पीढ़ी वैदिक ऋषि भारद्वाज से प्रारंभ होती है।
हिन्दुओं में एक ही गौत्र में विवाह नहीं किए जाते हैं। खाप पंचायत ने तो एक ही गौत्र में विवाह को गैर कानूनी करार दे दिया है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप- इन सप्त ऋषियों और आठवें ऋषि अगस्ति की संतान गौत्र कहलाती है। ब्राह्मणों के विवाह में गौत्र-प्रवर का बड़ा महत्व है। पुराणों और स्मृति ग्रंथों में बताया गया है कि यदि कोई कन्या संगौत्र हो, किंतु सप्रवर न हो अथवा सप्रवर हो किंतु संगौत्र न हो, तो ऐसी कन्या के विवाह को अनुमति नहीं दी जाना चाहिए। यानी जिस व्यक्ति का गौत्र भारद्वाज है, उसके पूर्वज ऋषि भारद्वाज थे और वह व्यक्ति इस ऋषि का वंशज है। आगे चलकर गौत्र का संबंध धार्मिक परंपरा से जुड़ गया और विवाह करते समय इसका उपयोग किया जाने लगा।
ऋषियों की संख्या लाख-करोड़ होने के कारण गौत्रों की संख्या भी लाख-करोड़ मानी जाती है, परंतु सामान्यत: आठ ऋषियों के नाम पर मूल आठ गौत्र ऋषि माने जाते हैं, जिनके वंश के पुरुषों के नाम पर अन्य गौत्र बनाए गए। महाभारत के शांतिपर्व (297/17-18) में मूल चार गौत्र बताए गए हैं -अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु, जबकि जैन ग्रंथों में 7 गौत्रों का उल्लेख है- कश्यप, गौतम, वत्स्य, कुत्स, कौशिक, मंडव्य और वशिष्ठ। इनमें हर एक के अलग-अलग भेद बताए गए हैं जैसे कौशिक-कौशिक कात्यायन, दर्भ कात्यायन, वल्कलिन, पाक्षिण, लोधाक्ष, लोहितायन। विवाह निश्चित करते समय गौत्र के साथ-साथ प्रवर का भी ख्याल रखा जाता है। प्रवर भी प्राचीन ऋषियों के नाम है पर अंतर यह है कि गौत्र का संबंध रक्त से है, जबकि प्रवर से आध्यात्मिक संबंध है।
मत्स्यपुराण में ब्राह्मण के साथ संगौत्रीय (एक ही गौत्र) शतरूपा के विवाह पर आश्चर्य और खेद प्रकट किया गया है। गौतमधर्म सूत्र में भी असमान प्रवर विवाह का निर्देश दिया गया है। असमान गौत्रीय के साथ विवाह न करने पर भूल पुरुष के ब्राह्मणत्व से च्युत हो जाने तथा चांडाल पुत्र-पुत्री के उत्पन्न होने की बात कही गई। अपर्राक कहता है कि जान-बूझकर संगौत्रीय कन्या से विवाह करने वाला जातिच्युत हो जाता है।
बोधायन के हिसाब से अगर कोई व्यक्ति भूल से भी संगौत्रीय कन्या से विवाह करता है, तो उसे उस कन्या का मातृत्वत् पालन करना चाहिए । गौत्र जन्मना प्राप्त नहीं होता, इसलिए विवाह के पश्चात कन्या का गौत्र बदल जाता है और उसके लिए उसके पति का गौत्र लागू हो जाता है।
विभिन्न समुदायों में गौत्र की संख्या अलग अलग है। प्राय: तीन गौत्र को छोड़ कर ही विवाह किया जाता है एक स्वयं का गौत्र, दूसरा मां का गौत्र (अर्थात मां ने जिस कुल/गौत्र में जन्म लिया हो) और तीसरा दादी का गौत्र। कहीं कहीं नानी के गौत्र को भी माना जाता है और उस गौत्र में भी विवाह नहीं होता। हमारी धार्मिक मान्यता के अनुसार एक ही गौत्र या एक ही कुल में विवाह करना पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया है। यह प्रतिबंध इसलिए लगाया गया क्योंकि एक ही गौत्र या कुल में विवाह होने पर दंपत्ति की संतान अनुवांशिक दोष के साथ उत्पन्न होती है। विज्ञान भी इसकी मान्यता नहीं देता है।