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छत्तीसगढ़ एक खोज : पांचवीं एवं अंतिम कड़ी
21-Feb-2021 1:25 PM
छत्तीसगढ़ एक खोज : पांचवीं एवं अंतिम कड़ी

किशोर नरेन्द्र की रायपुर यात्रा

-रमेश अनुपम
उन्हीं दिनों  बूढ़ापारा में शुक्ला भवन के पास स्थित पुत्री शाला ( वर्तमान में शासकीय प्राथमिक शाला) से  बाईं ओर जाने वाली सडक़ पर जोरावलमल डागा का मकान था। लंबा चौड़ा आंगन तथा साथ में एक बड़ा सा कुंआ वाला यह मकान विश्वनाथ दत्त को अपने परिवार के अनुरूप लगा। 

यह मकान डे भवन तथा कोतवाली के पास भी था सो रहने के लिए इस मकान को ही सबसे उपयुक्त माना गया। कहा जाता है कि इसी मकान में विश्वनाथ दत्त अपने परिवार के साथ लगभग सवा साल तक रहे।

भूतनाथ डे के छोटे सुपुत्र अनादिनाथ डे की सुपुत्री श्रीमती आभा बसु के पति श्री निखिल रंजन बसु कुछ वर्षों पूर्व जब वे जीवित थे तो मुझे पुत्री शाला के निकट स्थित उस मकान तक ले गए थे जहां पर आज शरद डागा और गंगाराम शर्मा का मकान है। निखिल रंजन बसु का यह अभिमत था कि विश्वनाथ दत्त डे भवन में तीन महीने तक रहने के पश्चात रायपुर प्रवास तक इसी घर में किराए पर रहे थे और यह पूर्व में जोरावलमल डागा का मकान था।

रायपुर से प्रकाशित ‘नवभारत’ के 31 अगस्त 1983 में स्वामी विवेकानंद के प्रवास से संबंधित एक समाचार प्रकाशित हुआ था। इस समाचार में उन दिनों जीवित 87 वर्षीय जे.एन.चौधरी जो बूढ़ापारा में ही रहते थे से विवेकानंद के रायपुर प्रवास को लेकर बातचीत की गई थी। 

जे एन चौधरी ने अपने पिता रायबहादुर देवेन्द्र नाथ चौधरी के मुंह से सुना था कि विश्वनाथ दत्त पहले मेघ मार्केट के पास स्थित डे भवन में रहते थे फिर बाद में वे अपने परिवार सहित शुक्ला भवन के पास जोरावलमल डागा की जमीन पर स्थित मकान में आ गए थे।

स्वामी विवेकानंद के रायपुर प्रवास को लेकर भी कई तरह  के अभिमत हैं। विश्वनाथ दत्त अपने परिवार सहित किस सन में रायपुर आए इसे लेकर भी मत भिन्नता रही है।
 
कुछ लोग यह मानते हैं कि विश्वनाथ दत्त अपने परिवार के साथ सन 1877 में रायपुर आए थे साथ ही वे यह भी मानते हैं कि जिस समय विश्वनाथ दत्त और भूतनाथ डे अपने परिवार सहित कोलकाता से रायपुर आ रहे थे उस समय भूतनाथ डे की पत्नी श्रीमती एलोकेशी डे की गोद में छह माह का शिशु हरिनाथ डे भी था। 

हरिनाथ डे का जन्म 12 अगस्त 1877 में हुआ था इस हिसाब से फरवरी 1878 में हरिनाथ डे की आयु छह माह की होती है। इस तरह कई विद्वान यह मानते हैं कि विश्वनाथ दत्त 1878 के फरवरी माह में रायपुर आए थे।

बांग्ला के शोधकर्ता प्रताप मुखोपाध्याय जिन्होंने विवेकानंद के रायपुर प्रवास पर लंबे समय तक शोध कार्य किया है, उन्होंने अपने ग्रंथ ‘नाना बिध प्रसंग ‘के एक अध्याय’ स्वामी विवेकानंद प्रथम रायपुर गमन एवं अब स्थिती प्रसंग में लिखा है कि स्वामी विवेकानन्द अपने परिवार सहित फरवरी 1878  में रायपुर आए थे और जुलाई 1879 में वापस कोलकाता गए थे।

इसके प्रमाण में वे बताते हैं कि स्वामी विवेकानंद 1879 में वापस कोलकाता पहुंचते हैं तथा 1 नवंबर 1879 को स्वामी विवेकानंद एंट्रेंस एग्जाम का फार्म भरते हैं और 1 दिसंबर से होने वाली परीक्षा में सम्मिलित होते हैं। 1880 में वे एंट्रेंस एग्जाम की परीक्षा पास करते हैं। 

स्वामी विवेकानंद की कोलकाता वापसी का वर्णन करते हुए श्री सत्येन्द्र नाथ मजूमदार ने अपने ग्रंथ  ‘विवेकानंद चरित’ में लिखा है ‘लगभग दो वर्ष बाद प्रियदर्शन नरेंद्रनाथ शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन प्राप्त कर रायपुर से अपने मित्रों  के बीच पुन:  लौटे। बहुत दिनों के बाद उन्हें पाकर उन लोगों के आंनद की सीमा न रही।लगभग दो वर्ष तक अनुपस्थित रहने के कारण प्रवेशिका श्रेणी में भर्ती होने में उन्हें कुछ अड़चन हुई। अंत में उनके गुनमुग्ध शिक्षकों  ने अधिकारियों की विशेष अनुमति पाकर उन्हे भर्ती कर लिया। दो वर्ष की पाठ्य पुस्तकों को कठोर परिश्रम से एक ही वर्ष में समाप्त कर वे प्रवेशिका परीक्षा के लिए तैयार हुए। जब वे प्रशंसा के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए तब उनके मित्र और परिवारवालों के आंनद का पारावर न रहा।’

किशोर नरेंद्र के रायपुर प्रवास को लेकर भी श्री सत्येन्द्र नाथ मजूमदार ने अपने इसी ग्रंथ में लिखा है ‘नरेंद्रनाथ ने दो वर्ष तक। पिता के साथ रहकर केवल ज्ञान लाभ ही नहीं किया बल्कि उनके किशोर चरित्र पर पिता के महानता की गंभीर छाप भी पड़ी। तेजस्विता, दूसरों को दुखी देखकर दुखी होना, विपत्ति में धैर्य को न छोड़ते हुए निर्विकार चित्त से अपना कर्तव्य करते जाना, नरेंद्र ने अपने पिता से ही सीखा था।’

इस तरह किशोर नरेंद्र का रायपुर प्रवास किशोर नरेंद्र के लिए किसी स्वर्णिम युग से कम नहीं था।स्वामी विवेकानंद अपने रायपुर प्रवास के सुमधुर दिनों को कभी भुला नहीं पाए थे। 

रायपुर ने किशोर नरेंद्र को जो कुछ दिया वह अतुलनीय है और स्वामी विवेकानन्द ने जो  दुनिया को दिया वह वंदनीय है।  स्वामी विवेकानन्द के जीवन के स्वर्णिम पल इसी शहर में बीते हैं। कोलकाता के पश्चात सबसे लंबा प्रवास उनका रायपुर में ही रहा है। रायपुर शहर ने ही किशोर नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद बनने की सुदीर्घ यात्रा को संभव बनाया है। 

दुखद यह है कि स्वामी विवेकानंद के रायपुर प्रवास की स्मृति को अक्षुण्ण बनाने की दिशा में कोई सार्थक प्रयास अब तक नहीं किया गया है।
आज की युवा पीढ़ी स्वामी विवेकानंद के रायपुर प्रवास के बारे में जानकर गौरवान्वित हो सके ऐसी पहल भी दुर्भाग्यवश अभी तक छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा नहीं की गई है।
 (अगले अंक में पढि़ए रायपुर और महान शख्सियत भूतनाथ डे...)

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