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सुमित्रा नायक: रग्बी के लिए जिन्होंने मैदान और उसके बाहर संघर्ष किया
19-Jan-2021 1:09 PM
सुमित्रा नायक: रग्बी के लिए जिन्होंने मैदान और उसके बाहर संघर्ष किया

सुमित्रा नायक

यह साल 2008 की बात है जब आठ साल की एक लड़की ओडिशा में एक खेल के मैदान के बाहर खड़ी थी और खिलाड़ियों का एक समूह अंडे के आकार की एक गेंद के पीछे भाग रहा था.

वो लड़की रग्बी उस समय पहली बार देख रही थी और वो थीं सुमित्रा नायक जो आज भारत की राष्ट्रीय महिला रग्बी टीम की महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं.

हालांकि, सुमित्रा ने भुवनेश्वर के कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ के मैदान में जब यह खेल खेलना शुरू किया तब उनकी उम्र बहुत कम थी और वो अपने जीवन के शुरुआत में ही काफ़ी कठिन दिन देख चुकी थीं.

शुरुआती चुनौतियां
सुमित्रा का जन्म 8 मार्च 2000 को ओडिशा के जजपुर ज़िले के डुबुरी गांव में हुआ था लेकिन उनकी मां ने अपने तीन बच्चों के साथ गांव छोड़ दिया था क्योंकि उनके पति उनके साथ मार-पीट करते थे.

उनके पिता ने उनके परिवार को एक बार ज़िंदा जलाने की कोशिश की थी लेकिन वे सभी लोग बच गए.

इन सब हालात से बेचैन उनकी मां अपने बच्चों को इस माहौल से अलग रखकर उनकी परवरिश करना चाहती थीं. इसके बाद सुमित्रा का दाख़िला कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ में चौथी कक्षा में कराया गया.

इस संस्थान में आदिवासी समुदाय के बच्चों को पढ़ाई और खेल की ट्रेनिंग मुफ़्त दी जाती है.

सुमित्रा की मां एक ब्यूटी पार्लर चलाती हैं. वो रग्बी के बारे में कुछ नहीं जानती थीं और उन्होंने जब एक बार सभी खिलाड़ियों को एक-दूसरे पर गिरते देखा तो उन्हें अपनी बेटी की चिंता हुई.

लेकिन सुमित्रा ने अपनी मां को मनाया और कहा कि उन्हें ख़ुद का ध्यान रखने के लिए अलग-अलग तरह की तकनीक सिखाई जाती है.

सुमित्रा कहती हैं कि उन्होंने अपना खेल जारी रखा और वो यहां तक इसलिए पहुंची क्योंकि उनकी मां ने उस समय हिम्मत दिखाई थी.

जब मैदान में उतरीं
सुमित्रा ने मैदान पर उतरते ही रग्बी में नाम कमाना शुरू कर दिया और मेडल के ढेर लगे दिए.

यह वह समय था जब हर खेल कुछ नया सीखने का अनुभव दे रहा था और इसने उन्हें अपना खेल सुधारने का अवसर भी दिया.

2016 में उनका चयन देश की राष्ट्रीय टीम में हुआ और दुबई एशियन चैंपियनशिप (अंडर-18) में कांस्य पदक जीता.

ओडिशा की रहने वालीं सुमित्रा का कहना है कि उन्हें विदेशी धरती पर खेलने में अच्छा लगता है क्योंकि वहां पर बहुत सारे लोगों से मिलने और उनसे सीखने को मिलता है.

2019 में हुई एशिया वुमंस रग्बी चैंपियनशिप उनके और भारतीय टीम के लिए बेहद ख़ास टूर्नामेंट था क्योंकि टीम में आमतौर पर होने वाले सात की जगह 15 खिलाड़ियों को शामिल किया गया था.

टीम ने चुनौतियों का बड़ा अच्छे से सामना किया और टीम ने कांस्य पदक जीतने में सफलता पाई.

क्या है लक्ष्य
सुमित्रा चाहती हैं कि भारतीय टीम एशिया में अपनी रैंकिंग सुधारते हुए 9/10 से पांच पर आए और ओलंपिक खेलों में भाग ले.

यह युवा खिलाड़ी सोचती हैं कि लड़कियों को अपने फ़ैसले लेने की आज़ादी होनी चाहिए क्योंकि आज भी लड़कियों के फ़ैसले उनके परिजन लेते हैं.

वो कहती हैं कि लड़कियों को लड़कों से कमतर नहीं देखा जाना चाहिए और समाज के बदलने से पहले परिजनों को इस सोच को बदलना होगा.

हालांकि, सुमित्रा के लिए शिक्षा और ट्रेनिंग की कोई समस्या नहीं रही है लेकिन उनका मानना है कि रग्बी को अभी भी करियर बनाना कठिन है क्योंकि यह नौकरी नहीं दे सकता और न ही इसमें कोई बड़ा पुरस्कार होता है.

वो कहती हैं कि भारत सरकार ने अभी तक इस खेल को मान्यता भी नहीं दी है.

(यह लेख बीबीसी को ईमेल के ज़रिए सुमित्रा नायक के भेजे जवाबों पर आधारित है.) (bbc.com)

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