सामान्य ज्ञान

महुआ
16-Jan-2021 7:57 AM
 महुआ

महुआ एक भारतीय उष्णकटिबंधीय वृक्ष है जो उत्तर भारत के मैदानी इलाकों और जंगलों में बड़े पैमाने पर पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम मधुका लोंगफोलिआ है। यह यह एक तेजी से बढऩे वाला वृक्ष है जो लगभग 20 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ सकता है। इसके पत्ते आमतौर पर वर्ष भर हरे रहते हैं। यह पादपों के सपोटेसी परिवार से सम्बन्ध रखता है। यह शुष्क पर्यावरण के अनुकूल ढल गया है, यह मध्य भारत के उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन का एक प्रमुख पेड़ है।

गर्म क्षेत्रों में इसकी खेती इसके स्निग्ध (तैलीय) बीजों, फूलों और लकड़ी के लिए की जाती है। कच्चे फलों की सब्जी भी बनती है। पके हुए फलों का गूदा खाने में मीठा होता है। प्रति वृक्ष उसकी आयु के अनुसार सालाना 20 से 200 किलो के बीच बीजों का उत्पादन कर सकते हैं। इसके तेल का प्रयोग (जो सामान्य तापमान पर जम जाता है) त्वचा की देखभाल, साबुन या डिटर्जेंट का निर्माण करने के लिए और वनस्पति मक्खन के रूप में किया जाता है। ईंधन तेल के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है। तेल निकलने के बाद बचे इसके खल का प्रयोग जानवरों के खाने और उर्वरक के रूप में किया जाता है। इसके सूखे फूलों का प्रयोग मेवे के रूप में किया जा सकता है। इसके फूलों का उपयोग भारत के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों मे शराब के उत्पादन के लिए भी किया जाता है। कई भागों में पेड़ को उसके औषधीय गुणों के लिए उपयोग किया जाता है, इसकी छाल को औषधीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया जाता है। कई आदिवासी समुदायों में इसकी उपयोगिता की वजह से इसे पवित्र माना जाता है।
 महुए का फूल 20-22 दिन तक लगातार टपकता है । महुए के फूल में चीनी का प्राय: आधा अंश होता है, इसी से पशु, पक्षी और मनुष्य सब इसे चाव से खाते हैं । इसके रस में विशेषता यह होती है कि उसमें रोटियां पूरी की तरह पकाई जा सकती हैं । इसका प्रयोग हरे और सूखे दोनों रूपों में होता है । हरे महुए के फूल को कुचलकर रस निकालकर पूरियां पकाई जाती हैं और पीसकर उसे आटे में मिलाकर रोटियां बनाते हैं । जिन्हें  महुअरी  कहते हैं। सूखे महुए को भूनकर उसमें पियार, पोस्ते के दाने आदि मिलाकर कूटते हैं । इस रूप में इसे लाटा कहते हैं । इसे भिगोकर और पीसकर आटे में मिलाकर  महुअरी  बनाई जाती है । हरे और सूखे महुए लोग भूनकर भी खाते हैं । गरीबों के लिये यह बड़ा ही उपयोगी होता है । यह गौंओ, भैसों को भी खिलाया जाता है जिससे वे मोटी होती हैं और उनका दूध बढ़ता है । 
महुए की शराब को संस्कृत में  माध्वी और आजकल के गंवरा  ठर्रा कहते हैं । महुए का फूल बहुत दिनों तक रहता है और बिगडऩा नहीं । इसका फल परवल के आकार का होता है और  कलेंदी  कहलाता है । इसे छील उबालकर और बीज निकालकर तरकारी भी बनाई जाता है । इसके बीच में एक बीज होता है जिससे तेल निकलता है । वैद्यक में महुए के फूल को मधुर, शीतल, धातु- वर्धक तथा दाह, पित्त और बात का नाशक, हृदय को हितकर औऱ भारी लिखा है । इसके फल को शीतल, शुक्रजनक, धातु और बलबंधक, वात, पित्त, तृपा, दाह, श्वास, क्षयी आदि को दूर करने वाला माना है । छाल रक्तपितनाशक और व्रणशोधक मानी जाती है ।  
 

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