विचार / लेख

किसान अपने ही खेत में मजदूर बनकर रह जाएगा
03-Dec-2020 3:54 PM
   किसान अपने ही खेत में मजदूर बनकर रह जाएगा

-गिरीश मालवीय

किसानों का आंदोलन दिल्ली में पूरे शबाब पर है और उधर योगी आदित्यनाथ ने मुंबई में अडानी ग्रुप की खेती-किसानी से जुड़ी कम्पनी अडानी एग्री फ्रेश लिमिटेड के एमडी से मुलाकात की है। यह बड़ी महत्वपूर्ण मुलाकात है

वैसे आप देखिए कि कमाल की टाइमिंग है। कुछ दिनों पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कटाई के बाद के प्रबंधन और फार्म एसेट्स की देखभाल के लिए कृषि-उद्यमिता, स्टार्टअप्स, और ऐसी ही एग्री फ्रेश, एग्री लॉजिस्टिक कंपनियों के लिए कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत 1 लाख करोड़ रुपये की फाइनेंसिंग सुविधा देने की बात की है और योगीजी अडानी एग्री कंपनी के एमडी से मिल रहे हैं।

मोदीजी के इस 1 लाख करोड़ के फंड की सबसे खास बात है ये है कि ब्याज पर 3 फीसदी की सब्सिडी मिलेगी। वहीं 2 करोड़ रुपये तक की क्रेडिट गारंटी भी दी जाएगी। एक लाख करोड़ रु. का लोन 4 सालों में दिया जाएगा। इस साल 10000 करोड़ रु. और अगले 3 सालों में 30-30 हजार करोड़ रु. बतौर लोन दिए जाएंगे। इस फाइनेंसिंग फैसिलिटी के तहत लोन चुकाने में मोरेटोरियम की भी सुविधा मिलेगी। अधिकतम मोरेटोरियम अवधि 2 साल और न्यूनतम 6 महीने होगी। यानी अडानी-अ3बानी को सस्ती दरों पर कÞषि क्षेत्र में लोन देने की पूरी तैयारी है

दरअसल अडानी-अंबानी जैसे बड़े कारपोरेट अपने विदेशी सहयोगियों के साथ मिलकर पंजाब की ही नहीं बल्कि पूरे देश की खेती को कंट्रोल करना चाहते है उसके लिए जितने फंड की जरूरत है वो मोदी जी बैंकों के माध्यम से दबाव डालकर उपलब्ध करवा रहे हैं।

अडानी-अंबानी जैसे कारपोरेट को कृषि क्षेत्र में लोन देने का यह सिलसिला कोई आज का नहीं है बल्कि बहुत पुराना है। रिजर्व बैंक के मुताबिक नरेंद्र मोदी की सरकार में सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने साल 2016 में कुल 615 खातों में कुल 58 हजार 561 करोड़ रुपये का एग्रीकल्चर लोन ट्रांसफर किया! यानी औसतन हरेक खाताधारक को लगभग 95 करोड़ रुपये का कृषि लोन मिला है। ऐसे में स्पष्ट है कि ये लोन किसी किसान के खाते में तो नहीं जमा किया गया होगा।

आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि कृषि लोन का एक भारी हिस्सा मोटे लोन के रूप में कुछ चुनिंदा लोगों को दिया जा रहा है। ये चुनिंदा लोग मोदीजी के मित्र उद्योगपति हैं।

कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि किसानों के नाम पर यह लोन बड़े कारपोरेट की एग्री-बिजनेस कंपनियों को दिया जा रहा है।

दरअसल आरबीआई ने देश में कुछ आर्थिक क्षेत्रों को उच्च प्राथमिकता देने और उनके विकास के लिए बैंकों को ये निर्देश जारी किया था कि वे अपने कुल लोन का एक निश्चित हिस्सा कृषि, रूस्रूश्व आदि क्षेत्रों में दे इसे प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग कहते हैं। इसके तहत बैंकों को अपने पूरे लोन का 18 प्रतिशत हिस्सा कृषि के लिए देना होता है, लेकिन यह लोन जो छोटे सीमांत किसानों को दिया जाना चाहिए था वह दिया जाता अडानी अम्बानी महिंद्रा टाटा जैसे बड़े कारपोरेट को।

किसान संगठन रायतू स्वराज्य वेदिका के संस्थापक किरन कुमार विसा कहते हैं कि  ‘कई एग्री-बिजनेस करने वाली बड़ी कंपनियां कृषि ऋण की श्रेणी के तहत लोन ले रही हैं। रिलायंस फ्रेश जैसी कंपनियां एग्री-बिजनेस कंपनी के दायरे में आती हैं। ये सभी कृषि उत्पाद खरीदने-बेचने का काम करती हैं और गोदाम बनाने या इससे जुड़ी अन्य चीजों के निर्माण के लिए कृषि ऋण श्रेणी के तहत लोन लेती हैं।’

कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा कहते हंै कि किसानों के नाम पर लोन देने की घोषणा करके सस्ते दर पर बड़ी-बड़ी कंपनियों को लोन दिया जा रहा है। ये किसानों की समस्या हल करने का दिखावा है ‘ये कहां के किसान हैं कि जिन्हें 100 करोड़ के लोन दिए जा रहे हैं। ये सारा दिखावा है। किसान के नाम पर क्यों इंडस्ट्री को लोन दिया जा रहा है?’

जब यही लोन माफ कर दिया जाता है तो कहा जाता है कि हमने किसानों का लोन माफ कर दिया, बहुत सालों से धीरे-धीरे करके इन एग्री बिजनेस कंपनियों की फंडिंग कर इन्हें मजबूत बनाया जा रहा है और आने वाले कुछ सालों में कांट्रेक्ट फार्मिंग ओर अपने लॉजिस्टिक सपोर्ट के कारण अडानी-अंबानी की ये कंपनियां पूरे देश की कृषि को अपने प्रभाव में ले लेगी और किसान अपने ही खेत में मजदूर बनकर रह जाएगा।

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