विचार / लेख
अंतर-धार्मिक विवाहों के खिलाफ नफरत के मौजूदा माहौल में इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक फैसला एक ताजा बयार की तरह आया है. अदालत ने कहा है कि दो वयस्क अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं.
अदालत एक अंतर-धार्मिक विवाह के बाद दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे के खिलाफ दायर किए गए मामले पर सुनवाई कर रही थी. सलामत अंसारी और प्रियंका खरवार ने पिछले साल अगस्त में शादी की थी. विवाह से ठीक पहले प्रियंका ने इस्लाम स्वीकार कर लिया था और अपना नाम बदल कर 'आलिया' रख लिया था.
इस पर प्रियंका के परिवार वालों ने सलामत के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी थी जिसमें उस पर अपहरण और जबरन विवाह करने जैसे आरोप लगाए थे. नाबालिग बच्चियों के खिलाफ अपराध की रोकथाम के लिए बने कानून पॉक्सो के तहत भी सलामत के खिलाफ आरोप लगाए गए थे.
लेकिन पूरे मामले को सुनने के बाद अदालत ने सारे आरोप हटा दिए और एफआईआर को रद्द कर दिया. अपने फैसले में अदालत ने कहा कि धर्म की परवाह ना करते हुए अपने पसंद के साथी के साथ जीवन बिताने का अधिकार जीवन के अधिकार और निजी स्वतंत्रता के अधिकार में ही निहित है.
अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर दो बालिग व्यक्ति अपनी मर्जी से एक दूसरे के साथ रह रहे हैं तो इसमें किसी दूसरे व्यक्ति, परिवार और यहां तक कि सरकार को भी आपत्ति करने का अधिकार नहीं है. यह फैसला देते वक्त अदालत ने अपने उन पिछले फैसलों को भी गलत बताया जिनमें कहा गया था कि विवाह के लिए धर्मांतरण प्रतिबंधित है और ऐसे विवाह अवैध हैं.
We do not see Priyanka and Salamat as Hindu and Muslim, rather as two grown up individuals who out of their own free will and choice are living together peacefully and happily over a year. Allahabad High Court
— Bar & Bench (@barandbench) November 24, 2020
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अंतर-धार्मिक विवाहों को लेकर इस समय देश में बहस छिड़ी हुई है. आभूषणों की एक कंपनी के एक टीवी विज्ञापन में अंतर-धार्मिक विवाह दिखाए जाने का इतना विरोध हुआ कि कंपनी ने विज्ञापन वापस ले लिया. कई विरोधियों ने मुस्लिम पुरुषों द्वारा हिंदू स्त्रियों से शादी को 'लव जिहाद' की संज्ञा दी है. हाल ही में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने भी अंतर-धार्मिक विवाहों पर नाराजगी जताई थी और इन्हें रोकने के लिए नए कानून लाने की घोषणा की थी.