सामान्य ज्ञान
पारे लगे थर्मामीटर और ब्लड प्रेसर मापने की मशीन पर जल्द बैन लग सकता है। वल्र्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने इस पर बैन की तैयारी शुरू कर दी है। 140 देशों के प्रतिनिधियों ने पारे का इस्तेमाल खत्म करने के लिए पहली बार संयुक्त राष्ट्र के एक समझौते पर दस्तखत किया है। लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहे पारे के प्रतिकूल असर की वजह से इसको बैन लगाने का निर्णय लिया गया है।
थर्मामीटर का प्रयोग हम बुखार का पता लगाने के लिए करते हैं। इससे शरीर का तापमान पता लगाया जाता है। पारंपरिक थर्मामीटर में मरकरी यानी पारा होता है, जो तापमान के साथ फैलता जाता है, लेकिन, अब अधिकांश घरों में पारंपरिक थर्मामीटर की जगह डिजिटल थर्मामीटर होते हैं, क्योंकि यह अधिक सुरक्षित होता है और यह काफी तेजी से काम भी करता है। डिजिटल थर्मामीटर में इलेक्ट्रिक रेसिस्टर यानी विद्युत प्रतिरोधी होता है, जिसे थर्मीस्टर के नाम से जाना जाता है। यह ताप-संवेदनशील होता है। जब तापमान बढ़ता है, तो थर्मीस्टर अधिक सुचालक हो जाता है। ऐसा तब होता है, जब हमारे शरीर का तापमान लगभग 37 डिग्री सेल्सियस (99 डिग्री फारेनहाइट) हो जाता है। इसके बाद एक माइक्रोकंप्यूटर इस सुचालक को मापकर तापमान का पता लगाता है और यह थर्मामीटर की स्क्रीन पर दिखाता है।
थर्मामीटर को लेकर सबसे पहला प्रयोग एंडर्स सेल्सियस ने किया था। उन्होंने एक स्केल को पानी के क्वथनांक 100 डिग्री और जमनांक शून्य डिग्री पर मापा। उन्होंने यह प्रयोग दबाव में पानी के व्यवहार को आधार बनाकर किया। बाद में, कार्ल लिनस ने इसमें थोड़ी हेरफेर की। फिर आगे चलकर गैब्रिएल फारेनहाइट ने तीन अवस्थाओं स्थिर, जमनांक और क्वथनांक पर केंद्रित एक तापमापी बनाया।