विचार / लेख

जब सबसे सटीक वैज्ञानिक नजरिए के साथ बना भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर कभी लोकप्रिय नहीं हो पाया
19-Oct-2020 11:03 AM
जब सबसे सटीक वैज्ञानिक नजरिए के साथ बना भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर कभी लोकप्रिय नहीं हो पाया

- पवन वर्मा

आज़ादी के समय भारत के अलग-अलग हिस्सों और समुदायों के बीच तकरीबन 30 तरह के कैलेंडर/पंचांग प्रचलित थे. इतने कैलेंडर होने की वजह से अमूमन तीज-त्यौहार की तिथियां अलग-अलग हो जाने से अक्सर उन्हें मनाए जाने की तारीख को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती थी. इसका असर प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर भी पड़ता था. तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू इतने सारे कैलेंडरों को सांस्कृति समृद्धि की निशानी तो स्वीकार करते थे लेकिन वे यह भी मानते थे कि इतनी तरह के कैलेंडर देश के एकीकरण में बाधक हैं. देश के लिए एकीकृत कैलेंडर की ज़रूरत महसूस करते हुए 1952 में उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान परिषद के अंतर्गत एक कैलेंडर सुधार समिति का गठन किया था.

देश के प्रसिद्ध खगोल विज्ञानी मेघनाद साहा इसके अध्यक्ष थे. एकीकृत कैलेंडर के निर्माण में इस समिति के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि यहां प्रचलित कुछ कैलेंडरों का आधार नितांत धार्मिक था. इसलिए समिति को डर हुआ कि एक राष्ट्रीय कैलेंडर की बात लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकती थी. नेहरू जी के इस बात का एहसास था, इसलिए उन्होंने शुरूआत में ही डॉ साहा को एक पत्र लिखकर स्पष्ट कर दिया कि जिस ग्रिगोरियन कैलेंडर का इस्तेमाल दुनिया के तमाम देशों में सरकारी स्तर पर होता है, उसमें भी कई वैज्ञानिक खामियां हैं. इसलिए हमारे राष्ट्रीय कैलेंडर के निर्माण में यह ध्यान रखा जाएगा कि यह पूरी तरह से विज्ञानसम्मत हो. नेहरू जी की इस बात के प्रचार-प्रसार से इस मसले पर विवाद की गुंजाइश खत्म हो गई.

कैलेंडर सुधार समिति ने 1955 में अपनी रिपोर्ट दी और राष्ट्रीय कैलेंडर के निर्माण के लिए कुछ सिफारिशें कीं. इनमें सबसे महत्वपूर्ण सिफारिश थी कि कैलेंडर का आधार शक संवत (78 ईसवी से शुरू) होगा और इसका पहला दिन ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से 22 मार्च (21 मार्च को सूर्य विषुवत रेखा पर ठीक सीधा चमकता है) से शुरू होगा. चैत्र इस कैलेंडर का पहला और फाल्गुन आखिरी महीना होगा. इन सिफारिशों के आधार पर बना कैलेंडर 22 मार्च, 1957 को सरकारी स्तर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ स्वीकार कर लिया गया.

आमतौर पर सरकारी गजट, आकाशवाणी, सरकार द्वारा आम जनता के लिए जारी संदेशों/प्रपत्रों में इस कैलेंडर की तिथि का उल्लेख किया जाता है, लेकिन यह कैलेंडर वैज्ञानिक नजरिए से अधिक शुद्ध होने के बाद भी प्रचार-प्रसार के अभाव में कभी आम जनता के बीच प्रचलित नहीं हो पाया.(satyagrah)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news