विचार / लेख

तनिष्क के ऐड में कोई ‘लव जिहाद’ नहीं, एक खूबसूरत संदेश है
18-Oct-2020 10:24 AM
तनिष्क के ऐड में कोई ‘लव जिहाद’ नहीं, एक खूबसूरत संदेश है

- Eesha 

इस हफ़्ते ज्यूलरी ब्रैंड ‘तनिष्क’ का एक विज्ञापन बहुत चर्चा में है। लगभग एक मिनट लंबे इस विज्ञापन में कहानी है एक हिंदू औरत की जिसकी शादी एक मुस्लिम परिवार में हुई है। औरत अपनी मुस्लिम सास के साथ अपने ससुराल में किसी उत्सव की तैयारियां होते देखती है, फिर जब वह बाहर बगीचे में आती है तो पता चलता है कि उसी की गोद-भराई की तैयारियां हो रही हैं। भावुक होकर वह अपनी सास से पूछती है, “मां, यह रस्म तो आपके यहां होती भी नहीं होगी न?” इस पर सास जवाब देती है, “बेटी को खुश रखने का रस्म तो हर घर में होता है न?” विज्ञापन तनिष्क के नए ‘एकत्वम’ कलेक्शन का है। 

यह विज्ञापन बेहद खूबसूरत है और बड़ी संजीदगी से एक महत्वपूर्ण सामाजिक संदेश भेजता है। हम इस समय एक ऐसे राजनीतिक वातावरण में जी रहे हैं जहां सुनियोजित तरीके से दो समुदायों के बीच घृणा फैलाई जा रही है और हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसे में इस तरह के सामाजिक संदेश बहुत ज़रूरी हैं जो हमें सद्भाव और सहिष्णुता जैसे मूल्यों के बारे में याद दिलाएं, और एक बेहतर समाज का निर्माण करने के लिए हमें प्रोत्साहित करें। 

अफ़सोस की बात यह है कि हमारे समाज के एक विशेष तबके को यह बात नहीं पची। मिनटों में ट्विटर पर #BoycottTanishq ट्रेंड होना शुरू हो गया। इन लोगों का कहना यह था कि यह विज्ञापन हिंदू-विरोधी है और हिंदू लड़कियों को ‘लव जिहाद’ या मुस्लिम लड़कों के साथ प्रेम संबंध बनाने के लिए प्रेरित करता है। बात इस हद तक पहुंच गई कि ट्रोल्स ने तनिष्क के ब्रैंड मैनेजर मंसूर ख़ान का नाम और पता तक ढूंढ निकाला और उन्हें और तनिष्क के अन्य कर्मचारियों को धमकियां भी देने लगे। नतीजा यह हुआ कि तनिष्क ने यह विज्ञापन हटा लिया और ट्विटर पर एक बयान दिया जिसमें यह कहा गया कि कंपनी अपने कर्मचारियों और सहयोगियों की निजी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यह विज्ञापन वापस ले रहा है। गुजरात में तनिष्क के एक शोरूम ने भी इस विज्ञापन के लिए क्षमा मांगते हुए अपने दरवाज़े पर एक नोटिस लगाया।

‘लव जिहाद’ की आलोचना हम पहले भी कर चुके हैं। यह कुछ भी नहीं बल्कि समाज द्वारा महिलाओं को नियंत्रित करने और सांप्रदायिक नफ़रत बनाए रखने के लिए एक काल्पनिक हौवा है। यह हमें दूसरे समुदाय को नफ़रत की नज़र से देखने के लिए मजबूर करता एक राजनीतिक कौशल मात्र है। इसके पीछे की मानसिकता इस्लामोफोबिक के साथ साथ स्त्री-द्वेषी भी है क्योंकि यह महिलाओं की निजी स्वतंत्रता, उनके साथी चुनने के अधिकार पर हस्तक्षेप करता है। 

इस पूरे विवाद से जो एक अच्छी चीज़ निकली है वह यह है कि अंतरधार्मिक विवाहित दंपतियों ने इस विज्ञापन के लिए समर्थन जताते हुए सोशल मीडिया पर अपने प्रेम और विवाह की कहानियां साझा की हैं। उन सबका यही कहना रहा है कि प्रेम धर्म और जाति की सीमाओं से परे है

विरोधियों से यह बात हज़म नहीं होती कि विज्ञापन की नायिका एक ऐसी औरत है जो अपनी मर्ज़ी से अपने धर्म, अपने समुदाय के बाहर वैवाहिक संबंध बनाकर बेहद खुश है। एक ऐसी औरत जो अपने हिसाब से अपनी निजी ज़िंदगी जीती है और खुद को इन स्वघोषित धर्मरक्षकों के रचे झूठे प्रोपगैंडा की शिकार नहीं बनने देती। ऐसी औरतें ही धार्मिक कट्टरवाद के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाती हैं क्योंकि इस कट्टरवाद के नस-नस में भरी है सदियों पुरानी पितृसत्तात्मक सोच। जब धर्म के ठेकेदार महिलाओं को काबू में नहीं रख पाते, तब उनकी खोखली मर्दानगी को गंभीर चोट पहुंचती है। तब शुरू होता है ट्विटर पर ‘बॉयकॉट’ वाले हैशटैग ट्रेंड करना, धमकियां देना, तोड़फोड़ और अराजकता मचाना, और छिछली भाषा में महिलाओं पर टिप्पणी करना। विषैली मर्दानगी का सबसे घिनौना चेहरा तब देखने को मिलता है जब धर्म ‘संकट में’ आता है।

ऐसी कट्टरवादी सोच रखनेवाले कई लोग यह कह रहे हैं कि फ़िल्मों और विज्ञापनों में सिर्फ़ मुस्लिम मर्दों के साथ हिंदू औरतें क्यों नज़र आती हैं? कभी किसी हिंदू मर्द के साथ कोई मुस्लिम औरत क्यों नहीं दिखती? इसके पीछे भी वही पुरुषवादी सोच काम करती है जो महिलाओं को संपत्ति और संसाधन से ज़्यादा कुछ नहीं समझती। अपने घर की औरत दूसरे समुदाय के मर्द के साथ चली जाए तो इसे अपमान से कम नहीं माना जाता, और इसका हिसाब बराबर उस समुदाय की किसी महिला से संबंध बनाने की इच्छा आए दिन सोशल मीडिया पर प्रकट की जाती है। वैसे तो यह बात सच है कि हर समुदाय के लोगों को सामाजिक नियमों की परवाह किए बिना एक दूसरे से रिश्ते बनाने का अधिकार होना चाहिए, पर जब इसे मर्दानगी साबित करने और अपने समुदाय में वृद्धि लाने की प्रतियोगिता बना दिया जाता है, समस्या तब होती है। 

इस पूरे विवाद से जो एक अच्छी चीज़ निकली है वह यह है कि अंतरधार्मिक विवाहित दंपतियों ने इस विज्ञापन के लिए समर्थन जताते हुए सोशल मीडिया पर अपने प्रेम और विवाह की कहानियां साझा की हैं। उन सबका यही कहना रहा है कि प्रेम धर्म और जाति की सीमाओं से परे है और विपरीत संस्कृतियों और समुदायों के लोग एक-साथ मिल-जुलकर रह सकते हैं अगर उनमें प्यार और दोस्ती का भाव बना रहे। और इसका विरोध सिर्फ़ वही लोग करेंगे जो हमारे देश की एकता और अखंडता को तोड़ना चाहते हों। 

‘लव जिहाद’ के नामपर डर वही लोग फैला रहे हैं जो हिंसा और द्वेष का माहौल बनाकर अपने राजनैतिक मकसद सिद्ध करना चाहते हों। इस पीढ़ी को, खासकर औरतों को ऐसे प्रोपगैंडा से बचकर रहना चाहिए और अपने प्रेम जीवन में धर्म या जाति को बाधा नहीं बनने देना चाहिए। उम्मीद है हम सिर्फ़ विज्ञापनों में ही नहीं बल्कि असल ज़िंदगी में भी ऐसे संबंध देखें जहां धर्म या जाति कोई मायने नहीं रखते।

(यह लेख पहले फेमिनिज्मइनइंडियाडॉटकॉम पर प्रकाशित हुआ है।)

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