सामान्य ज्ञान
चंद्रगुप्त मौर्य के समय में भारत में आए हुए यूनानी राजदूत मैगस्थनीज़ ने अपने इंडिका नामक ग्रंथ में इस स्थान का शूरसेन लोगों के एक बड़े नगर के रूप में उल्लेख किया है। एरियन नामक एक अन्य यूनानी लेखक ने मैगस्थनीज़ के लेख का उद्धरण देते हुए लिखा है कि शौरसेनाई लोग हेराक्लीज (श्रीकृष्ण) को बहुत आदर की दृष्टि से देखते हैं। इनके दो बड़े नगर हैं- मेथोरा (मथुरा) और क्लीसोबोरा।
इस ग्रंथ में उन्होंने आगे लिखा कि -उनके राज्य में जोबरस या जोमनस (यमुना) नदी बहती है जिसमें नावें चलती हैं। प्राचीन रोम के इतिहास लेखक प्लिनी ने मेगस्थनीज के लेख का निर्देश करते हुए लिखा है कि जोमनस या यमुना, मेथोरा और क्लीसोबोरा के बीच से बहती है। प्लिनी के लेख से इंगित होता है कि यूनानियों ने शायद गोकुल को ही क्लीसोबोरा कहा है क्योंकि यमुना के आमने-सामने गोकुल और मथुरा-ये दो महत्वपूर्ण नगर सदा से प्रसिद्ध रहे हैं किंतु गोकुल का यूनानी उच्चारण क्लीसोबोरा किस प्रकार हुआ यह तथ्य संदेहास्पद है। मेक्किडल के अनुसार क्लीसोबोरा का संस्कृत रूपांतर कृष्णपुर होना चाहिए। यह शायद उस समय गोकुल को जनसामान्य का दिया हुआ नाम हो।
जनरल एलेक्जेंडर कनिंघम ने भारतीय भूगोल लिखते समय यह माना कि क्लीसीबोरा नाम वृन्दावन के लिए है। इसके विषय में उन्होंने लिखा है कि कालिय नाग के वृन्दावन निवास के कारण यह नगर कालिकावर्त नाम से जाना गया। यूनानी लेखकों के क्लीसोबोरा का पाठ वे कालिसोबोर्क या कालिकोबोर्त मानते हैं। उन्हें इंडिका की एक प्राचीन प्रति में काइरिसोबोर्क पाठ मिला, जिससे उनके इस अनुमान को बल मिला।
वृन्दावन में रहने वाले के नाग का नाम, जिसका दमन श्रीकृष्ण ने किया, कालिय मिलता है ,कालिक नहीं। पुराणों या अन्य किसी साहित्य में वृन्दावन की संज्ञा कालियावर्त या कालिकावर्त नहीं मिलती। अगर क्लीसोबोरा को वृन्दावन मानें तो प्लिनी का कथन कि मथुरा और क्लीसोबोरा के मध्य यमुना नदी बहती थी, असंगत सिद्ध होगा, क्योंकि वृन्दावन और मथुरा दोनों ही यमुना नदी के एक ही ओर हैं।
अन्य विद्धानों ने मथुरा को केशवपुरा अथवा आगरा जि़ला का बटेश्वर (प्राचीन शौरीपुर) माना है। मथुरा और वृन्दावन यमुना नदी के एक ओर उसके दक्षिणी तट पर स्थित है जब कि मैगस्थनीज के विवरण के आधार पर एरियन और प्लिनी ने यमुना नदी दोनों नगरों के बीच में बहने का विवरण किया है। केशवपुरा, जिसे श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पास का वर्तमान मुहल्ला मल्लपुरा बताया गया है, उस समय में मथुरा नगर ही था। ग्राउस ने क्लीसोवोरा को वर्तमान महावन माना है।
कनिंघम ने अपनी 1882-83 की खोज-रिपोर्ट में क्लीसोबोरा के विषय में अपना मत बदल कर इस शब्द का मूलरूप केशवपुरा माना है और उसकी पहचान उन्होंने केशवपुरा या कटरा केशवदेव से की है। केशव या श्रीकृष्ण का जन्मस्थान होने के कारण यह स्थान केशवपुरा कहलाता है। कनिंघम का मत है कि उस समय में यमुना की प्रधान धारा वर्तमान कटरा केशवदेव की पूर्वी दीवाल के नीचे से बहती रही होगी और दूसरी ओर मथुरा शहर रहा होगा। कटरा के कुछ आगे से दक्षिण-पूर्व की ओर मुड़ कर यमुना की वर्तमान बड़ी धारा में मिलती रही होगी।
पुष्यमित्र शुंग
पुष्यमित्र शुंग अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ का सेनापति था। उसने 184 ई.पू. में सम्राट बृहद्रथ की हत्या की तथा मगध में शुंग-वंश के शासन की स्थापना की। पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मïण था। उसने 184 ई.पू. से 148 ई.पू. तक शासन किया। पुष्यमित्र एक योग्य एवं प्रतापी शासक था। पुष्यमित्र शुंग ने राजा बनने के पश्चात सबसे पहले अपने साम्राज्य का पुनर्संगठन किया, क्योंकि अशोक के उत्तराधिकारियों के कमजोर होने के कारण साम्राज्य की स्थिति अत्यंत खराब हो चुकी थी।
राज्य को शक्तिशाली बनाने के पश्चात पुष्यमित्र ने साम्राज्य विस्तार का प्रयास किया तथा सर्वप्रथम विदर्भ पर विजय प्राप्त की। पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल की सर्वप्रथम घटना यवनों द्वारा भारत का अभियान था। प्रारंभ में पुष्यमित्र को यवनों के विरूद्घ सफलता मिली, किंतु बाद में यवन सेनापति मीनेंडर ने पुष्यमित्र के राज्य के अनेक भू-भागों पर अधिकार कर लिया। मीनेंडर के वापस लौट जाने के पर पुष्यमित्र ने पुन: उन क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। पुष्यमित्र शुंग पर बौद्घों पर अत्याचार करने का आरोप लगाया जाता है, किंतु यह सत्य प्रतीत नहीं होता। अधिकांश इतिहासकार उसे धर्म सहिष्णु ही मानते हैं। पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु 148 ई. पू. में हुई।