सामान्य ज्ञान
सितंबर 2015 के चौथे सप्ताह में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने राष्ट्रीय कूटलेखन मसौदा नीति जारी कर दिया। इस नीति का उद्देश्य सरकारी एजेंसियों, व्यापारों एवं नागरिकों के बीच साइबर स्पेस में अधिक सुरक्षित संचार एवं वित्तीय लेन–देन के लिए कूटलेखन प्रौद्योगिकियों और उत्पादों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना है।
इस मसौदा नीति का प्रारूप सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 84 ए और धारा 69, जो कूटलेखन और विकोडन के तरीकों की व्यवस्था के बारे में है, के तहत बनाया गया है।
राष्ट्रीय कूटलेखन नीति का उद्देश्य साइबर स्पेस में राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण सूचना प्रणालियों और नेटवर्क समेत लोगों, व्यापारों, सरकार के लिए सुरक्षित सूचना माहौल और लेनेदेन को सक्षम बनाना है। उभरते वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था के समकालिक होना, सुरक्षा सुनिश्ति करने और डाटा की गोपनीयता हेतु कूटलेखन के उपयोग को प्रोत्साहित करना और सरकार समेत सभी लोगों द्वारा डिजिटल हस्ताक्षर का व्यापक उपयोग, इसके उद्देश्य हैं।
यह सभी केंद्रीय और राज्य सरकार के विभागों, सांविधिक संगठनों, कार्यकारी निकायों, व्यापारों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, अकादमिक संस्थानों, सरकारी कर्मचारियों और नागरिकों पर लागू है। यह इसके तहत कवर किए जाने वाली एजेंसियों और व्यक्तियों के बीच भंडारण एवं संचार के कूटलेखन के उपयोग को प्रोत्साहित करता है। नीति के तहत केंद्र और राज्य सरकार के विभागों के अलावा सभी संगठनों और नागरिकों को लेन-देन की तारीख से 90 दिनों तक टेक्स्ट सूचना को रखना चाहिए और कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा मांगे जाने पर इन्हें दिखाना चाहिए।
वडगांव समझौता
वडगांव समझौता (13 जनवरी 1779,) भारत के पहले मराठा युद्ध (1775-82) के दौरान संपन्न समझौता है जिसके अनुसार, रघुनाथ राव (मराठा महासंघ के नाममात्र के नेता) को पेशवा या कम से कम अपने नवजात भतीजे का संरक्षक नियुक्त किया गया, जिससे मराठा साम्राज्य में अंग्रेज़ों के हस्तक्षेप के प्रयास भी समाप्त हो गए।
कॉकबर्न और कर्नल की ब्रिटिश सेना को मराठा सेनाओं द्वारा पुणे (पूना) से 37 किमी दूर वडगांव में घेरने और समझौते के लिए मजबूर करने के बाद यह संधि हुई। इसके अंतर्गत 1773 के बाद से ब्रिटिश सेनाओं द्वारा हथियाए गए सालसेट द्वीप सहित सभी मराठा क्षेत्र लौटाने; बंगाल से बढ़ती आ रही ब्रिटिश सेनाओं को रोकने; भड़ौच (वर्तमान भरुच) जि़ले के राजस्व का एक भाग मराठा प्रमुख सिंधिया को देने की शर्तें रखी गई थीं। बंगाल में ब्रिटिश अधिकारियों ने इन शर्तों को मानने से इनकार कर दिया, जिससे पहला मराठा युद्ध 1782 तक खिंच गया और रघुनाथ को छोडऩे तथा सालसेट की वापसी होने पर ही खत्म हुआ।