संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पासवर्ड से अधिक भरोसा करें सरकारों की बदनीयत पर...
24-Sep-2020 6:16 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पासवर्ड से अधिक भरोसा करें सरकारों की बदनीयत पर...

देश में किसानों और मजदूरों के हितों के खिलाफ कहे जा रहे कानून थोक में बन रहे हैं, और संसद में उन्हें विपक्ष की गैरमौजूदगी में ध्वनिमत से इस तरह पारित किया जा रहा है कि मानो कपिल शर्मा के कॉमेडी शो में नामौजूद दर्शकों की रिकॉर्ड की हॅंसी और खिलखिलाहट बजाई जा रही हो। दूसरी तरफ देश के टीवी चैनलों पर किसानों और मजदूरों को कोई जगह न मिल जाए इसलिए कंगना और नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो मिलकर तमाम बुलेटिनों को भर दे रहे हैं, और मानो दीपिका पादुकोन का चेहरा काफी न रहा हो, उसके वॉट्सऐप की बातचीत भी एक-एक शब्द मीडिया में आ रही है। ऐसे चटपटे मौके पर भला मीडिया के अपने नीति और सिद्धांत की बात सोचकर भला किस चैनल को भूखे मरना है, चैनल वाले क्या किसानों के साथ टंग जाएं? 

लेकिन अभी जो जानकारी सामने आ रही है, उसे कुछ और खबरों के साथ जोडक़र देखना जरूरी है। गुजरात के आकार पटेल नाम के एक पत्रकार या सामाजिक कार्यकर्ता के तीन ट्वीट को लेकर एक जुर्म दर्ज हुआ है कि उन्होंने जातिवादी नफरत फैलाने की कोशिश की है। उन्हें पुलिस ने अपना मोबाइल फोन जमा कराने के लिए कहा है। लोगों को याद होगा कि देश के एक और प्रमुख शांतिप्रिय लेखक, दिल्ली के प्राध्यापक अपूर्वानंद को भी पुलिस ने हिंसा भडक़ाने के आरोप में अपना फोन जमा कराने का नोटिस दिया है। 

यहां हमारी फिक्र सिर्फ यह है कि आज सोशल मीडिया पर किसी की लिखी गई महज एक लाईन के खिलाफ देश में कहीं भी एक एफआईआर दर्ज की जा सकती है, उसके बाद वहां की पुलिस या जांच एजेंसी ऐसे मोबाइल को, लैपटॉप या कम्प्यूटर को जब्त कर सकती है। लेकिन जब्त करने के साथ ही उस व्यक्ति की पूरी निजी जिंदगी उस जांच एजेंसी के हाथ रहेगी, और उसकी जानकारी इसी तरह छांट-छांटकर मीडिया में लीक की जा सकेगी जिस तरह पिछले चार दिनों में संसद की खबरों के मुकाबले मोर्चे पर तैनात करने के लिए मुम्बई के नशे के संदेश खड़े किए जा रहे हैं। 

लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि उनके फोन पर से मिटाई जा चुकी हर बात को वापिस हासिल किया जा सकता है, उनके हर संदेश, हर फोटो या वीडियो को वापिस लाया जा सकता है। बहुत से लोग इस धोखे में हैं कि वॉट्सऐप पर संदेश सुरक्षित रहते हैं। वे सुरक्षित तभी तक रहते हैं जब तक फोन या कम्प्यूटर पुलिस या जांच एजेंसी के हाथ न लग जाए। एक बार हाथ लगे उपकरण तमाम राज उगल देते हैं, मिटाए हुए भी, बंद किए हुए खातों के भी, और आपके साथ-साथ आपके आसपास के तमाम लोगों को एक मोबाइल फोन हमाम के तमाम नंगे बनाकर रख देता है। 

आज फिक्र महज यह नहीं है कि आपको कोई जुर्म कर रहे हैं या नहीं, आज फिक्र यह भी है कि आपके खिलाफ कहीं कोई एक फर्जी रिपोर्ट लिखा दे, आपके फोन-कम्प्यूटर जब्त हो जाएं, आपके ई-मेल और सोशल मीडिया खाते जांच एजेंसी के हाथों खुल जाएं, और उनके सारे नए-पुराने संदेश, रखे हुए या मिटाए हुए फोटो-वीडियो, सब कुछ राजनीतिक ताकतों के हाथ लग जाएं। अभी कल ही छत्तीसगढ़ में भाजपा के एक प्रवक्ता की फेसबुक पोस्ट पर कांग्रेस के नेताओं ने पुलिस में शिकायत की है, और इस आदमी के फोन-कम्प्यूटर जब्ती से बस एक कदम दूर खड़े हैं।
 
अब हालत यह है कि लोगों की जासूसी करने के लिए लोगों के फोन सुनना, उनके कॉल डिटेल्स निकालना, ऐसे नाजुक काम करने का खतरा भी उठाने की जरूरत नहीं है। हिन्दुस्तान में तो इतने धर्म हैं और लोगों की धार्मिक भावनाएं कदम-कदम पर आहत होती रहती हैं, इतनी जातियां हैं कि लोग किसी भी बात को अपनी जाति के खिलाफ नफरत फैलाने की हरकत मान सकते हैं, इसके बाद लोगों के निजी फोन-कम्प्यूटर जब्त करना आसान बात हो जाती है। 

हमने इस कॉलम में भी, और इस अखबार के दूसरे स्तंभों में भी एक अमरीकी फिल्म ‘एनेमी ऑफ द स्टेट’ का जिक्र किया है जो कि सन् 2000 में जारी हुई थी, और जिसमें एक नौजवान वकील के पीछे अमरीका की सरकार का एक ताकतवर मंत्री सरकार की तमाम एजेंसियों को लेकर टूट पड़ता है, और किस तरह उसकी जिंदगी का हर पल नंगा कर दिया जाता है, किस हद तक उसकी निगरानी होती है, किस तरह उसके घर के चप्पे-चप्पे पर माइक्रोफोन और कैमरे लगा दिए जाते हैं, उसका पीछा किया जाता है। यह कल्पना तो किसी ने 2000 के खासे पहले की होगी तभी 2000 में यह फिल्म बनकर जारी हो गई थी। आज के हिन्दुस्तान में अगर सरकार अपनी कानूनी और गैरकानूनी ताकत को लेकर किसी पर इस तरह टूट पड़े, तो सबसे आसान बात रहेगी उस व्यक्ति या उसके किसी करीबी के खिलाफ ऐसी रिपोर्ट दर्ज कराई जाए जिससे उसके फोन और कम्प्यूटर जब्त हो सकें। 

हम यह बात लोकतंत्र को हांकने वाली सरकारों की जानकारी के लिए नहीं लिख रहे हैं, सरकारों को तो इसकी तमाम जानकारी है कि इस हथियार का कैसे इस्तेमाल किया जाए, हम इसे उन लोगों के लिए लिख रहे हैं जो अपने लिखने और बोलने की वजह से, सडक़ों पर आंदोलन करने की वजह से सरकारों की नजरों में खटकते हैं, और जिनके खिलाफ उनके फोन-कम्प्यूटर को खड़ा करना आसान काम है। लोगों को अपने औजारों से ज्यादा सरकारों की नीयत पर भरोसा होना चाहिए, और अपने तौर-तरीके एकदम से काबू में रखना चाहिए। जहां तक पिछली बातों को मिटाने का सवाल है, तो इंटरनेट पर इसके लिए कई किस्म की सलाह मौजूद है, और लोग अपने इतिहास को थोड़ा सा कम तो कर सकते हैं, पूरा चाहे न मिटा सकें। जो लोग फोन और कम्प्यूटर पर कुछ नाजुक बात करते हैं, काम करते हैं, उन्हें ऐसी किसी जब्ती के पहले एक स्वच्छता पखवाड़ा चलाना चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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