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दंगल में कुश्ती करने को बेसब्र पहलवान
19-Sep-2020 5:27 PM
दंगल में कुश्ती करने को बेसब्र पहलवान

कोरोना ने आर्थिक और शारीरिक रूप से किया प्रभावित

नई दिल्ली, 19 सितम्बर (आईएएनएस)। शमशाद कई सालों से पहलवानी कर रहें हैं, 3 बार स्टेट लेवल चैंपियन भी रहे, वहीं अब नेशनल की तैयारी कर रहें हैं। पिछले 6 महीने से दंगल के आयोजन न होने से शमशाद काफी दुखी और हताश है।

शमशाद का कहना है, कोरोना बीमारी में लगी पाबंदियों से हमारे जीवन पर बहुत फर्क पड़ा है। ढंग से प्रैक्टिस नहीं हो पाई, जिसकी कारण हमारी स्पीड पर असर पड़ा। दंगलों का आयोजन न होने से हमारी आर्थिक स्थिति पर भी गहरा असर हुआ, जिसकी वजह से हम अपनी रोजमर्रा की डाइट पूरी नहीं कर सके।

उनका मानना है कि पहलवानों को वापस आने में कम से कम एक साल लगेगा, वहीं इस वक्त पहलवान बहुत पीछे चले गए हैं।

कोरोना वारयस की वजह से लगे लॉकडाउन में सभी पहलवान घर पर हैं। विभिन्न राज्यों में होने वाली कुश्ती भी इस बीमारी की वजह से नहीं हो सकी। दंगल में कुश्ती करने वाले पहलवानों के शरीर पर इसका काफी फर्क पड़ा है। इतना ही नहीं पहलवानों की आर्थिक स्थिति भी गड़बड़ा गई है।

कुश्ती दुनिया का सबसे पुराना खेल है। माना जाता है कि कुश्ती की शुरुआत भारत में हुई। पिछले एक दशक में भारतीय पहलवानों ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया और इन पहलवानों को बनाने में देश के कई अखाड़ों का अहम रोल भी रहा है।

स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया और भारतीय कुश्ती संघ से मान्यता प्राप्त दिल्ली का गुरु जसराम अखाड़े में कसरत करने के लिए पहलवानों ने आना शुरू कर दिया है। लॉकडाउन से पहले रोजाना करीब 100 पहलवान आकर कसरत किया करते थे। लेकिन इस वक्त अखाड़े में मुश्किल से ही करीब 20 पहलवान कसरत करने आ रहे हैं।

अखाड़े में 12 साल से लेकर 30 साल तक के उम्र से अधिक लोग पहलवानी करते हैं। कुश्ती सीखने के लिए पहलवान पहले दौड़, दंड बैठक लगाते हैं। हालांकि लंबे वक्त के बाद प्रैक्टिस कर रहे पहलवानों का वजन तो बढ़ा ही है, वहीं इनके खेल में भी परिवर्तन हुआ है। जिसे वापस हासिल करने के लिए पहलवानों को घंटो महनत करनी पड़ रही हैं।

अखाड़े के संचालक नीरज चौधरी ने आईएएनएस को बताया, सीनियर पहलवानों के लिए कुश्ती करना बहुत जरूरी होता है। पहलवानों के लिए कुश्ती ही जीवन है। दंगल में कुश्ती का मैच होने से एक पहलवान को आर्थिक सहायता मिलती है।

उन्होंने कहा, एक पहलवान डमी से प्रैक्टिस नहीं कर सकता, उसकी स्पीड पर काफी असर पड़ता है। वहीं वो अपने सामने वाले कि ताकत नहीं जान सकता। लेकिन कोरोना में दंगल न होने से नुकसान हुआ है लेकिन दूसरी तरफ बीमारी से बचने के लिए ठीक भी है। उन्होंने कहा, दरअसल दंगल का अधिकतर आयोजन गांव में होता है जहां मिट्टी पर कुश्ती की जाती है, इससे यूथ प्रभावित और जागरूक होता है। वहीं पहलवानी को बढ़ावा भी मिलता है।

उन्होंने आगे कहा कि हम तो यही उम्मीद करेंगे कि जल्द से जल्द हालात सामान्य हो, फिर से पहलवान कुश्ती करें, हालांकि कोरोना को लेकर सरकार जो भी दिशा निर्देश देगी उनका पालन करना बहुत जरूरी है।

दरअसल लॉकडाउन से पहले इस अखाड़े से अलग अलग राज्यों में दंगल में कुश्ती करने के लिए पहलवान जाया करते थे। हाल ये था कि हफ्ते में अधिकतर दिन पहलवान कुश्ती ही किया करते थे। लेकिन अब सभी पहलवान घरों पर बैठने को मजबूर हो चुके हैं।

पहलवानों को उम्मीद है कि ये बीमारी जल्द ही खत्म होगी। वहीं सभी एक बार फिर से पहले की तरह कुश्ती कर सकेंगे। अखाड़े के पहलवानों का कहना है, "हमारी रोजी रोटी ही यही है और इसके बंद होने से हम बहुत परेशान है, नये युवा हमसे प्रभावित होते है। उन्होंने कहा, लॉकडाउन में नये उम्र के बच्चे पहलवानी छोड़ गए, वहीं जिन बच्चों ने शुरुआत की थी उनकी प्रैक्टिस भी छूट गई। पहलवान अगर एक वक्त की कसरत छोड़ता है तो पूरे हफ्ते उस पर इसका असर दिखता है यहां तो पिछले 6 महीने से सब घरों में हैं।

उन्होंने आगे कहा, पहलवान की एक दिन की खुराक (खाना) 500 रुपये से 700 रुपये तक होती है। जिसमें दूध ,बादाम, किसमिस, फल ,जूस आदि सामग्री शामिल हैं और इसका खर्चा दंगलों में होने वाली कुश्ती से निकलता है।

इस अखाड़े से ओलंपिक, एशियन गेम्स, कॉमन वेल्थ, अर्जुन और ध्यानचंद अवार्ड से सम्मानित कई पहलवान हैं। गुरु जसराम जो की खुद एक अंतरराष्ट्रीय पहलवान रह चुके हैं उन्होंने 1970 में इस अखाड़े की स्थापना की थी और तब से अब तक कई बड़े पहलवान इस अखाड़े में तैयार किये जा चुके हैं। अखाड़े में पहलवानों से कोई फीस नहीं ली जाती। बस इस अखाड़े का उद्देश्य है कि देश के लिए ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी दे सकें।

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