संपादकीय
आखिर कांग्रेस पार्टी में बम फूटा। पार्टी में मायने रखने वाले दो दर्जन लोगों ने सोनिया गांधी को लगभग खुली चिट्ठी लिखकर संगठन में ऊपर से नीचे तक बदलाव की मांग की है, और कहा है कि कांग्रेस को एक पूर्णकालिक और प्रभावी लीडरशिप चाहिए। जाहिर है कि न तो सोनिया गांधी, और न ही राहुल पूर्णकालिक हैं, और किसी दूसरी वजह से न सही, इसी एक वजह से तो कम से कम प्रभावहीन हैं हीं। पार्टी के जिन लोगों ने बहुत कड़वा लगने वाला यह खत लिखा तो सोनिया गांधी के नाम पर है, लेकिन मीडिया में इसके पूरे के पूरे छप जाने की वजह से यह जाहिर है कि इसे भेजने के पहले ही इसे जनता के सामने भी रख देना तय किया गया था। वैसे भी जब किसी चिट्ठी पर देश भर में बिखरे हुए 23 बड़े कांग्रेस नेताओं के दस्तखत हो रहे हैं, तो वह चिट्ठी कम, पोस्टर अधिक है।
खैर, इसमें कोई बुराई नहीं है क्योंकि पिछले दिनों ही हमने कम से कम दो-तीन बार इस मुद्दे पर लिखा, और अभी चार-छह दिन पहले ही यह भी लिखा कि किसी कारोबार के मालिक को खुद मैनेजरी करके उसे नाकामयाब नहीं बनाना चाहिए, बल्कि एक काबिल मैनेजर रखकर कारोबार को कामयाब करना चाहिए। यह बात गांधी परिवार पर भी लागू होती है कि जब वह एक संगठन को चलाने के लिए पूरा वक्त नहीं दे पा रहा है, तो उसे मेहनत करने वाले लोगों को रखना चाहिए, काबिल ढूंढने चाहिए, और ऐसे लोगों को डूबे हुए टाइटैनिक को तलहटी से सतह तक लाने का जिम्मा देना चाहिए। लेकिन यह लिखते हुए भी हमें यह उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेस के इतने नेता खुलकर सोनिया गांधी को लिखेंगे, बल्कि जिस वक्त हमने लिखा, उस वक्त वे इस चिट्ठी को सोनिया को भेज भी चुके थे। इसमें लोकसभा और राज्यसभा के पार्टी के बड़े-बड़े नेता, आधा दर्जन भूतपूर्व मुख्यमंत्री, कई प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे हुए लोग शामिल हैं, जिनके नाम खबर में जा रहे हैं, इसलिए यहां पर उस फेहरिस्त को देने का कोई मतलब नहीं है।
इस चिट्ठी में कांग्रेस कार्यसमिति के चुनाव मांगे गए हैं, और पार्टी के पुनरूद्धार के लिए सामूहिक रूप से, संस्थागत नेतृत्व-तंत्र की बात कही गई है। इस चिट्ठी के बाद कल, सोमवार सुबह कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक है, और इस बैठक में इस पर चर्चा हो सकती है। हमारा मानना है कि हाल के बरसों में कांग्रेस पार्टी के भीतर यह सबसे बड़ा समुद्रमंथन है, जिससे कुछ लोगों को अमृत की उम्मीद होगी, और कुछ लोगों को जहर का खतरा दिखेगा। लेकिन हम भारतीय लोकतंत्र के हित में कांग्रेस का मजबूत बने रहना जरूरी मानते हैं, और उसके लिए इस पार्टी के भीतर ऐसी हलचल भी जरूरी है। अभी कई बरस से कांग्रेस संगठन के फैसले अजगर के करवट बदलने के फैसले से भी धीमी रफ्तार से होते थे। यह बात देश में मजाक हो चली कि हर चुनाव के बाद राहुल गांधी बिना किसी जनसूचना के निजी प्रवास पर विदेश चले जाते हैं, सोनिया गांधी उपलब्ध नहीं रहती हैं, प्रियंका गांधी अपने को मोटेतौर पर उत्तरप्रदेश तक सीमित रखती हैं, और पार्टी के बाकी बहुत से नेता जनता की राजनीति के पैमाने पर फॉसिल (जीवाश्म) हो चुके हैं। यह बात हम किसी नेता की उम्र को लेकर नहीं कह रहे, उनके जनाधार, और उनके जनसंघर्ष को लेकर कह रहे हैं।
कांग्रेस के इन नेताओं ने मोदी की कामयाबी की हकीकत को माना है, और अच्छा ही काम किया है क्योंकि हकीकत को माने बिना किसी बात का हल तो निकल नहीं सकता। और मोदी इस देश के राजनीतिक इतिहास की एक अनोखी कामयाबी बन चुके हैं, जो कि आने वाले वक्त में भी आसानी से हराने लायक नहीं दिखते। आज ही एक पुराने अखबारनवीस ने लिखा है कि मोदी को सिर्फ एक व्यक्ति हरा सकता है, खुद नरेन्द्र मोदी। ऐसी हकीकत के दौर में अगर कांग्रेस पार्टी छींके के नीचे बैठी बिल्ली की तरह लेटी रहेगी, तो उससे उसे कुछ हासिल नहीं होना है। दुनिया में लोकतंत्र, चुनाव, सोशल मीडिया, और जनधारणा-प्रबंधन के सारे के सारे पैमाने बदल चुके हैं, नए हथियार चलन में आ गए हैं, रोजाना के औजार भी तमाम ऑटोमेटिक हो गए हैं। ऐसे में एक पार्टी अपने को सवा सौ से अधिक साल पुरानी मानते हुए सवा सौ से अधिक साल पुराने तौर-तरीकों और हथियार-औजारों संग जीने की कोशिश अगर कर रही है, तो वह न तो भविष्य गढ़ रही, न ही वर्तमान में जी रही, वह महज इतिहास लिख रही है।
कांग्रेस अगर अपनी कल की कार्यसमिति में इस चिट्ठी के मुद्दों पर खुलकर चर्चा नहीं करती, तो यह जाहिर है कि राहुल की यह बात जुबानी जमाखर्च थी कि गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष होना चाहिए। अभी जब प्रियंका गांधी का एक इंटरव्यू आया जिसमें उन्होंने भाई की इस बात से सहमति जताई थी, तो अगले ही दिन कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने प्रियंका के बयान को साफ-साफ खारिज करने के बजाय यह कहकर खारिज सा कर दिया कि यह इंटरव्यू तो साल भर पहले दिया गया था, मानो इस एक साल में कांग्रेस इसरो पर सवार होकर अंतरिक्ष पहुंच चुकी हो, और हालात बदल गए हों। इस एक साल में कांग्रेस के हालात अगर किसी किस्म से बदले हैं, तो वे बद से बदतर ही हुए हैं। ऐसे में राहुल और प्रियंका का कुछ कहना, और फिर कांग्रेस प्रवक्ता का उससे एक किस्म से मुकरना एक लतीफे सरीखा है।
भारतीय लोकतंत्र और देश के हित में, और खुद कांग्रेस पार्टी के हित में यही है कि वह संगठन में लोकतंत्र लेकर आए, अधिक से अधिक यही तो होगा कि कई लोगों के बागी तेवर उसके ढांचे को हिलाकर रख देंगे। लेकिन आरामकुर्सी पर चढ़ती हुई चर्बी के मुकाबले बहता हुआ पसीना हमेशा ही बेहतर होता है। कांग्रेस को आज जितने बड़े बदलाव की जरूरत है, वह पूरे का पूरा नेताओं की इस चिट्ठी में सामने आया है। इस पार्टी का भला चाहने वाले लोगों को इस पर खुलकर चर्चा करनी चाहिए, यह गांधी परिवार के भी हित में होगा कि उसे पार्टी कुछ वक्त के लिए आजादी दे। इसी परिवार की पीठ पर इस तरह से सवारी करते रहने ने इस पार्टी को आरामतलब कर दिया है। इसे संघर्ष करने के लिए दूसरों के हवाले करना चाहिए, और चिट्ठी में यह बात सही लिखी हुई है कि देश की सबसे बड़ी और सबसे कामयाब पार्टी की सरकार के मुखिया रहते हुए एक तरफ तो नरेन्द्र मोदी शायद 16 घंटे रोज काम कर रहे हैं, दूसरी तरफ कांग्रेस के पास कोई भी पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है, जबकि उसे संघर्ष की जरूरत अधिक है।
कांग्रेस के नेताओं की यह चिट्ठी बहुत सही मौके पर आई है और कल कांग्रेस कार्यसमिति में समझदारी भी सामने आ सकती है, और पारंपरिक चापलूसी भी। इस पार्टी का भविष्य एक किस्म से कल तय भी हो सकता है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)