साहित्य/मीडिया
-दिनेश श्रीनेत
‘गर्म हवा’ पर ‘पहल’ में प्रकाशित आलेख का पिछले दिनों पंजाबी साहित्यिक पत्रिका ‘फिलहाल’ में अनुवाद प्रकाशित हुआ है। आज सुबह जालंधर से मेरे एक मित्र आरपी सिंह ने फोन करके इसके बारे में जानकारी दी साथ ही संपादक का फोन नंबर भी शेयर किया। पहले तो बिना सूचना अनुवाद और प्रकाशन पर थोड़ी हैरानी हुई लेकिन जब फोन किया तो पता लगा कि पत्रिका के संपादक व प्रकाशक गुरूदयाल अस्सी वर्षीय बुजुर्ग हैं और बड़ी शिद्दत के साथ अकेले ही बीते 12-13 सालों से पंजाबी की इस सम्मानित साहित्यिक पत्रिका को निकाल रहे हैं। अभी वे मोहाली, चंडीगढ़ में रहते हैं। लंबा समय दिल्ली में बिताया है और सिनेमा प्रेमी रहे हैं। विष्णु खरे और सौमित्र मोहन उनके बहुत अच्छे मित्र रहे हैं। उनका कहना है कि विभाजन की त्रासदी को पंजाब ने सबसे करीब से देखा है और आज यह फिल्म दोबारा प्रासंगिक हो गई है, इसी सोच के चलते उन्होंने इस लेख का पंजाबी अनुवाद प्रकाशित किया। मेरी किशोरावस्था का बड़ा हिस्सा हिंदी में अनुदित पंजाबी साहित्य या पंजाब के परिवेश वाला उर्दू-हिंदी साहित्य पढ़ते बीता है, जिसमें बलवंत सिंह, गुरूदयाल सिंह, कृश्न चंदर, यशपाल, भीष्म साहनी, राजिंदर सिंह बेदी शामिल हैं। इस लिहाज से पंजाबी में अपना लिखा देखना मेरे लिए कुछ ज्यादा ही सुखद था।