विचार / लेख

राजनीतिक दल मिटने से देश बनने की गारंटी कभी नहीं, कहीं नहीं
13-Aug-2020 8:35 PM
राजनीतिक दल मिटने से देश बनने की गारंटी कभी नहीं, कहीं नहीं

प्रकाश दुबे

4 मई 1947 को गांधी की माउंटबेटन से भेंट को माउंटबेटन ने गोपनीय रखा। 27 मई को कांग्रेस कार्यसमिति ने विभाजन के पक्ष में मत दिया। गांधी ने असहमत थे। कहा-विभाजन के विचार से ही देश भयभीत है। 3 जून को विभाजन की योजना रखने के बाद लार्ड माउंटबेटन (गांधी जी के सायंकाल प्रार्थना सभा में जाने से पहले) फिर मुलाकात की। कहा-यह मेरी मजबूरी है। 14-15 जून की बैठक में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के 4 सौ में से 218 सदस्य उपस्थित रहे। लंबी, तीखी बहस के बाद 151 ने विभाजन के पक्ष में मत दिया। दूसरी उपेक्षा का उल्लेख प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगभग हर चुनाव प्रचार के दौरान करते हैं। गांधी चाहते थे कि सभी दल और व्यक्ति समान अवसर के सिद्धांत पर सत्ता पाने का प्रयास करें। आज़ाद भारत के पहले मंत्रिमंडल में डा भीमराव आम्बेडकर को शामिल करने में जवाहर लाल नेहरू की हिचक थी। आम्बेडकर ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा नहीं लिया। राजकुमारी अमृत कौर से जानकारी मिलने पर बापू ने कहा-जवाहर से कहना पूरे देश को आज़ादी मिली है, सिर्फ उसे नहीं। गाँधीजी ने 29 जनवरी 1948 की रात मसौदा तैयार किया-

‘भारत को...सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजा़दी हासिल करना अभी बाकी है। भारत में लोकतंत्र के लक्ष्य की ओर बढ़ते समय सैनिक सत्ता पर जनसत्ता के आधिपत्य के लिए संघर्ष होना अनिवार्य है। हमें कांग्रेस को राजनीतिक दलों और साम्प्रदायिक संस्थाओं की अस्वस्थ स्पर्धा से दूर रखना है। ऐसे ही कारणों से अ.भा. कांग्रेस कमेटी मौजूदा संस्था को भंग करने और नीचे लिखे नियमों के अनुसार लोक सेवक संघ के रूप में उसे विकसित करने का निश्चय करती है।"  अगले ही दिन उनकी हत्या कर दी गई।  कांग्रेस  पार्टी को भंग नहीं हुई। वंशवाद के आरोप से बचने के लिए पिछले वर्ष राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिया। देश भर में घूमने के लिए राहुल मुक्त रहना चाहते थे। कुछ कांग्रेसी गांधी परिवार को खूंटी पर टंगी शेरवानी समझते हैं। उसे पहनते ही शपथ ग्रहण के लिए न्यौता पक्का है। अब अनिश्चितता और असमंजस  है। उप मुख्यमंत्री और प्रदेश पार्टी के अध्यक्ष पद की दोहरी पगड़ी बांधने के बावजूद सचिन पायलट ने बगावत की। महाराष्ट्र में मंत्री ही पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष है।  मध्य प्रदेश में प्रदेशाध्यक्ष  और नेता प्रतिपक्ष एक ही व्यक्ति है। भूपेश बघेल अपवाद हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ा। 12 महीने में कांग्रेस अध्यक्ष नहीं चुन सकी। राजनीतिक दल के रूप में मान्यता रद्द होने का अंदेशा है। कांग्रेस को सत्ता और महत्ता दिलाने वाले  महात्मा  गांधी ने 1942 में फिरोज घेंडी को अपना गांधी सरनेम दिया। ताकि फिरोज  से इंदिरा के विवाह पर जवाहर लाल नेहरू की हिचक दूर हो।  स्वतंत्रता के तुरंत बाद अनेक साहसी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी  कांग्रेस से अलग हुए। नई पार्टी बनाई। पहले और अंतिम भारतीय वायसराय राजगोपालाचार्य ने स्वतंत्र पार्टी बनाई। इंदिरा गांधी ने स्वयं ही कांग्रेस का नाम और चिह्न बदलकर पंजा छाप किया। आपात्काल के दौरान   जनता पार्टी में  भारतीय जनसंघ विलीन हुआ।  जनता नाम की चमक का लाभ लेने के लिए नई पार्टी का नाम जनसंघ के बजाय भारतीय जनता पार्टी रखा गया।   कांग्रेस और जनता पुछल्ले वाली दर्जनों पार्टियाँ हैं।

एक दल से दूसरे दल में आवागमन चलता रहता है। व्यक्तिगत विरोध के कारण जाते हैं। आम तौर पर सत्ता के लोभ में लौटते हैं।  वैचारिक भूमिका नहीं होती। आपात्काल विरोधी पेट्रोल पंप, पद और पेंशन पाने लगे। यह देश तब भी चलेगा कांग्रेस नहीं होगी। हिंदू और अन्य भारतीय नागरिक तब रहेंगे जब भारतीय जनता पार्टी सत्ता में नहीं रहेगी। महज दलों के नाम से सत्ता नहीं मिलती। इस बात को कांग्रेस 70 बरस में नहीं समझ सकी। इस सत्य को वर्तमान सत्ताधीश समझें। सत्ता और राजनीतिक दल की आयु में कोई संबंध नहीं होता। जनता पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, पाकिस्तान में इमरान खान की तहरीक- ए- इंसाफ जैसे कई उदाहरण हैं। गांधी की बात मानकर कांग्रेस अब लोक सेवक संघ का चोला ओढ़ ले तब? राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अवश्य अचकचा जाएगा।   सिर्फ विरासत, बयान और बैनर की बदौलत देश चलते होते तो सदियों पुरानी सभ्यता वाला यूनान दिवालियेपन की कगार पर न होता। भारत से होड़ लेने वाले दार्शनिक, शूर योद्धा और लोकतांत्रिक विचारक वहां भी हुए हैं।

(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)

 

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