सामान्य ज्ञान

शैवाल
12-Aug-2020 1:29 PM
शैवाल

शैवाल या एल्गी   सरल सजीव हैं। अधिकांश शैवाल पौधों के समान सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वंय बनाते हैं अर्थात् स्वपोषी होते हैं। ये एक कोशिकीय से लेकर बहु-कोशिकीय अनेक रूपों में हो सकते हैं, परन्तु पौधों के समान इसमें जड़, पत्तियां इत्यादि रचनाएं नहीं पाई जाती हैं। ये नम भूमि, अलवणीय एवं लवणीय जल, वृक्षों की छाल, नम दीवारों पर हरी, भूरी या कुछ काली परतों के रूप में मिलते हैं।

ज्वार भाटे के कारण शैवाल यानी एल्गी के अस्तित्व पर संकट पैदा हो जाता है। जब पानी उतरने लगता है तो शैवाल की तह पर नमक छूट जाता है। एक तो सूरज की गर्मी से शैवाल सूखने लगता है, फिर यह नमक भी उसके पानी को चूस लेता है। मूंगा यानी कोरल शैवाल का सहजीवी है। मूंगे से इसे 90 फीसदी तक ऊर्जा मिलती है।   ब्रेन कोरल के अंदर शैवाल   रहता है। मूंगा इसे रहने की जगह देता है, बदले में शैवाल धूप की मदद से ग्लूकोज बनाता है जो मूंगे के अस्तित्व के लिए जरूरी है। क्लोस्टेरियम नाम के शैवाल को जर्मनी में मोएंडषन यानी नन्हा चांद कहा जाता है। शैवाल की अलग-अलग किस्मों की तुलना में इनका आकार काफी बड़ा होता है। बाइबल की कहानियों में कहा जाता है कि हजरत मूसा ने प्राचीन मिस्र के शासकों फैरो को चेतावनी दी थी कि यदि वे यहूदियों को आजाद करा कर इस्राइल नहीं ले गए, तो नील नदी का पानी खून में तब्दील हो जाएगा, उसमें मौजूद मछलियां सड़ जाएंगी और वहां बू आने लगेगी। वैज्ञानिकों का दावा है कि मूसा लाल शैवाल की बात कर रहे थे, जिसकी मौजूदगी से पानी लाल दिखने लगता है।

लाल शैवाल को जर्मन में मेयरसालाट यानी समुद्री सलाद कहा जाता हैलाल शैवाल इसे देख कर खाने का मन तो नहीं करता लेकिन इसमें विटामिन ए, सी और बी12 के अलावा कई तरह के पोषक तत्व भारी मात्रा में मौजूद है। भूरे रंग की शैवाल का जंगल घोंघों यानी स्नेल जैसे समुद्री जीवों के लिए घरौंदे जैसा होता है। इन्हें देखने के लिए समुद्र के अंदर जाने की जरूरत नहीं, कई बार ये तट पर भी मिल जाते हैं। काई की ऐसी चादर हर जगह फैल सकती है। जरूरत है तो बस नमी और छाया की। पेड़ की छाल और पत्थरों पर भी काई जमा हो जाती है। इसी काई से जैविक ईंधन भी तैयार किया जाता है।

बाणासुर  
हिन्दू ग्रंथों से मिली जानकारी के अनुसार बलि के ज्येष्ठ पुत्र का नाम बाण था। बाण ने घोर तपस्या के फलस्वरूप शिव से अनेक दुर्लभ वर प्राप्त किये थे। इसलिए वह गर्व से भर गया था। उसके एक सहस्त्र बांहें थीं। वह शोणितपुर पर राज्य करता था। उसकी एक सुंदरी कन्या थी, जिसका नाम उषा था। प्रद्युम्न का पुत्र अनिरूद्ध उस कन्या पर आसक्त हो गया तथा गुप्त रूप से उससे मिलता रहा। बाणसुर को ज्ञात हुआ तो उसने दोनों को कारागार में डाल दिया। नारद ने जब श्रीकृष्ण से जाकर कहा- आपके पौत्र अनिरुद्ध को बाणासुर विशेष कष्ट दे रहा है।  श्रीकृष्ण ने बलराम तथा प्रद्युम्न के साथ बाणासुर पर आक्रमण किया। महादेव बाणासुर की रक्षा के निमित्त वहां पहुंचे किंतु सबको परास्त कर तथा बाणासुर की समस्त बांहें काटकर और उसे मारकर श्रीकृष्ण, उषा और अनिरुद्ध को धन-धान्य सहित लेकर द्वारका पहुंचे।  बाणासुर बलि के सौ पुत्रों में से ज्येष्ठ था। 

 

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