साहित्य/मीडिया

बुलाती है मगर जाने का नईं
12-Aug-2020 12:47 PM
बुलाती है मगर जाने का नईं

बुलाती है मगर जाने का नईं
ये दुनिया है इधर जाने का नईं
मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुजर जाने का नईं
सितारें नोच कर ले जाऊँगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नईं
वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नईं
वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर जालिम से डर जाने का नईं ...

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नफ़रत का बाज़ार न बन
फूल खिला, तलवार न बन
रिश्ता-रिश्ता लिख मंज़िल
रस्ता बन, दीवार न बन
कुछ लोगों से बैर भी ले
दुनिया भर का यार न बन
अपना दर ही दार लगे
इतना दुनियादार न बन
सब की अपनी साँसे है
सबका दावेदार न बन
कौन खरीदेगा तुझको
उर्दू का अख़बार न बन

-राहत इंदौरी

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