विचार / लेख

इलीना सेन नहीं रहीं
10-Aug-2020 12:03 PM
इलीना सेन नहीं रहीं

-बाबा मायाराम 

प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, नारीवादी आंदोलन की अग्रणी पंक्ति की सिद्धांतकार इलीना सेन नहीं रहीं।

कल उनका निधन हो गया। वे लम्बे समय से कैंसर से पीडि़त थीं। लेकिन अंत समय तक बीमारी से लड़ते हुए भी वे मानसिक रूप से सक्रिय थीं।

इलीना सेन, एक शोधकर्ता, एक लेखक के साथ जमीनी सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होंने छत्तीसगढ़ (अब पहले संयुक्त मध्यप्रदेश) के दल्ली राजहरा में लौह खान मजदूरों के संगठन छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा व महिला मुक्ति मोर्चा के साथ काम किया।

वे दल्ली राजहरा में रहकर महिलाओं के संगठन के साथ काम करती थीं। उनके पति डॉ. विनायक सेन दल्ली राजहरा में मजदूरों के अस्पताल में काम करते थे।

मशहूर मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी के मजदूरों के संघर्ष और निर्माण के काम में इलीना सेन और उनका परिवार शामिल रहा। उनका अंत समय तक इस संगठन व दल्ली राजहरा के साथियों से परिवारिक संबंध व स्नेह अंत तक बना रहा।

इलीना सेन ने 90 के दशक में रूपान्तर नाम की संस्था बनाई और साक्षरता, शिक्षा, स्वास्थ्य, जैविक खेती, ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर बरसों तक काम किया।

इस बीच उन्होंने छत्तीसगढ़ में पलायन की समस्या पर शोधपरक सुखवासिन नाम की किताब लिखी, जिसकी काफी चर्चा हुई। महिला हिंसा पर भी उनकी किताब आई।

रूपान्तर ने छत्तीसगढ़ गाथा नाम से कई छोटी छोटी पुस्तिकाओं का प्रकाशन किया, जिसमें छत्तीसगढ़ की अस्मिता से लेकर संस्कृति, जल, जंगल, जमीन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया।

वे राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर लगातार काम करती रही। आठ मार्च को महिला दिवस और 6 अगस्त को हिरोशिमा दिवस पर हर साल कार्यक्रम आयोजित करती थीं।

उन्होंने अपनी संस्था में महिला कार्यकर्ता को महत्व दिया, उन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया। ग्रामीण महिलाओं के बीच छत्तीसगढ़ी में गुठियाती (बातचीत) करती थीं और ऐसे घुल मिल जाती थीं, जैसे उनकी खुद की बहन हों।

इलीना सेन ने छत्तीसगढ़ 35 साल रहीं। कुछ समय पहले ही वे वर्धा में अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय और बाद में मुंबई में टाटा समाज शोध संस्थान में पढ़ाया।

लेकिन उनका छत्तीसगढ़ से नाता बना रहा। उनकी दोनों बेटियां प्राणहिता और अपराजिता रायपुर के स्कूलों में ही पढ़ी बढ़ीं।

इलीना सेन ने खुद की पगडंडी बनाई। दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से समाज शास्र में पीएचडी और जनसांख्यिकीय अध्ययन और स्रियों के काम तथा भारत में नारी आंदोलन के सिद्धांत व व्यवहार पक्ष पर अनेकों लेख, व्याख्यानों से एक नई धार दी।

बौद्धिक जगत के साथ महिला खान मजदूरों के साथ उनका काम सदैव ही याद किया जाएगा। दल्ली राजहरा व छत्तीसगढ़ की महिलाओं के दिल में उनका हमेशा स्थान रहेगा। उन्हें सादर नमन।

 

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