संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कुछ दूसरे देश कोरोना के दूसरे-तीसरे दौर भी देख रहे हैं, हम सम्हलें
04-Aug-2020 5:37 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कुछ दूसरे देश कोरोना  के दूसरे-तीसरे दौर भी  देख रहे हैं, हम सम्हलें

हिन्दुस्तान में अभी लोग यह भी समझने को तैयार नहीं हैं कि कोरोना का कोई दूसरा दौर भी आ सकता है। बल्कि लोग तो अभी पहले दौर से भी अपने आपको अछूता मानकर चलते हैं कि यह तो दूसरों को ही हो सकती है, वे तो बहुत सावधान हैं। दुनिया के कुछ देशों ने कोरोना के दूसरे दौर को भी भुगता है, वहां इसके पांव पहले पड़े थे, और इसलिए एक बार फारिग होकर वे दुबारा इसके जाल में फंसे। जापान जैसे देश के बारे में कहा गया कि वहां के लोगों ने लंबे समय तक साफ-सफाई की सावधानी बरती, संक्रमण से बचने की कोशिश की, लेकिन आखिर में जाकर लोग सफाई की सावधानी से थक गए, और लापरवाह हो गए। अब कुछ वैसी ही खबर हांगकांग से आ रही है, जो कि उससे बढक़र है, और जिससे हिन्दुस्तान के लोगों को बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। 

हांगकांग में अभी ऐसी आशंका है कि वहां कोरोना का तीसरा दौर आ सकता है, और उस दौर में अस्पतालों की क्षमता चुक जाएगी। हांगकांग में जनवरी से ही कोरोना पहुंच गया था, लेकिन यहां मामले तेजी से नहीं बढ़े। हम यहां हांगकांग की मिसाल को लेकर बातें अधिक बारीकी से इसलिए लिख रहे हैं कि इनमें से बहुत सी बातें हिन्दुस्तान पर भी लागू हो रही है, और लोगों को, सरकारों को, समाज को यहां के बारे में भी सोच लेना चाहिए। वहां पर मार्च में संक्रमण का दूसरा दौर आया जब विदेश से छात्र और नागरिक लौटने लगे। हांगकांग एक विकसित जगह है, इसलिए वहां बाहर से आए लोगों की कलाई पर ऐसे पट्टे पहनाए गए जिससे उन पर नजर रखी जा सके, और उन्हें घर पर ही रखा गया। लेकिन अभी पिछले 9 दिनों से लगातार वहां कोरोना के सौ से अधिक मामले रोजाना दर्ज हो रहे हैं, और इसे लेकर वहां तीसरी लहर की आशंका खड़ी हो रही है। 

वहां के विशेषज्ञों का यह मानना है कि कोरोना पॉजिटिव लोगों को जब घरों में क्वारंटीन किया गया, तो उन पर तो बाहर निकलने पर रोक थी, लेकिन परिवार के दूसरे लोग बाहर आ-जा रहे थे। उनकी वजह से भी खतरा बढ़ा। फिर वहां के कुछ किस्म के कारोबार में काम करने वाले लाखों लोगों को हांगकांग आने पर टेस्टिंग और क्वारंटीन में राहत दी गई थी ताकि कारोबार चलता रह सके। इससे भी खतरा बढ़ा। एक बार नौबत खतरनाक होने के बाद अब फिर ऐसे कारोबार पर रोक लगा दी गई है। महीनों से चले आ रहे प्रतिबंधों के बाद जून में हांगकांग में सामूहिक समारोहों में 50 लोगों तक की छूट दी, और नतीजा यह हुआ कि प्रतिबंधों से थके हुए लोग दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने लगे। 

हांगकांग और हिन्दुस्तान की स्थितियां एक जैसी नहीं है, लेकिन अलग-अलग स्थितियों के बावजूद एक-दूसरे से सीखने का तो सबके पास कुछ न कुछ रहता है। हिन्दुस्तान में प्रतिबंधों को लागू करने या छूट देने पर अमल का जिम्मा और अधिकार राज्यों का है। इसलिए यहां के राज्यों को यह समझना चाहिए कि कैसे खतरों को घटाया जा सकता है। अभी-अभी ब्रिटेन की यह खबर सामने आई है कि वहां कोरोना के दूसरे दौर की आशंका को देखते हुए पूरे देश में एक नए लॉकडाऊन की तैयारी चल रही है जिसमें 50 बरस से अधिक उम्र के दसियों लाख लोगों को घरों में ही रहने के लिए कहा जा सकता है। 50 बरस से अधिक उम्र के लोगों पर खतरा अधिक रहता है, और देश के अस्पतालों के ढांचे पर से बोझ कम करने के लिए उन्हें घरों में रखना जरूरी समझा जा सकता है। 

कुछ मामलों को लेकर हम पहले भी लिखते आए हैं, और एक बार और लिखने में कोई हर्ज नहीं है कि देश भर में जहां-जहां शराबबंदी नहीं है, वहां पर शराब की बिक्री शुरू करने से खतरा बढ़ा है। शराबियों में बड़ा अनुपात गरीबों का है जिनके झोपड़े भी छोटे हैं, वहां पर कोई शारीरिक दूरी हो नहीं सकतीं, और नशे में लौटे हुए लोग किसी नियम का क्या ख्याल रख सकते हैं? इसलिए शराब दुकानों पर अंधाधुंध धक्का-मुक्की से लेकर शराबियों के जाहिर तौर पर गैरजिम्मेदार बर्ताव को देखते हुए शराब की छूट देना केन्द्र सरकार का एक बहुत खराब फैसला रहा, और कमाई न कर पा रहे राज्यों ने इस फैसले को लपककर हाथोंहाथ लिया, और दारू की बिक्री शुरू कर दी। यह सिलसिला जानलेवा साबित हो रहा है। सरकारें अंधाधुंध खर्च को बेबस हैं, कमाई बंद है, केन्द्र सरकार जीएसटी का बकाया देने से बताया जा रहा है कि हाथ उठा चुकी है, और ऐसे में दारू ही सरकारों का एक सहारा है। लेकिन अब यह बोलने वाले लोग लगातार बढ़ते जा रहे हैं कि सरकारों की तमाम कोशिशें दारू में बह जाएंगी, और कोरोना खुशी में बोतल खोल लेगा। दूसरी चूक लॉकडाऊन के दूसरे, तीसरे, या चौथे दौर में यह हो रही है कि बाजारों में जरूरी सामानों की दुकानों को भी सीमित घंटों के लिए खोला जा रहा है जिससे उन पर भीड़ टूट पड़ रही है। कारोबार के दीवाला होने की नौबत अलग रही, हम जनता की सेहत की बात करें, तो वह भी ऐसी भीड़ की वजह से खतरे में पड़ रही है। सीमित घंटों से असीमित खतरा बढ़ रहा है। जरूरी सामानों की दुकानें, सब्जी बाजार तो काफी अधिक समय तक खोलने की जरूरत है ताकि वहां भीड़ न लगे। इन बातों को हम पहले भी लिख चुके हैं, लेकिन आज जब दूसरे देशों से कोरोना के दूसरे और तीसरे दौर की खबरें आ रही हैं, तो हिन्दुस्तान के इलाज-इंतजाम को देखते हुए यह आशंका लगती है कि प्रशासनिक चूक से, सरकार की नीतियों की चूक से कोरोना का खतरा न बढ़े। आज तो कोरोना का हमला, और स्वास्थ्य सेवा का इंतजाम एक-दूसरे से भिड़े हुए हैं। ऐसे में अगर शासन-प्रशासन के फैसलों की गलती से कोरोना को मौका मिलता है, तो महीनों से थके हुए अस्पतालों पर उसका बोझ कितना बढ़ेगा, इसका अंदाज लगाना आसान नहीं है। सरकार की कमाई जरूर मारी जाएगी, लेकिन दारू को बंद इसलिए भी करना चाहिए कि बिना मजदूरी, बिना कारोबार गरीब लोग आखिर परिवार का पेट काटकर ही दारू खरीद रहे हैं। यह सिलसिला चला, और बेरोजगारी जारी रही, तो जितने लोग कोरोना से मरेंगे, उतने ही लोग कुपोषण से भी मारे जाएंगे। भारत का इंतजाम, उसकी क्षमता कहीं से भी दूसरे और तीसरे दौर के लायक नहीं है, और ऐसे में भारत सरकार को ही देश में शराबबंदी लागू करनी चाहिए। छत्तीसगढ़ का तजुर्बा सामने है कि यहां महीने-दो महीने की दारूबंदी से भी कोई मौतें नहीं हुईं। केन्द्र सरकार ने शराब की बिक्री करने को नहीं कहा था, उसने बिक्री की छूट दी थी। यह राज्यों के अपने फैसले पर था कि वे बिक्री शुरू करते हैं या नहीं। लेकिन कोई भी राज्य ऐसा नहीं था जिसने शराब बिक्री पर रोक जारी रखी। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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