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नई दिल्ली, 4 जुलाई । आज से करीब 16 साल (26 दिसंबर 2004) पहले भारत में आई सुनामी में टीम इंडिया के पूर्व कप्तान अनिल कुंबले भी फंसे थे। कुंबले ने इस खौफनाक घटना को याद करते हुए रविचंद्रन अश्विन को यह पूरी कहानी सुनाई है।
इस खतरनाक मंजर ने दुनिया भर में अपना कहर बरपाया था और करीब 2 लाख लोगों की इसमें मौत हुई थी, जबकि कई लाख लोग बेघर हो गए थे। टीम इंडिया के पूर्व कप्तान भी इस चेन्नै में ही थे और उन्हें उसी दिन अपने घर बेंगलुरु लौटना था। तब प्रशांत महासागर में आए भूंकप के कारण सुनामी की लहरें पैदा हुईं और इसने दक्षिण भारत समेत यहां स्थित पड़ोसी देशों में खूब तबाही मचाई। भारत में भी इस आपदा में 10,136 लोगों ने अपनी जान गंवाई।
अनिल कुंबले ने आर. अश्विन के यूट्यूब चैनल डीआरएस विद अश्विन में इस मंजर को याद किया। कुंबले ने बताया, उस दिन हम चेन्नै में ही थे और यहां के फिशरमैन कोव (रिजॉर्ट) में रुके हुए थे। मेरे साथ मेरी पत्नी और बेटा भी था, जो तब करीब 10 महीने का ही था। हम अपनी छुट्टियां एन्जॉय कर घर लौटने को ही थे और सुनामी आई गई। हमारी 11.30 की फ्लाइट थी और इसलिए हमें सुबह 9.30 बजे ही चैकआउट करना था।
49 वर्षीय कुबंले ने कहा, उस रात मेरी पत्नी की तबियत कुछ ठीक नहीं थी और वह मुझे बार-बार उठा रही थी कि टाइम देखो। मेरी तबियत सही नहीं है मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा, तो हम जल्दी उठ गए और हमने समंदर को देखते हुए कॉफी पी। सबकुछ शांत दिख रहा था और बादल छाए हुए थे।
कुंबले ने आगे बताया, करीब 8.30 बजे हम नाश्ता करने ब्रैकफास्ट एरिया में गए। और जब सुनामी की पहली लहर टकराई तब हम नाश्ता कर रहे थे। मुझे यह पता भी नहीं था कि सुनामी आ चुकी है। इसके बाद हम चैक आउट कर ही रहे थे कि एक युवा जोड़ा अपने नहाने के कपड़ों में वहां दिखा, वे भीगे हुए थे और कांप रहे थे। मैं तब भी उस चीज (सुनामी) को नहीं समझ पाया।
भारत के लिए सर्वाधिक टेस्ट विकेट लेने वाले इस पूर्व लेग स्पिनर ने कहा, हम कार में बैठकर एयरपोर्ट जा रहे थे कि रास्ते में एक पुल था। वहां पहुंचकर मैं कुछ हैरान हो गया क्योंकि मैं पुल से ही पानी को छू सकता था। पानी का स्तर इतना बढ़ गया था कि वह पुल से सिर्फ 1 फीट ही नीचे होगा। पानी के तेज बहाव के चलते झाग ही झाग दिख रहे थे।
कुंबले ने बताया, अब हम देख रहे थे कि बहुत सारे लोग जो कुछ समेट सकते थे उन्हें लेकर चले जा रहे थे। उनके हाथ में बर्तन पतीले और बैग थे। कंधे पर बैठे हुए छोटे-छोटे बच्चे थे। यह नजारा कुछ ऐसा था जैसा हम फिल्मो में देखते हैं।
इस दिग्गज खिलाड़ी ने कहा, तब हमने कभी सुनामी शब्द नहीं सुना था और हमें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर क्या हो रहा है। जब मैं बेंगलुरु अपने घर आ गया तब मैंने टीवी ऑन किया, तब मुझे अहसास हुआ सुनामी आकर जा चुकी है, तो जब यह आ रही थी तब हम बिल्कुल ही जागरूक नहीं थे कि यह क्या था। (नवभारत टाईम्स)