विचार / लेख
रश्मि त्रिपाठी
ये चित्र जब भी देखती हूं मन में प्रेम और गर्व सा मिश्रित भाव आ जाता है। सच में अगर आज कुछ सुकून देने लायक है तो कुछ पुराना पढिय़े और समझिये।
ये चित्र अपने आप में एक पूरा इतिहास समेटे हुये है। इंदिराजी देश की प्रधानमंत्री थीं तब मार्च 1983 का महीना विज्ञान भवन में गुटनिरपेक्ष देशों का शिखर सम्मेलन था। जबकि सैंकड़ों राष्ट्राध्यक्ष और ऑब्जर्वर वहां उपस्थित थे। शायद ही इतना बड़ा सम्मेलन इस देश में कभी हुआ हो।
संयुक्त राष्ट्र में भले ही हुआ हो। पर मुझे नही लगता कि और भी कहीं इतने राष्ट्राध्यक्ष कभी एक साथ मिलें हों।
इस चित्र की कहानी ये है कि जो लकड़ी का हथौड़ा होता है वो वर्तमान अध्यक्ष या मेजबान अगले मेजबान को सौंपेगा यही परम्परा होती है।
बस उसी समय जब इंदिराजी उनसे हथौडा लेने आईं तो लंबे-चौड़े से कास्त्रो ने उन्हें खींचकर ऐसे गले लगा लिया।
मुझे ऐसा लगता हैं इंदिरा जी को थोड़ी देर के लिए जरूर नेहरूजी की याद आई होगी।
वो कितना अद्भुत क्षण रहा होगा!
इस चित्र का नाम ही एक भालू हग हो गया।
चूंकि चार साल पहले सम्मेलन हवाना में हुआ था और हथौड़ा फिदेल को इंदिरा जी को देना था। इंदिरा जी ने जैसे ही हाथ बढ़ाया उनके भाव उमड़ पड़े और वो खुद को रोक नहीं पाये।
इस सम्मेलन में एक और घटना हुई थी और वहां भी कास्त्रो नेहरू बन गए। हुआ ये कि फिलिस्तीन के राष्ट्राध्यक्ष यासिर अराफात थोड़े नाराज से हो गये थे इंदिराजी से क्योंकि जार्डन को उनसे पहले संबोधित करने का मौका दे दिया गया था। वे तुरंत ही वापस लौटने का प्लान कर लिये थे इंदिरा चिंतित थीं ।
पता नही कैसे कास्त्रो को पता चल गया और वे तुरंत अराफात के पास पहुंचे और बोले ‘इंदिरा आपकी दोस्त हैं क्या?’
‘अरे नही वो तो बड़ी बहन की तरह हैं मेरे लिये’.... अराफात बोले...
‘तो छोटे भाई ही बने रहो मैन’..
कास्त्रो के इतना कहते ही अराफात ने अपना लौटने का प्लान स्थगित कर दिया।
इन बातों को जो समझेगा वो जानेगा कि हमारे संबध दुनिया में कैसे थे ?
एक बार मुझे किसी एनआरआई ने बताया था कि विदेशों में बहुत लोग इंडिया को न भी जानते हों तो भी गांधी, नेहरु, इंदिरा और राजकपूर, अमिताभ बच्चन को जानते हैं। पता नही ये कितना सच है ! पर सच कहूं तो फिदेल मुझे अपने हीरो लगते है एक ऐतिहासिक नायक !