साहित्य/मीडिया
-दिनेश श्रीनेत
ली फॉक की तमाम खूबियों के बावजूद उन पर नस्लवाद का आरोप लगता है और यह माना जाता है कि वेताल और मेण्ड्रेक कहीं न कहीं उसे स्थापित करते थे। गौर करें तो यह पॉपुलर कल्चर के साथ हमेशा से दिक्कत रही है। टार्जन भी इस आरोप से बरी नहीं हुआ और कुछ हद तक टिनटिन भी। साठ और सत्तर के दशक में छपने वाले हर जासूसी उपन्यास में खलनायक चीनी होता था। इब्ने सफी भी इसका अपवाद नहीं हैं।
वेताल की परिकल्पना किसी राजवंश जैसी है जो पीढ़ी दर पीढ़ी अफ्रीका के जंगलों में आदिवासियों पर राज करता है। वहीं मेण्ड्रेक का सहयोगी लोथार एक ब्लैक है और उसका खानसामा एक एशियाई। देखा जाए तो ली फॉक ने कोई क्रांति नहीं की मगर वे एक लिबरल अवश्य थे जिसकी आज इस राजनीतिक वैचारिक धु्रवीकरण के दौर में सबसे ज्यादा जरूरत है। वेताल यानी फैंटम कभी खुद को जंगलों का मालिक नहीं समझता। उसने खुद को जंगल का सेवक और संरक्षक माना। वेताल आधुनिक पश्चिमी सभ्यता का आलोचक है। समुद्री लुटेरों के हमले में नष्ट जहाज से बच निकले उसके पुरखे ने न सिर्फ खुद के लिए जंगल में रहने का विकल्प चुना था बल्कि उसकी आने वाली 21 पीढिय़ों ने भी उसी परंपरा और विचारधारा का पालन किया। जंगल की सुरक्षा के लिए बने गश्ती सेना
केंद्र का सर्वोच्च मुखिया यानी सेनापति वेताल था। उसके नीचे लंबे समय तक रहे कर्नल वीक्स के बाद अश्वेत कर्नल वोरेबू को पद सौंपा गया।
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यहां पर मैं वेताल की एक ऐसी कॉमिक्स का जिक्र करूंगा जिसने अमरीका में गुलामी प्रथा के प्रति बचपन में ही मेरा दृष्टिकोण काफी स्पष्ट कर दिया था। ‘आदमफरोश’ के नाम के से यह कॉमिक्स प्रकाशित तो 1977 में ही हो गई थी मगर तब मैं अक्षर ज्ञान हासिल ही कर रहा था। तो बाद के सालों में करीब 9-10 साल की उम्र और उसके बाद भी मैं बार-बार इस कॉमिक्स को पढ़ता रहा तो यह धीरे-धीरे समझ में आती गई।
इस कहानी का आरंभ होता है 1776 से जब दुनिया में गुलामों का व्यापार जोरों पर था। अफ्रीका में हमला करते श्वेत लुटरों की पूरे पेज की तस्वीर के साथ लिखा होता है, ‘18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में गुलामों का व्यापार जोरों पर था। अनेक समुद्र डाकू अफ्रीका से लोगों को पकडक़र ले जाते थे। उनका सामना किया केवल एक आदमी ने- वह था 1776 का वेताल।’ नैरेशन खत्म होता है और सुबह के धुंधलके में कमर में तलवार खोंसे एक जंगल का एक अश्वेत चीखता हुआ भाग रहा है, ‘वेताल! वेताल!! वेताल से मिलना जरूरी है...’ पता चलता है थोंगी गांव पर हमला हुआ है और सरदार के बेटे के साथ कई लोगों को लुटेरे पकडक़र ले गए। वेताल गांव के सरदार से मिलने जाता है जो बूढ़ा और बीमार है। वह उसे वचन देता है कि बरसात से पहले उसके बेटे को लेकर आएगा। सूत्र सिर्फ एक है। आदिवासियों ने एक नाम सुना था व्रूले।
व्रूले यानी व्लास्को व्रूले... इस बदनाम डाकू से वेताल की मुठभेड़ पहले भी हो चुकी थी। उसे पता था व्रूले का जहाज मार्काडोस में होगा, एक बंदरगाह, जहां लुटेरों और डाकुओं का स्वागत होता है। वेताल एक नाविक के वेश में छानबीन करता है और फिर उसे पता चलता है कि व्रूले अमरीका की तरफ चल पड़ा है। वेताल खुद भी व्रूले के एक दोस्त के जहाज पर नौकरी करते हुए पीछे-पीछे अमरीका रवाना हो जाता है। अनंत सागर में उड़ते परिंदों के बीच पुरानी पालों वाला जहाज चल पड़ता है। इस रवानगी को बड़े ही खूबसूरत शब्दों में बयान किया गया है, ‘सूरज की पहली किरण फूटने के साथ सागर कूकर धीमी गति से मार्काडोस के बंदरगाह से निकला। पछायीं हवा उसके पुराने पालों में भर गई। इससे जहाज में नई जान पड़ गई और वह हरहराती लहरों को चीरता हुआ चल पड़ा। नाविक वॉकर जहाज से सागर तट की ओर ताक रहा था। धीरे-धीरे तट आँखों से ओझल हो गया तब उसने अनंत सागर पर दृष्टि दौड़ाई।’ यह एक अद्भुत गद्य है मानों जॉन स्टेनबेक या हरमन मेलविल का कोई उपन्यास पढ़ रहे हों।
व्रूले का पता चल जाता है मगर वह बताता है कि उसने कब्जे में आए सारे अश्वेत एक दलाल को बेच दिए हैं। आगे लिखते हैं, ‘काफी सोना साथ में लेकर वेताल ने अपने और व्रूले के लिए जो बेचारा थर-थर कांप रहा था- घोड़ागाड़ी भाड़े पर ली। गाड़ी खडख़ड़ाती हुई पिकेटबरो की सडक़ों पर चल पड़ी।’ वे आधी रात को उस दलाल वाटली के घर में दाखिल होते हैं। वहां सन्नाटा छाया है। वेताल ने मोमबत्ती जलाई तो पता चलता है कि वाटली के सीने में किसी छूरा घोंप दिया है। अभी वे हालात को समझने का प्रयास करते हैं कि परदे के पीछे से क्वेंच निकलता है।
यह वही शख्स है जिसके साथ वेताल ने वेश बदलकर व्रूले का पीछा किया था, उसे भनक लग गई थी कि वेताल किसी मकसद से अमरीका जा रहा है। आपसी झगड़े में व्रूले धोखे से क्वेंच को गोली मार देता है और उसके बाद वेताल पर हमला करता है। वह अपनी भारी-भरकम तलवार से वेताल पर भारी पड़ रहा होता है मगर तभी घायल क्वेंच व्रूले को गोली मार देता है। कमरे में तीन लाशें पड़ी होती हैं। घड़ी मे रात के दो बजने की आवाज आती है और वेताल की तलाश अभी अधूरी है। वहां मिले कुछ कागजात के आधार पर वह अपनी खोज जारी रखता है।
अंतत: वह उस युवक को खोज लेता है, जिसकी तलाश में उसने इतना लंबा सफर तय किया था। वेताल का एक अमरीकी दोस्त इसमें उसक मदद करता है। वेताल चाहता है वह बाकी लोगों को भी छुड़ाकर ले जाए मगर फिलाडेल्फिया का उसका दोस्त जो चेहरे-मोहरे और अलमारी में सजी अपनी किताबों से एक कानूनविद लगता है उसे समझाता है। यह लंबा संवाद कुछ इस तरह है, ‘कई वर्ष पहले तुमने मुझे पेरिस में चोरों से बचाया था। वे छह थे और तुम अकेले। लेकिन गुलामों को छुडाऩे का प्रयत्न किया तो एक तरफ तुम अकेले होगे और दूसरी तरफ एक पूरा राष्ट्र। इस राष्ट्र में आजादी की लड़ाई चल रही है। तुम अपनी जान व्यर्थ में गंवाओगे। अपने देश लौट जाओ वहां तुम ज्यादा अच्छे काम कर सकते हो। अपनी लड़ाई वहीं जारी रखो। कल इसी शहर में बड़े महत्व के दस्तावेज पर दस्तखत किए जाएंगे। तुम देखना उस कार्रवाई को और स्वतंत्रता तथा स्वाधीनता का संदेश अपने देश ले जाना।’
वेताल उस युवा को लेकर अफ्रीका वापस आता है। अंतिम दृश्य में एक ऊंची पहाड़ी पर कबीले के सरदार का साथी सवाल करता है, ‘आगे क्या होगा हम लोगों का? और उस देश में क्या होगा जिसका नाम है अमरीका?’ वेताल का जवाब आता है, ‘मुझे आंशिक सफलता ही मिली तथापि मैंने जो देखा उससे मुझे पूरा विश्वास है कि गुलामी की प्रथा का कलंक एक दिन मिटकर रहेगा। इसमें वर्षों लगेंगे... शायद सैकड़ों बरस लग जाएं परंतु जब तक वह दिन नहीं आएगा वेताल चैन से नहीं बैठेगा।’
यह कॉमिक्स का आखिरी फे्रम था। ये अनोखी कहानी इतिहास की अनिवार्यता को चिह्नित करती है और परिवर्तन के प्रति उम्मीद जगाती है। कितनी भी बड़ी और ताकतवर सत्ता हो, बदलाव की बयार के आगे उसे नेस्तनाबूद होना पड़ता है। कहानी यह भी बताती है कि किस तरह हर परिवर्तन के पीछे मु_ी भर लोग होते हैं जो अंधेरी रात को किसी बैठक या सूनी सडक़ों पर अपनी कोशिशें जारी रखते हैं। डार्क नॉयर शैली में रेखांकन वाली इस कॉमिक्स ऐतिहासिक नैरेटिव और नाटकीय घटनाक्रम का अद्भुत संतुलन है। हम एक बार फिर मान जाते हैं कि कहानी बयान करने में ली फॉक का कोई जवाब नहीं। (फेसबुक)