विचार / लेख

हेगिया सेफिया, और तीन फेवरिट्स
12-Jul-2020 7:09 PM
हेगिया सेफिया, और तीन फेवरिट्स

मनीष सिंह

पीटर द ग्रेट, जवाहरलाल नेहरू और कमाल अतातुर्क। तीन दौर और तीन तौर- ये तीन लीडर्स है जिन्होंने एक नए राष्ट्र को जन्म दिया।

यूरोप से बाहर जन्मे, लेकिन यूरोपीयन आइडियल्स और जीवन शैली से बेहद प्रभावित। अपने अपने देश को सांस्कृतिक, औद्योगिक और परम्परागत जडक़न से बाहर निकाला। अपने अपने तरीके से मॉडर्नाइज किया।

सत्रहवीं सदी में रूस की कमान संभालने वाले बादशाह पीटर ने रशिया का आकार बढ़ाया। नए शहर बसाए। एक लैंड लॉक्ड देश के लिए समुद्र तटों वाले इलाके जीते। पोर्ट, अंतराष्ट्रीय व्यापार, उद्योग, विज्ञान की शिक्षा, सामाजिक खुलापन और और विकसित समाज लाने के लिए डिक्टेटोरियल ताकत का इस्तेमाल किया।

पीटर धर्म और परम्परा के नाम पर दकियानूसी तत्वों से यूं निपटा कि दाढ़ी रखने पर टैक्स लगा दिया। चोगा पहनने वालों के कपड़े फड़वाकर सरेआम नंगा कर दिया। सोसाइटी को जबरन धकियाते हुए वह रूस को ताकत के उस थ्रेशोल्ड ले गया, कि आज 200 साल बाद भी, उसका देश वैश्विक ताकत है।

कमाल अतातुर्क, एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे फौजी लीडर ने डूबते ओटोमन एम्पायर की लड़ाइयां लड़ी। खुद अपनी बैटल्स जीती, मगर देश हार गया। सरकार की मर्जी के खिलाफ जाकर उसने आक्रान्ताओं से लडऩा जारी रखा, अपनी सरकार बना ली। अंतत: पूरे तुर्की का लीडर बना। एक नए देश का भूगोल तय किया। और फिर बदल दिया तुर्की को। एक पिछड़ी कृषिगत सोसायटी को औद्योगिक, पाश्चात्य शिक्षित, मॉडर्न देश में सिर्फ 20 साल में ऐसा बदला कि यूरोप भी रश्क करे। कट्टर मुस्लिम धारणाओं को तोडऩे के लिए उसने सीधे प्रहार किए।

इस्लाम के मठाधीश बने खिलाफत को खत्म किया। शरिया कोर्ट और इस्लामी लॉ की जगह कन्स्टिट्यूशनल कोर्ट्स शुरू की। पवित्र अरबी की जगह कुरान का तुर्की अनुवाद कराया। लोग खुद पढऩे समझने लगे तो कुरान की असल शिक्षाओं को जानने के लिए मुल्लों का सहारा न लेना पड़ा।

उल्टी बाल्टी जैसी फुदने दार पारम्परिक टोपी की जगह हैट एक्ट लाया, बुर्का बंद किया और देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित किया। चोगा छोड़, यूरोपियन पोशाक, अरबी छोड़ लैटिन, अंग्रेजी और विज्ञान की शिक्षा को बढ़ाया। खुद को तुर्की का ‘टीचर इन चीफ’ कहता।

और एक बड़ी चोट की। सदियों तक चर्च रहे, और फिर मस्जिद में कन्वर्ट कर दिए गए हेगिया सैफिया को म्यूजियम बना दिया।

नेहरू! एक नया देश, पिछड़ा, धार्मिक-सांस्कृतिक कुंजड़ औऱ कुंठाओं से घिरे समाज को विज्ञान, धर्मनिरपेक्षता, कन्स्टिट्यूशन, सहिष्णुता, इंस्टीट्यूशन डेवलमेंट, का पाठ पढ़ाया। वह जमीन तैयार की जिससे छोटे-छोटे धार्मिक सांस्कृतिक देशों का यह बिखरा-बिखरा ढेर, एक देश होकर एक सूत्र में बंध गया।

इस उबड़-खाबड़ भूमि को समतल होने में चालीस साल लगे। उस पर जब विकास की रेल बिछी तो 90 की स्पीड से दौड़ी। नेहरू ने ताकत नहीं, मुस्कान का इस्तेमाल किया। अतातुर्क जो चाहते थे, कहते थे, वो नेहरू कर गए। वे क्या चाहते थे-मैं ताकतवर हूँ, यह ठीक है। मगर मैं दिलों को जीतकर रूल करना चाहता हूँ, दिलों को तोडक़र नहीं।

तीनो में एक रोयालिटी था, एक फौजी तानाशाह, एक डेमोक्रेटिक। तरीके तीन, सपना एक देश का पूर्ण सांस्कृतिक-शैक्षणिक-आर्थिक रद्दोबदल। तीनों का विरोध भी हुआ, मगर तीनों को सत्ता जाने का भय न था। सो धर्म को धर्म से, क्लास को क्लास से या जाति से लड़ाने की कम्पलशन न थी। सोच सत्ता बचाने की नहीं, देश बनाने की थी।

तीनों की लिगेसी जारी है। पीटर के शहर का मेयर, आज रूस का जार है। उसने पीटर को आत्मसात कर लिया है। पीटर का नया रूप हो गया है। उसे सत्ता खोने का भय नही। तो सोच देश बनाने और बढ़ाने की है।

मगर तुर्की और भारत मे भयभीत सत्ताएं है। यूं चुनौती कोई नहीं, मगर लीडर के भीतर खालीपन है। भय है। वह चुनाव दर चुनाव सीटें गिनता है। राज्य दर राज्य, सरकारें गिनता है। वह 2024 की तैयारियों में है। वह 2029 की तैयारियों में है। वह 2034 की तैयारियों में भी है।

वह अतातुर्क और नेहरू को आत्मसात करना चाहता है, वैसा बनना चाहता है, मगर सत्ता में आया ही उन्हें गालियां देकर। सो उनके खड़े किए प्रतीकों पर चोट करना मजबूरी करे। वह एंटीअतातुर्क और एंटी नेहरू बनकर उनसे आगे निकलना चाहता है। दिलों को जीतकर नहीं, दिलों को तोडक़र बड़ा बनना चाहते हैं।

तो क्या आश्चर्य कि अतातुर्क की तस्वीर लगाना एर्डोगन का विरोध हो जाता है, नेहरू की तस्वीर मोदी की मुखालफत। दोनों देश, धर्म और इतिहास के सूख चुके घावों को कुरेद रहे है। डरे हुए मुँहबली, संस्कृति के पोषण के नाम पर एंटी-साइंस, एंटी-सेकुलरिज्म, एंटी-फेमिनिज्म, एंटी-इकवलिटी की नीतियों के साथ दकियानूसी परम्पराओं, और विभाजन को हवा दे रहे हैं।

भाग्यशाली हूँ कि इनमें से दो की धरती देखी है, तीसरे में रहता हूँ। दुर्भाग्यशाली हूँ कि उनकी लिगेसी की अनमेकिंग, अपनी रहती जिंदगी देख रहा हूँ। हमारा कोर्ट.. ‘मंदिर वहीं बनाएंगे’ के उद्घोष में शामिल चुका है।

उनकी सरकार हेगिया सैफिया म्यूजियम को फिर मस्जिद बना चुकी है।

 

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