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नेपाल पीएम को विलेन बनाना भारतीय मीडिया बड़ी भूल ?
12-Jul-2020 10:17 AM
नेपाल पीएम को विलेन बनाना भारतीय मीडिया बड़ी भूल ?

नेपाली मीडिया में कार्टून

तनाव की आग में घी डालने की तरह ?
रजनीश कुमार
बीबीसी संवाददाता

नेपाल में चीन की राजदूत होउ यांकी संकटग्रस्त केपी शर्मा ओली सरकार में कई मुलाक़ातों को लेकर निशाने पर हैं.

नेपाल में विपक्ष से लेकर मीडिया तक में सवाल उठा कि घरेलू राजनीति में किसी राजदूत की ऐसी सक्रियता ठीक नहीं है. मुलाक़ातों का यह दौर पिछले ढाई महीने से चल रहा है.

भारत में नेपाल के राजदूत रहे लोकराज बराल ने इन्हीं मुलाक़ातों को लेकर पाँच मई को नेपाल टाइम्स से कहा था कि चीन नेपाल की राजनीति में माइक्रो मैनेजमेंट की ओर बढ़ रहा है. उन्होंने यह भी कहा था कि कुछ साल पहले तक यही काम भारत नेपाल में करता था.

सात जुलाई को होउ यांकी की सत्ताधारी पार्टी के नेताओं से जारी मुलाक़ातों के ख़िलाफ़ काठमांडू में नेपाली छात्रों ने चीनी दूतावास के बाहर पोस्टर लेकर प्रदर्शन भी किया.

पोस्टरों पर लिखा था कि दूतावास सत्ताधारी नेताओं के घर से संचालित न हो. इसे लेकर कुछ विपक्षी नेताओं ने भी सवाल उठाए.
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से पार्टी के लोग ही इस्तीफ़ा मांग रहे हैं. इस्तीफ़ा मांगने वाले पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड के खेमे के लोग हैं. भारत के मुख्याधारा के मीडिया में कहा जा रहा है कि चीन ओली सराकर को बचाने में लगा है क्योंकि ओली भारत विरोधी हैं.

यहां तक कि कई हिन्दी चैनलों ने प्रधानमंत्री केपी ओली और चीनी राजदूत होउ यांकी को लेकर सनसनीख़ेज़ दावे किए. कुछ चैनलों ने यह स्टोरी चलाई कि ओली को हनी ट्रैप में फंसा दिया गया है.

नेपाल ने इन रिपोर्ट पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई और केबल ऑपरेटरों से कहा कि ऐसे भारतीय न्यूज़ चैनलों को अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए प्रसारण से रोके.

जब भारत-नेपाल के बीच शुरू हुआ तनाव

काठमांडू पोस्ट के मुताबिक़, नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञावली ने कहा कि उन्होंने भारत में नेपाल के राजदूत नीलांबर आचार्य को भारतीय विदेश मंत्रालय के सामने कड़ी आपत्ति दर्ज कराने के लिए कहा है.

नीलांबर ने कहा कि भारतीय मीडिया नेपाल और भारत के द्विपक्षीय संबंधों को और ख़राब कर रहा है.

नेपाली मीडिया में कार्टून 

नेपाल और भारत में पिछले कुछ महीनों से सीमा विवाद के कारण तनाव है. दोनों देशों के रिश्ते ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर पहुंच गए हैं. 22 मई को नेपाल ने नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था, जिसमें कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख को अपना हिस्सा बताया था.
इसके बाद से दोनों देशों में तनाव बढ़ता गया. हालांकि इससे पहले भारत ने पिछले साल नवंबर में जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद अपना नक्शा अपडेट किया था. इस नक्शे में ये तीनों इलाक़े थे.

भारत का कहना है कि उसने किसी नए इलाक़े को नक्शे में शामिल नहीं किया है बल्कि ये तीनों इलाक़े पहले से ही हैं.

इन तमाम विवादों को भारतीय मीडिया में ख़ूब जगह मिली.

भारतीय मीडिया ने सही भूमिका निभाई?

क्या भारतीय मीडिया ने पूरे विवाद को जिस तरह से कवर किया वो दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में आए तनाव की आग में घी डालने की तरह है?

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कॉम्युनिकेशन में प्रोफ़ेसर आनंद प्रधान कहते हैं, ''इसमें कोई शक नहीं है. भारतीय मीडिया की रिपोर्टिंग में पत्रकारिता की जो बुनियादी चीज़ होती है उसका भी पालन नहीं किया गया है. आपकी रिपोर्टिंग तथ्यों के आधार पर होनी चाहिए. आप गल्प नहीं गढ़ सकते. आप अपने शो की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए किसी राजनयिक को प्रधानमंत्री के साथ हनी ट्रैप की बात कैसे चला सकते हैं? ये तो बहुत ही आपत्तिजनक है.''

आनंद प्रधान कहते हैं, ''दरअसल, दिक़्क़त यह है कि भारतीय मीडिया को लगता है कि नेपाल भारत का एक्स्टेंशन है. ये आज तक स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि वो एक संप्रभु राष्ट्र है और ख़ुद फ़ैसले ले सकता है. नेपाल अपनी विदेश नीति स्वतंत्र रूप से चला सकता है. भारतीय मीडिया को उपनिवेशवादी मानसिकता से बाज़ आने की ज़रूरत है. अगर इनकी रिपोर्टिंग ऐसी ही जारी रही तो दोनों देशों के संबंधों में लोगों के बीच जो गर्मजोशी है उसे भी नुक़सान होगा.''
नेपाल में नया पत्रिका के वरिष्ठ पत्रकार नरेश ज्ञावली कहते हैं कि अगर भारतीय मीडिया बताता है कि नेपाल चीन की गोद में बैठ गया है तो उसे इसके पक्ष में तथ्य भी देना चाहिए.

वो कहते हैं, ''भारत नेपाल की राजनीति में 2015 तक माइक्रो मैनेजमेंट करता रहा. नेपाल की राजनीति को नेपाल के लोग तय करेंगे न कि भारत. हमारा संविधान कैसा होगा ये भारत नहीं तय करेगा. ये नेपाल के लोग तय करेंगे. अगर नेपाल में मधेसी संविधान को लेकर सहमत नहीं थे तो ये नेपाली जनता का नेपाल की सरकार के ख़िलाफ़ विरोध था. भारत का मीडिया मधेसियों को भारतीय मूल का बताता है. ऐसा क्यों करता है? क्या मधेसी भारतीय मूल के हैं? मधेसी नेपाली हैं और उन्हें अपने अधिकारों को पाने के लिए भारत की ज़रूरत नहीं है. लेकिन भारत ने इसी को लेकर अघोषित नाकाबंदी लगा दी.''

भारत से दूरी के कारण चीन आया नेपाल के क़रीब?

ज्ञावली कहते हैं, ''नाकाबंदी के बाद नेपाल में ज़रूरत के सामानों की किल्लत हो गई. हम लैंड लॉक्ड देश हैं. भारत को ये बात पता है और फिर भी नाकाबंदी की. तो क्या हम भूखे रहते? चीन के अलावा विकल्प क्या था? हमें तो किसी से मदद लेनी थी. चीन के क़रीब भेजा किसने? जिस ओली को भारतीय मीडिया ने विलेन बना दिया है उसी ओली को भारत का क़रीबी कहा जाता था."

"महाकाली संधि को कराने में ओली की अहम भूमिका थी. भारत अपने क़रीबियों को भी क़रीब क्यों नहीं रख पा रहा है? ये कितनी गंदी हरकत है कि किसी महिला डिप्लोमैट का नाम बिना कोई तथ्य के प्रधानमंत्री के साथ हनी ट्रैप में घसीट दिया जाए. ये ओली और उस महिला डिप्लोमैट का नहीं बल्कि नेपाल का अपमान है. आप चाहते हैं कि अपमान भी सहें और आपके पीछे-पीछे भी चलें?''

काठमांडू पोस्ट के एक वरिष्ठ रिपोर्टर ने नाम नहीं ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा, ''जो भारतीय मीडिया ये दिखा रहा है कि ओली चीन समर्थक हैं उसे तथ्यों का इल्म नहीं है. अमरीका ने नेपाल के साथ 50 करोड़ डॉलर का मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन यानी एमसीसी करार किया है. यह करार इंडो पैसिफिक स्ट्रैटिजी का हिस्सा है. ज़ाहिर है इसमें भारत भी शामिल है. चीन क़तई नहीं चाहता है कि यह क़रार ज़मीन पर उतरे."
"एमसीसी नेपाल में चीन के प्रभाव को कम करने के लिए हैं. इस समझौते को प्रधानमंत्री ओली ने ही अंजाम तक पहुंचाया है. अगर ओली की कुर्सी ख़तरे में है तो इसकी एक बड़ी वजह ये भी है. नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर ही एमसीसी पर सहमति नहीं है. प्रचंड नहीं चाहते हैं कि यह करार आगे बढ़े लेकिन ओली इससे डिगना नहीं चाहते हैं. अब भारत और भारतीय मीडिया ख़ुद तय कर ले कि क्या ओली वाक़ई चीन समर्थक हैं?''

नेपाली मीडिया में कार्टून 

नेपाल में एमसीसी को लेकर कहा जाता है कि यह चीन को रोकने के लिए है. अमरीका ने एक जून, 2019 को इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटिजी रिपोर्ट जारी की थी. इस रिपोर्ट में चीन को ख़तरा बताया गया है.

दरअसल, नेपाल एमसीसी के साथ चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना वन बेल्ट वन रोड का भी हिस्सा है. 2015 में भारत की तरफ़ से अघोषित नाकाबंदी हुई थी तो नेपालियों को लगा कि चीन से और क़रीब आने की ज़रूरत है. ऐसे में वन बेल्ट वन रोड को भी सकारात्मक रूप में लिया गया. चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर अमरीका ने भी नेपाल को काफ़ी तवज्जो दी है.

इसी साल जनवरी में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की स्टैंडिंग कमिटी की बैठक हुई थी तो एमसीसी का मुद्दा उठा था. पार्टी के भीतर कई नेताओं ने कहा कि यह इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटिजी का हिस्सा है और इससे चीन के साथ संबंध ख़राब होंगे.

'नेपाल के पीएम की भी मर्यादा है'

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर भी इसे भारत और अमरीका की चीन के ख़िलाफ़ रणनीति बताई जा रही है. हालांकि विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञावली सफ़ाई दे चुके हैं कि एमसीसी इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटिजी का हिस्सा नहीं है.

नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार युवराज घिमरे कहते हैं कि भारत को ब्रिग ब्रदर की तरह पेश नहीं आना चाहिए.

वो कहते हैं, ''अगर नेपाल सीमा विवाद को लेकर भारत से बातचीत के लिए अनुरोध कर रहा है तो उसे स्वीकार करना चाहिए. आप चीन से बात कर सकते हैं, पाकिस्तान से कर सकते हैं तो नेपाल से करने में क्या दिक़्क़त है.''

कई भारतीय पत्रकारों को भी लगता है कि भारतीय न्यूज़ चैनलों पर नेपाल-भारत तनाव की रिपोर्टिंग किसी गॉसिप की तरह की गई है.

इंडिया टुडे के एक जाने-माने एंकर ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, ''नेपाल-भारत में विवाद पर कुछ चैनलों की रिपोर्टिंग बॉलीवुड गॉसिप की तरह है. अगर आपके प्रधानमंत्री की मर्यादा है तो नेपाल के पीएम की भी उतनी ही मर्यादा है. आप पत्रकार हैं इसका मतलब ये नहीं कि किसी का मान मर्दन करें और किसी की तारीफ़ में बिछे रहें.'' (www.bbc.com)
 

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