सामान्य ज्ञान
सुपारी के पेड़ खजूर और नारियल के पेडों के समान बड़े होते हैं। सुपारी के वृक्ष पर जो फल लगते हैं उनके भीतर से जो गीरी प्राप्त होती है, वह सुपारी कहलाती है। सुपारी की विभिन्न किस्में पाई जाती हैं जिनमें जिहाजी, श्रीवर्धनी और मानगचन्दी प्रमुख हैं।
सुपारी मूलत: उष्णकटिबंधीय क्षेत्र का वृक्ष है। इसका मूल स्थान दक्षिण एशिया और पूर्वी अफ्रीका के देश रहे हैं। इसके साथ ही भारत समेत पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान , ताइवान, म्यांमार ,कंबोडिया , सोलोमन द्वीप, थाइलैंड, लाओस, मालदीव, पलाऊ और वियतनाम आदि देशों में भी सुपारी प्राप्त होती है। सुपारी को अनेक भाषाओं मे अलग-अलग नामों से पुकारा जाता रहा है। संस्कृत में इसे पूगीफल कहा गया है, बंगाल की तरफ इसे शुपारी कहते हैं । इसके अलावा इसे छालिया, कसैली, शोपारी, पापील, बिटलनट नामों से भी जाना जाता है।
सुपारी शीतल प्रकृति की है इसलिए खाने पर यह तन एवं मन को शीतलता से भर देती है। यह पाचक है पर साथ में स्वाद में कसैली, रू़क्ष, चरपरी परंतु मधुर, स्वादिष्ट ,रूचि-जनक भी होती है। सफेद सुपारी जब पूर्ण रुप से पक जाती है तब इसे धूप में सुखाकर प्रयोग में लाया जाता है और दूसरी लाल रंग की सुपारी यह कच्चे रूप में ही काट ली जाती है। इसके बाद इसे उबाला जाता है और उसके छिलके, भूसी को निकालकर तैयार की जाती है।
सुपारी का भारतीय एवं अन्य संस्कृ्तियों में विशेष महत्व रहा है। यह अनेक धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक उत्सवों में उपयोग की जाती है । सुपारी को अधिकतर पान के साथ उपयोग किया जाता है। यह पान मसालों में भी इस्तेमाल होती है।