विचार / लेख
विष्णु नागर
दुनिया के प्रतिष्ठित मेसाचुएट्स इंस्टीट्यूट आफ टैक्नोलॉजी का कोरोना के बारे में अध्ययन बेहद डरानेवाला है।इसके अनुसार इस बीच कोरोना का टीका या दवा खोजी नहीं जा सकी तो अगले साल की गर्मियों तक दुनियाभर में 24.9 करोड़ मामले सामने आ चुके होंगे और मौतों की संख्या 18 लाख तक पहुंच चुकी होगी।भारत उस समय तक कोरोना के मामले में अमेरिका को भी पछाड़ चुका होगा।
अगले साल की शुरुआत तक भारत में प्रतिदिन कोरोना के मामले 2.87 लाख तक होंगे। यह अध्ययन बताता है कि अगली मई और उससे आगे भी इससे मुक्ति नहीं है,अगर इसका प्रतिरोधक टीका या दवाई ईजाद नहीं हुई तो!
यह अध्ययन जहाँ डरानेवाला है,वहीं दवाई और टीके के जल्दी ईजाद की जरूरत को रेखांकित करने वाला भी है मगर न तो दुनिया को बाबा रामदेव टाइप फर्जी दवा चाहिए और न 15 अगस्त तक फर्जी शोध पर आधारित टीका चाहिए।अगले साल जनवरी तक टीका ढूँढ लिए जाने की संभावना है और 19 टीकों का परीक्षण किसी नतीजे तक पहुँचने की संभावना है मगर सारे हल विज्ञान के पास नहीं हैं,जब तक किसी देश का राजनीतिक तंत्र जिम्मेदार न हो।ऐसा न हो,जो मानव जीवन की कद्र न करता हो।स्थितियाँ दुनिया के बहुत से देशों में ऐसी ही है।अमेरिका के राष्ट्रपति की कुल चिंता नवंबर में चुनाव जीतने की है।ब्राजील का राष्ट्रपति ट्रंप से कम है या ज्यादा है,कहना कठिन है।रूस का राष्ट्रपति भी कम खुदा नहीं है।भारत का प्रधानमंत्री भी महान भाषणबाज है।समझ और दृष्टि के मामले में गयाबीता है।उसे एक बात मालूम है उसे अंबानियों-अडाणियों को गले गले तक धन के सागर में डुबो देना है।
उधर भारत का सरकारी तंत्र भी कभी मानव जीवन की परवाह करनेवाला है नहीं।टीका आ भी गया तो सारे ताकतवर लोग उसे फटाफट लगवा कर सुरक्षित हो जाएँगे और बहुत हद तक साधारण सामान्य जनों को भाग्य भरोसे छोड़ देंगे। शायद जबर्दस्त जनप्रतिरोध ही इस बंदरबांट को रोक सके।इससे पहले ही शासक वर्ग सचेत हो जाएगा, अपने स्वार्थ की परिधि से बाहर निकल आएगा, इसकी आशा तो नहीं है मगर अभी आशा करने में बुराई नहीं है।
एक ही उम्मीद है कि मनुष्य में ऐसा कुछ है,जो प्रलय की भविष्यवाणियों को झुठलाने की क्षमता रखता है।