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वर्क फ्रॉम होम में भी आ रहे हैं यौन उत्पीड़न के मामले
09-Jul-2020 9:20 AM
वर्क फ्रॉम होम में भी आ रहे हैं यौन उत्पीड़न के मामले

photo credit : https://cpj.org/.

लॉकडाउन में ऑनलाइन सुनवाई

एक पुरुष सहकर्मी अपनी महिला बॉस के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस में बिना पैंट-शर्ट पहने आ गया. उसने शराब पी रखी थी.

ऑफिस के एक वीडियो कांन्फ्रेंस के दौरान पुरुष कर्मचारी ने एक महिला सहकर्मी की तस्वीर का बिना पूछे स्क्रीनशॉट ले लिया.

एक सीनियर अधिकारी ने महिला सहकर्मी को देर रात फोन करके कहा, मैं बहुत बोर हो गया हूं कुछ निजी बातें करते हैं.

लॉकडाउन के कारण ऑफिस घर पर शिफ्ट हो गया है लेकिन, इसके साथ ही यौन उत्पीड़न के मामले भी अब ऑफिस से घर तक पहुंच गये हैं.

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामले पहले भी आते रहे हैं लेकिन, वर्क फ्रॉम होम में भी अब ये समस्या आने लगी है.

 वीडियो कॉन्फ्रेंस में मीटिंग कर रहे हैं, मैसेज या ऑनलाइन माध्यमों से ज़्यादा से ज़्यादा संपर्क कर रहे हैं. ऐसे में महिलाएं यौन उत्पीड़न के मामलों में एक नई तरह की स्थिति का सामना कर रही हैं.

एचआर ‘कंसल्टेंसी’ ‘केल्पएचआर’ के पास महिलाओं ने इस तरह की शिकायतें की हैं. केल्पएचआर यौन उत्पीड़न के क्षेत्र में काम करती है.

इसकी सह-संस्थापक स्मिता कपूर कहती हैं, “लॉकडाउन के दौरान हमारे पास कई महिलाओं की शिकायतें आई हैं जिन्होंने वर्क फ्रॉम होम में यौन उत्पीड़न के मसले पर सलाह मांगी है. कुछ महिलाओं को ये उलझन है कि वर्क फ्रॉम होम होने के कारण क्या ये कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के तहत आएगा. इसमें आगे क्या करना है. कुछ महिलाएं इस संबंध में अपने ऑफिस में शिकायत भी कर चुकी हैं.”

वर्क फ्रॉम होम पहले से भी चलन में रहा है लेकिन लॉकडाउन के दौरान ये बड़ी ज़रूरत बन गया. सरकारी से लेकर निजी कंपनियां वर्क फ्रॉम होम को ही प्राथमिकता दे रही हैं.

लेकिन, इसे लेकर जागरुकता कम है कि अगर घर पर काम करते हुए यौन उत्पीड़न होता है तो वो किस क़ानून के तहत आएगा. महिलाएं ऐसे में क्या कर सकती हैं.

वर्क फ्रॉम में होने वाले यौन उत्पीड़न में भी वही नियम-क़ानून लागू होंगे जो कार्यस्थल पर होने वाले मामलों में लागू होते हैं.

अगर किसी महिला के साथ ऐसा मामला सामने आता है तो वो कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न क़ानून के तहत अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है.

कार्यस्थल की परिभाषा

यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ सहायता करने वाली संस्था “साशा” की संस्थापक और वक़ील कांति जोशी कहती हैं कि पहले हमें ये समझना होगा कि कार्यस्थल की परिभाषा क्या है. कार्यस्थल का दायरा सिर्फ ऑफिस तक ही सीमित नहीं है. काम के सिलसिले में आप कहीं पर भी हैं या घटना काम से जुड़ी है तो वो कार्यस्थल के दायरे में आती है.

कांति जोशी कहती हैं, “हमारे पास एक मामला आया था कि मैनेजर ने महिला सहकर्मी से कहा कि लॉकडाउन में मिले हुए काफी दिन हो गए. मैं तुम्हारे घर के सामने से जा रहा हूं, चलो मिलते हैं. इस तरह के मामले भी यौन उत्पीड़न का ही हिस्सा हैं. सेक्सुअल प्रकृति का कोई भी व्यवहार जो आपकी इच्छा के विरुद्ध है, आप उसकी शिकायत कर सकती हैं. ऐसे मामलों की जांच के लिए 10 से ज़्यादा कर्मचारियों वाली किसी भी कंपनी में आंतरिक शिकायत समिति बनी होती है.”

महिलाओं को कानूनी सहयोग देने और उनके उत्पीड़न पर रोक लगाने के लिए कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध एवं निदान) अधिनियम, 2013 लाया गया था. इसे विशाखा गाइडलाइन्स के नाम से भी जाना जाता है.

इस कानून के तहत संगठित और गैर संगठित दोनों ही क्षेत्र शामिल हैं. इस कानून के संबंध में अन्य जानकारियां नीचे दी गई हैं.

यौन उत्पीड़न क्या है

महिला की इच्छा के विरुद्ध यौन भावना से संचालित किए गए व्यवहार को यौन उत्पीड़न माना जायेगा. इसमें यौन संबंधी कोई भी शारीरिक, मौखिक या अमौखिक आचरण शामिल है.

यदि किसी महिला के अपने वरिष्ठ या सह कर्मचारी से किसी समय आंतरिक संबंध रहे हों लेकिन वर्तमान में महिला की सहमति न होने पर भी उस पर आंतरिक संबंध बनाने के लिए दबाव डालना.

वर्चुअल या ऑनलाइन यौन उत्पीड़न की बात करें तो उसमें आपत्तिजनक मैसेज, ऑनलाइन स्टॉकिंग, वीडियो कॉल के लिए दबाव, अश्लील जोक्स और वीडियो कॉफ्रेंस में उचित ड्रेस में ना होना शामिल है.

शिकायत दर्ज कराने पर आगे की प्रक्रिया

कोई भी महिला ऐसी घटना होने के तीन महीनों के अंदर अपनी शिकायत समिति को दे सकती है.

नियोक्ता द्वारा एक आंतरिक शिकायत समिति बनाई जाए.

महिलाओं के लिए एक विशेष परामर्शदाता हो.

समिति में कम से कम आधी सदस्य महिलाएं ही होंगी.

एक सदस्य महिलाओं संबंधी मुद्दों पर काम करने वाली गैर-सरकारी संस्थाओं से या यौन प्रताड़ना से जुड़े मामलों का जानकार व्यक्ति होगा.

अगर किसी कंपनी में 10 से कम कर्मचारी होते हैं या नियोक्ता स्वयं आरोपी हो तो स्थानीय शिकायत समिति बनाई जाएगी. डिस्ट्रिक्ट ऑफिसर द्वारा इस कमिटी का गठन किया जाएगा. महिला स्थानीय थाने में भी शिकायत दर्ज करा सकती है.

कमिटी की जांच तीन महीनों के अंदर पूरी होना अनिवार्य है.

जांच के दौरान महिला को तुरंत अंतिरम राहत दी जाती है. उसे पेड लीव मिल सकती है और वो ट्रांस्फर भी ले सकती है.

लॉकडाउन में ऑनलाइन सुनवाई

कांति जोशी बताती हैं कि लॉकडाउन के कारण ऐसे में मामलों में ऑनलाइन सुनवाई भी की जा रही है ताकि समय पर न्याय किया जा सके. उन्होंने ऑनलाइन सुनवाई से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें बताईं.

समिति दोनों से ऑनलाइन माध्यम से सुनवाई के लिए सहमति लेती है. शिकायत के सात दिनों के अंदर अभियुक्त को आरोपों के बारे में सूचित किया जाता है.

अभियुक्त को 10 दिनों के अंदर अपना जवाब लिखित में देना होता है. इसके बाद समिति दोनों पक्षों को सुनती है और अगर दोनों पक्ष सहमत हों तो ऑनलाइन सुनवाई होती है.

अगर अभियुक्त या पीड़ित ये कहते हैं कि वो ऑनलाइन सुनवाई के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि परिवार के सामने वो वीडियो पर सुनवाई में नहीं आ सकते. ऐसे में जांच रोकी जा सकती है जब तक कि दोनों अभियुक्त या पीड़ित की समस्या ख़त्म ना हो जाए. एक ऐसे ही मामले में अभियुक्त का लिखित जवाब लेकर जांच को लॉकडाउन ख़त्म होने तक रोक दिया था. इसके बाद ऑफिस बुलाकर आगे की कार्रवाई की गई.

इन तीन बातों का रखें ध्यान

स्मिता कहती हैं कि वर्क फ्रॉर्म होम ज़रूर एक नया चलन है लेकिन यौन उत्पीड़न की शिकायतों में महिलाओं को बिल्कुल भी उलझन में पड़ने की ज़रूरत नहीं हैं. मैं उन्हें सलाह दूंगी कि सबसे पहले ख़ुद को दोष ना दें. आपने क्या बोला, आप कैसी बैठी थीं, क्या फोटो डाली थे, इस पर गौर ना करें.

दूसरा, अगर आपको किसी का व्यवहार अश्लील या आपत्तिजनक लगता है तो उसे तुरंत टोकें और सबूत या बातों का रिकार्ड रखें. स्मिता बताती हैं कि वीडियो कॉन्फ्रेंस के दौरान जब एक महिला के सामने उसका पुरुष सहकर्मी बिना पैंट शर्ट पहने आया तो उसने पहले उसे टोका, फिर उसका स्क्रीन शॉट लिया और फिर कॉल डिस्कनेक्ट कर दी.
तीसरा, इसके बाद मामले की तुरंत शिकायत करो. गैर-ज़रूरी जगहों पर चर्चा करने की बजाए कंपनी में समिति के सदस्यों को इस बारे में शिकायत करें.

स्मिता कपूर कहती हैं कि कई बार अभियुक्त कह सकता है कि घर मेरा पर्सनल स्पेस है और यहां मैं नियमों से बंधा नहीं हूं. साथ ही इसमें कार्यस्थल की बात हो तो घटना के समय ऑफिस टाइम था या नहीं ये भी देखा जा सकता है. लेकिन, फिर कंपनियां कहती हैं कि पीड़ित को इतना सोचने की ज़रूरत नहीं है. अगर उसे किसी का व्यवहार आपत्तिजनक लगा है तो उसके बारे में कंपनी को ज़रूर सूचित करें.(bbc)

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