विचार / लेख

भारत और अमरीका के बीच व्यापारिक संबंधों में हाल के वर्षों में गति आई है, और इसकी परिणति एक संभावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते के रूप में देखी जा रही है. अमरीकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस की आगामी भारत यात्रा इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है. अमरीका, भारत के विशाल कृषि और डेयरी बाजार में अपने उत्पादों के लिए अधिक पहुंच चाहता है, जबकि भारत अपने किसानों और स्थानीय अर्थव्यवस्था की रक्षा के लिए सतर्क रुख अपनाए हुए है. इस लेख में हम भारत-अमरीका व्यापार वार्ता के संदर्भ में कृषि और डेयरी क्षेत्र पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों, टैरिफ युद्ध की चुनौतियों और भारतीय किसानों के सामने आने वाली समस्याओं पर चर्चा करेंगे.
अमरीका लंबे समय से भारत से अपने कृषि और डेयरी उत्पादों, जैसे गेहूं, मक्का, सोयाबीन, कपास, बादाम और डेयरी उत्पादों, के लिए भारतीय बाजार में आसान पहुंच की मांग कर रहा है. वर्तमान में भारत अमरीकी आयात पर औसतन 52 प्रतिशत टैरिफ लगाता है, जो अमरीकी उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता को सीमित करता है. दूसरी ओर अमरीका का तर्क है कि भारत को अपने कृषि बाजार को और अधिक उदार करना चाहिए ताकि पारस्परिक व्यापार को बढ़ावा मिले. अमरीकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक और व्यापार प्रतिनिधि जेमीसन ग्रीर ने भारतीय अधिकारियों के साथ इस मुद्दे को बार-बार उठाया है.
हालांकि, भारत के लिए यह इतना सरल नहीं है. भारत की अर्थव्यवस्था का 70 प्रतिशत हिस्सा कृषि और इससे संबंधित गतिविधियों पर निर्भर है, और लगभग 70 करोड़ लोग कृषि, डेयरी, मत्स्य पालन और पोल्ट्री जैसे क्षेत्रों से अपनी आजीविका चलाते हैं. भारतीय सरकार इन क्षेत्रों को मजबूत करने के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही है, जैसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), उर्वरक और बिजली पर सब्सिडी, और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत प्रति किसान 6,000 रुपये की वार्षिक सहायता. इसके विपरीत अमरीका अपने किसानों को प्रति व्यक्ति 26.8 लाख रुपये (लगभग 30,782 अमरीकी डॉलर) की औसत सहायता प्रदान करता है, जो भारतीय समर्थन से कहीं अधिक है.
भारत और अमरीका के बीच टैरिफ युद्ध का एक प्रमुख कारण दोनों देशों में किसानों को मिलने वाले सरकारी समर्थन में असमानता है. अमरीकी किसान मूल्य हानि कवरेज, कृषि जोखिम कवरेज, डेयरी मार्जिन कवरेज, और संघीय फसल बीमा जैसे कार्यक्रमों के तहत भारी सब्सिडी प्राप्त करते हैं. ये सब्सिडी अमरीकी उत्पादों को भारतीय बाजार में सस्ता बनाती हैं, जिससे भारतीय किसानों के लिए प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो जाता है. उदाहरण के लिए, यदि भारत डेयरी उत्पादों पर टैरिफ कम करता है, तो अमरीकी डेयरी उत्पादों का आयात बढ़ सकता है, जिससे भारतीय डेयरी किसानों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है.
भारत सरकार अपने 111 मिलियन किसानों को समर्थन देने के लिए प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख करोड़ रुपये (57.5 बिलियन अमरीकी डॉलर) खर्च करती है, जबकि अमरीका 32.2 बिलियन डॉलर खर्च करके केवल 2 मिलियन किसानों को लाभान्वित करता है. प्रति किसान समर्थन की यह भारी असमानता भारतीय किसानों को असुरक्षित बनाती है. यदि टैरिफ और बाजार प्रतिबंध हटा दिए जाते हैं, तो सस्ते अमरीकी उत्पाद, जैसे कपास, सोयाबीन, मक्का और सेब, भारतीय बाजार में बाढ़ ला सकते हैं, जिससे कीमतों में भारी गिरावट और स्थानीय किसानों की आय में कमी हो सकती है.
भारत में कृषि केवल एक आर्थिक गतिविधि नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का एक सांस्कृतिक तरीका भी है. भारतीय पर्व और परंपराएं कृषि चक्र पर आधारित हैं, और किसान देश की सामाजिक-आर्थिक संरचना का आधार हैं. इसके विपरीत, .अमरीका और अन्य विकसित देश कृषि को मुख्य रूप से लाभकारी उद्योग के रूप में देखते हैं. 2024 में अमरीका का कृषि निर्यात 176 बिलियन डॉलर था, जो इसके कुल व्यापारिक निर्यात का 10 प्रतिशत है. बड़े पैमाने पर मशीनीकृत खेती और सरकारी सब्सिडी के साथ अमरीका भारत को अपने कृषि निर्यात के लिए एक आकर्षक बाजार के रूप में देखता है.
हालांकि, भारत अपने किसानों को अनुचित प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए उच्च टैरिफ और कल्याणकारी योजनाओं का उपयोग करता है. यदि भारत अपने कृषि बाजार को पूरी तरह से खोल देता है, तो सस्ते आयात के कारण स्थानीय उत्पादन कमजोर हो सकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा और किसानों की आजीविका पर खतरा मंडरा सकता है. अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) जैसे संगठनों ने इस संभावना पर चिंता जताई है, विशेष रूप से डेयरी और कपास जैसे क्षेत्रों में, जहां अमरीकी आयात का प्रभाव विनाशकारी हो सकता है.
इसके बावजूद, यदि टैरिफ में कमी की जाती है, तो अमरीकी डेयरी उत्पादों का आयात बढ़ सकता है, जिससे भारत के डेयरी किसानों को भारी नुकसान हो सकता है. AIKS ने चेतावनी दी है कि यह भारतीय डेयरी क्षेत्र के लिए "मौत की घंटी" साबित हो सकता है.
विश्व व्यापार संगठन (WTO) भारत जैसे विकासशील देशों को उच्च टैरिफ और सब्सिडी के माध्यम से अपने कृषि क्षेत्र की रक्षा करने की अनुमति देता है. "गैर-पारस्परिकता" के सिद्धांत के अनुसार, विकसित देशों को भारत जैसे देशों से समान बाजार पहुंच की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. भारत ने इस सिद्धांत का पालन करते हुए अमरीकी मांगों का विरोध किया है, विशेष रूप से 2022 में जेनेवा में हुई WTO बैठक में. भारत ने अपनी खाद्य सुरक्षा नीतियों और किसानों के हितों को प्राथमिकता देते हुए सब्सिडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे उपायों को जारी रखने का फैसला किया है.
भारत और अमरीका के बीच व्यापार वार्ता एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है, जिसमें कृषि और डेयरी क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं. .अमरीका अपने आर्थिक हितों को बढ़ावा देने के लिए भारत के विशाल बाजार में प्रवेश करना चाहता है, लेकिन भारत के लिए अपने किसानों और स्थानीय अर्थव्यवस्था की रक्षा करना सर्वोपरि है. टैरिफ युद्ध और असमान सरकारी समर्थन के बीच, भारत को अपनी खाद्य सुरक्षा नीतियों और किसानों की आजीविका को सुरक्षित रखने के लिए सावधानीपूर्वक रणनीति अपनानी होगी. अमरीकी उपराष्ट्रपति की यात्रा इस चर्चा को और तेज कर सकती है, लेकिन भारत को अपने हितों से समझौता किए बिना इस चुनौती का सामना करना होगा.