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स्वतंत्रता का अधिकार संरक्षित, लेकिन नियंत्रित एवं प्रतिबंधित भी: उच्चतम न्यायालय
15-Apr-2025 10:07 PM
स्वतंत्रता का अधिकार संरक्षित, लेकिन नियंत्रित एवं प्रतिबंधित भी: उच्चतम न्यायालय

नयी दिल्ली, 15 अप्रैल। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि यद्यपि स्वतंत्रता किसी व्यक्ति के जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण होती है, लेकिन यह नियंत्रित और प्रतिबंधित है तथा समाज में कोई भी तत्व इस तरह से कार्य नहीं कर सकता जिससे दूसरों के जीवन और स्वतंत्रता को खतरा हो।

न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने अंतरराज्यीय मानव तस्करी मामले में 13 आरोपियों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दी गई जमानत को रद्द करते हुए उन्हें ‘‘समाज के लिए बड़ा खतरा’’ बताया।

पीठ ने कहा, ‘‘यह स्पष्ट है कि स्वतंत्रता की कीमत किसी व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती है, लेकिन यह नियंत्रित और प्रतिबंधित है तथा समाज में कोई भी तत्व इस तरह से कार्य नहीं कर सकता, जिससे दूसरों के जीवन या स्वतंत्रता को खतरा हो, क्योंकि न्यायसंगत सामूहिकता किसी असामाजिक या समूह-विरोधी कार्य का समर्थन नहीं करती है।’’

शीर्ष अदालत ने गंभीर अपराधों में आरोपी व्यक्तियों को जमानत दिये जाने और इसे निरस्त करने के अपने कानूनी अवधारणाओं का हवाला दिया।

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने पीठ की ओर से लिखे गए अपने 95-पृष्ठ के फैसले में कहा, ‘‘हम इस बात से पूरी तरह अवगत हैं कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, क्योंकि किसी व्यक्ति को उसकी आजादी से वंचित किये जाने का उसके मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।’’

न्यायालय ने रेखांकित किया कि कभी-कभी यह शून्यता की भावना पैदा करता है।

पीठ ने कहा, ‘‘इस बात पर जोर देने की आवश्यकता नहीं है कि सभ्य समाज में स्वतंत्रता की पवित्रता सर्वोपरि है।’’

न्यायालय ने कहा कि एक व्यवस्थित समाज में किसी व्यक्ति से कानून और दूसरों के अधिकारों का सम्मान करते हुए गरिमा के साथ रहने की उम्मीद की जाती है।

पीठ ने कहा, ‘‘यह एक सर्वमान्य सिद्धांत है कि स्वतंत्रता की अवधारणा निरंकुशता के दायरे में नहीं है, बल्कि सीमित है।’’

पीठ ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता को इस हद तक नहीं बढ़ाया जा सकता या इतना ऊंचा नहीं किया जा सकता कि समाज में अराजकता या अव्यवस्था पैदा हो।

पीठ ने कहा, ‘‘एक संगठित समाज में स्वतंत्रता की अवधारणा के लिए मूल रूप से नागरिकों को जिम्मेदार होना चाहिए और (उसे) शांति एवं सुरक्षा को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए, जिसकी हर नेकनीयत व्यक्ति इच्छा रखता है।’’

शीर्ष अदालत ने अंतर-राज्यीय बाल तस्करी रैकेट से संबंधित तीन प्राथमिकी में उच्च न्यायालयों द्वारा पारित विभिन्न जमानत आदेशों को खारिज करते हुए सभी मामलों की शीघ्र सुनवाई का निर्देश दिया।

इसने सभी उच्च न्यायालयों को बाल तस्करी के मामलों की सुनवाई छह महीने के भीतर पूरी करने के निर्देश जारी करने को भी कहा। (भाषा)

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