-सनियारा खान
कभी इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज जगनमोहन लाल सिन्हा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध घोषित करने की हिम्मत की थी। शायद उस समय संविधान और लोकतंत्र का स्वरूप सच में अलग हुआ करता था।
अब बात करते है इस समय की। पिछली बीस मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट के ही एक न्यायाधीश राम मनोहर नारायण मिश्र ने कहा कि अगर कोई पुरुष किसी औरत के निजी अंगों को छूने या फिर पाजामा का नाड़ा तोड़े तो इसे बलात्कार करने की कोशिश नहीं माना जा सकता। ये बड़ी बात नहीं है कि उन्होंने ये कहा, बड़ी बात ये है कि इस घटिया बयान को लेकर पूरे देश में जिस तरह आक्रोश फैलना चाहिए था, उस तरह कुछ भी नहीं हुआ। ये एक संकेत है कि सामाजिक मानसिकता पतन की दिशा में जाने तैयार हो गई है। बड़ी बात यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस कथन की खंडन करने के लिए काफी समय ले लिया....जब कि हम मार्च के महीने में ही पूरे विश्व के साथ कदम मिला कर महिला दिवस मनाते हैं।
न्याय प्रणाली के साथ साथ राजनीति के अनेक महारथी गण औरतों के अधिकारों को लेकर बड़ी बड़ी बातें कहते हैं। लेकिन हकीकत में बहुत सारे बलात्कारियों को राजनैतिक नुकसान होने के डर से बचा लिया जाता हैं। जब न्याय प्रणाली के प्रति राजनेताओं का डर खतम हो जाता हैं और न्याय प्रणाली खुद ही एक राजनैतिक बंदी बन जाती है, तब देश पतन की दिशा में तेजी से बढऩे लगता है। इसीलिए तो शासन और न्याय व्यवस्था की कमजोरी का फायदा उठाकर आसाराम और राम रहीम जैसे लोग जब मर्जी तब खुले आसमान के नीचे सांस लेने पहुंच जाते हैं। और अब तो बलात्कारियों का समाज में सम्मान करने का रिवाज़ भी जोरों पर है। तो देश में ‘निर्भया’ कम कैसे होगी? बल्कि निर्भायाओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है!
न्यायालय में एक पीडि़ता को न्याय न मिलने पर दस बलात्कारियों की हिम्मत बढ जाती है। जिस समय ‘बेटी पढ़ेगी’और ‘बेटी बचेगी’जैसे स्लोगनों से दीवारें भरी हुई देखी जा रही है, उस समय गुजरात में एक स्कूल की लडक़ी जो कि ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’इस विषय में बोल कर पुरस्कार जीत जाती है, उसी का बलात्कार होने की खबर हमें पढऩे मिलती हैं। उत्तर प्रदेश में बलात्कार पीडि़ता पत्नी के लिए आवाज़ उठाने पर एक पति को बलात्कारियों द्वारा जला देने की खबर हमने पढ़ी हैं। और हां, कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक केस में यह कहा था कि पत्नी की इच्छा के विरुद्ध अप्राकृतिक यौनाचार करने वाले पति को अपराधी नहीं कहा जा सकता है। अब ये सोचकर दिल दहल जाता है कि चाहे नन्ही सी गुडिय़ा हो या फिर अस्सी साल की दादी नानी हो, इस समाज में और इस कानून में सभी संकट में हैं।
एक खबर के अनुसार मुजफरपुर जेल में रह रही एक औरत ने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, महिला आयोग, राज्य के मुख्य सचिव और जेल के डीआईजी को चि_ी लिखकर कहा कि जेल में शारीरिक संबंध बनाने से इंकार करने पर खाना न देकर भूखा रखा जाता है और मारपीट भी की जाती है। हमें मालूम है कि इस बात पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। इस बीच मध्यप्रदेश में एक बलात्कारी की सज़ा इस बात पर कम कर दी गई कि उस बलात्कारी ने पीडि़ता को जान से तो नहीं मारा। इससे ये पता चलता है कि वह बलात्कारी होते हुए भी एक दयालु आदमी है। लगता है अब न्याय इसी तरह होगा ।
अमर्त्य सेन ने बहुत पहले ये कहा था कि चार बिंदु पर चर्चा करने पर पता चलता है कि एक औरत कितनी शक्तिशाली है।
-एक औरत कितनी शिक्षित है
-उसकी स्वतंत्र आय की क्षमता
-वह घर से बाहर निकल कर आज़ादी से काम कर पाती है या नहीं
-संपत्ति पर उनका स्वामित्व
अब हम आते हैं केरल के मुख्य सचिव बन कर दायित्वपूर्ण काम संभालने वाली महिला शारदा मुरलीधरन पर। अमर्त्य सेनजी के कहे सभी बिन्दुओं को आसानी से छू कर भी शारदा मुरलीधरन अपने शारीरिक रंग के कारण अपमान सहती है। करीब करीब हर रोज अपने रंग को ले कर उन्हें भद्दे कमेंट सुनना पड़ता है, जो कि एक तरह से मानसिक बलात्कार ही तो है। कैसा होगा इस समाज का आने वाला समय, जहां औरतों को बलात्कार और अपमानित करने वालों के लिए सम्मान और फूलों के हार आगे कर दिया जाता है? और जहां पर घर के ही लोगों के हाथ बेटी बनकर जन्म लेने पर एक शिशु की हत्या करते हुए नहीं कांपते हैं?
अभी अभी असम के हातीगांव से सामूहिक बलात्कार की खबर आई पर कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। तभी तो रामनवमीं के दिन जिन कन्याओं को माता दुर्गा मानकर प्यार और सम्मान से भोजन कराया जाता है, छत्तीसगढ़ के दुर्ग से उन्हीं कन्याओं में से एक मासूम कन्या को सगे चाचा द्वारा बेरहमी से बलात्कार और हत्या करने की खबर आ रही है। अफसोस की बात है कि लोग अब ऐसी खबरों से जऱा भी विचलित नहीं होते हैं। खुद की मां, बेटी, बहन या पत्नी के साथ जब तक ऐसा कुछ नहीं होता है, तब तक सब कुछ ठीक ही लगता है। उन्हें ये समझ में नहीं आता कि- लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है। (बकौल राहत इंदौरी जी)