-ध्रुव गुप्त
नन्हे पक्षी हमारी प्रकृति की सबसे मासूम रचना हैं और उनका कलरव सबसे खूबसूरत आवाज। मनुष्य और पक्षियों के बीच का रिश्ता हमेशा से बहुत गहरा रहा है। विश्व की लोकगाथाओं और काव्य ने इस खूबसूरत रिश्ते को अभिव्यक्ति दी है। पक्षियों से हमारी निकटता की एक बड़ी वजह उनकी आवाज की मधुरता के साथ उनमें हमारी तरह की सांगीतिक चेतना भी है। उनके गीत हमारे अपने गीतों के समानांतर संगीत का अलग संसार रचते रहे हैं। शोधकर्ताओं ने तमाम पक्षियों के गीतों का अध्ययन करने के बाद प्रकृति के दस सबसे बेहतरीन गायक पक्षियों की खोज की है जिनमें हमारी घरेलू गौरैया प्रमुख है। दुनिया के लगभग हर हिस्से में पाई जाने वाली यह गौरैया एक सामाजिक पक्षी है जो हमारे घरों में, हमारे बीच ही रहना पसंद करती है। वह घर से बाहर तक, आंगन से सडक़ तक और रिश्तों के बीच की खाली जगहों में हमारी नैसर्गिक मासूमियत का विस्तार है।
बेतरतीब शहरीकरण, अंध औद्योगीकरण और संचार क्रांति के इस दौर में गौरैया अब बहुत कम दिखती है। शायद इसीलिए घरों से वह नैसर्गिक संगीत लुप्त होता जा रहा है जो हमारे अहसास की जड़ों को सींचा करता था। कहते हैं कि गौरैया से खूबसूरत और मुखर आंखें किसी भी पक्षी की नहीं होती। जब कभी भी गौरैया की मासूम आंखों में झांककर देखता हूं, मुझे अपनी मरहूमा मां याद आती है। लगता है, देह बदल कर वह मेरे करीब ही है। जगाती हुई, सुलाती हुई, पुचकारती हुई और हिदायतें देती हुई। एक भरोसा जगाती हुई कि अगर देखने को दो गीली आंखें और महसूस करने को एक धडक़ता हुआ दिल है तो बहुत सारी निर्ममता और क्रूरताओं के बीच भी पृथ्वी पर हर कहीं मौजूद है मां, ममता, प्यार और भोलापन! ‘विश्व गौरैया दिवस’ की आप सबको बधाई। आईए गौरैया को बचाएं। पृथ्वी पर मासूमियत को बचाएं !