-डॉ. आर.के. पालीवाल
डोनाल्ड ट्रंप ने जब से अमेरिका के राष्ट्रपति का पद संभाला है तब से लगभग हर दिन वह अपने बयानों से कोई नया विवाद खड़ा कर रहे हैं। विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र और विश्व के सुपर पावर नंबर वन देश के लिए यह कतई अच्छा संकेत नहीं है कि उसका राष्ट्रपति विश्व बंधुत्व बढ़ाने और बड़ा दिल दिखाने के बजाय अपने से कमजोर राष्ट्रों को तरह तरह की धमकी दे। शुरू शुरू में अधिकांश देश इसे ट्रंप की जीत का प्रारंभिक खुमार समझकर रफा दफा कर रहे थे लेकिन जब ट्रंप ने लगातार एक के बाद एक आदेश जारी करने शुरू किए और किसी न किसी देश को आए दिन धमकी देने के अंदाज में बयानबाजी जारी रखी तो प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ छोटे देश भी अपनी अपनी तरह से अपनी अपनी क्षमतानुसार विरोध दर्ज कर रहे हैं। चाहे ट्रंप का कनाडा को संयुक्त राज्य अमेरिका के एक राज्य के रूप में मिलाने वाला निहायत गैर जिम्मेदार बयान हो जो किसी देश की संप्रभुता के खिलाफ जाता है, या यूक्रेन के राष्ट्रपति के साथ व्हाइट हाउस में हुई बेहूदा बहस इससे अमेरिका की छवि दागदार हो रही है।
जहां तक भारत का प्रश्न है, हम कहां खड़े हैं, यह हमारी सरकार की तरफ से साफ नहीं हो पा रहा। हमारे प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के बाद भी कोई उस तरह का बड़ा बयान नहीं आया जैसा अक्सर प्रधानमंत्री की यात्राओं के बाद अमूमन आता है। ऐसा संभवत: इसलिए भी है कि ट्रंप की बयानबाजी को देखते हुए कोई भी आश्वस्त नहीं है कि उनके फैसलों का ऊंट कब किस करवट बैठेगा। पारदर्शिता के अभाव में विविध कयास लगाए जा रहे हैं। पारदर्शिता अफवाहों का स्रोत बंद कर सकती है और पारदर्शिता का अभाव अफवाहों का चारागाह बन जाता है।अमेरिका में इस समय कुछ ऐसा ही माहौल है जिसमें कुछ भी ठीक ठीक कह पाना मुश्किल है। जिस तरह से ट्रंप ने अमेरिका में अवैध रूप से घुसे भारत के नागरिकों को हथकड़ी और बेडिय़ों में जकड़ कर सेना के विमान मे भेड़ बकरियों की तरह ठूंसकर भेजा है वह दर्शाता है कि ट्रंप प्रशासन भारत को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहा क्योंकि रूस और चीन के नागरिकों के साथ वह ऐसा अमानवीय व्यवहार नहीं कर रहा। अवैध रूप से रहने वाले भारतीय नागरिकों को बाइडेन प्रशासन ने भी वापिस भेजा था लेकिन उसमें शालीनता थी। उन्होंने चार्टर्ड प्लेन से लोगों को भेजा था और प्रचार के लिए कैदियों का फोटो शूट नहीं कराया था जिस तरह ट्रंप प्रशासन करा रहा है। ऐसी पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा से यह उम्मीद जगी थी कि इस मामले को प्रधानमंत्री द्विपक्षीय वार्ता में जोर शोर से उठाएंगे क्योंकि इस मुद्दे पर विपक्षी दल भी सरकार पर धारदार हमले कर रहे हैं कि हम कैसे विश्व गुरु हैं जिनके नागरिकों को अमेरिका इस तरह ट्रीट कर रहा है। किसी सरकार के लिए शर्मनाक तो यह भी है कि उसके नागरिकों को विकसित देशों में अवैध रूप से घुसपैठ करनी पड़ रही है और उन्हें वहां चूहों की तरह छिपकर रहना पड़ता है। इसका सीधा अर्थ है कि हमने अपने यहां नागरिकों के लिए न ठीक से रोजगार जुटाए और न अच्छा माहौल पैदा किया।यदि हमने फ्री राशन की जगह रोजगार सृजन को महत्व दिया होता तो इतनी बड़ी संख्या में लोग अमेरिका और यूरोप, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में नहीं जाते।
संभव है कि अवैध रूप से रहने वाले भारतीयों की बड़ी संख्या कनाडा और मैक्सिको में भी हो जो अमेरिका जाने की फिराक में सीमा पार कराने वाले गिरोहों के चंगुल में फंसे हैं। इसी तरह यूरोपीय देशों में भी कुछ भारतीय हो सकते हैं।सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने सभी नागरिकों की सम्मान के साथ वापसी करे और देश में ऐसा माहौल बनाए कि भविष्य में हमारे नागरिकों को इस तरह छिप-छिपकर विदेश में घुसपैठ न करनी पड़े। जिस तरह कई देश अमेरिका को उसकी भाषा में जवाब दे रहे हैं हमें भी ट्रंप के गलत फैसलों का पुरजोर विरोध करना चाहिए।