होली की दो दिन की छुट्टी के बाद आज निकलने जा रहे अखबार के लिए संपादकीय के मुद्दों की भरमार है, लेकिन हम एक कम दिलचस्प लगने वाले मुद्दे पर लिखना चाहते हैं जिससे कि किसी भी प्रदेश में लोगों की जिंदगियां बच सकती हैं। पिछले दो-तीन दिनों में छत्तीसगढ़ में जितने किस्म के सडक़ हादसे देखने मिले हैं, उनसे दिल दहल जाता है। सडक़ पर मरने वाले हर कोई कुसूरवार रहे हों यह जरूरी नहीं है, दो गाडिय़ों के एक्सीडेंट में किसी एक गाड़ी की गलती भी हो सकती है, और दूसरी गाड़ी चलाने, या उस पर चलने वाले लोग बेकसूर हो सकते हैं। खासकर जब सडक़ों की हालत लगातार सुधरती चली गई है, गाडिय़ां अंधाधुंध तेज रफ्तार हो गई हैं, लोग सत्ता या ताकत के अहंकार में गाड़ी के इंजन के हॉर्सपॉवर की ताकत अपनी बददिमागी में जोडक़र गाडिय़ां चलाने लगे हैं, तो सडक़ें सुरक्षित नहीं रह गई हैं। जिसके पास राजनीति, सरकार, न्यायपालिका, या मीडिया का बाहुबल है, या पैसों की ताकत है जिससे कि ऊपर की चारों चीजों पर असर डाला जा सकता है, तो फिर हॉर्सपॉवर पर सवार ऐसे लोगों पर उनका अपना ही कोई काबू नहीं रह जाता।
जिस अंदाज में छत्तीसगढ़ में लोग सडक़ों पर लापरवाह हैं, या बदमिजाजी से सडक़ों को रौंदते हुए गाडिय़ां दौड़ाते हैं, उनमें कोई भी सुरक्षित नहीं हैं। लोग सत्ता और ताकत से परे भी नशे में डूबे हुए गाडिय़ां चला रहे हैं, और उनकी अंधाधुंध रफ्तार पर लगाम लगाने को मानो कोई नहीं है। राजधानी रायपुर में ही रोज दसियों हजार लोग नशा करके गाड़ी चलाते होंगे, और उनमें से कुछ दर्जन के चालान होते हैं। जिनके पास चालान पटाने को अंधाधुंध पैसा है, या चालान फाडक़र फेंक देने की राजनीतिक ताकत है, उन्हें कौन सुधार सकते हैं? नतीजा यह होता है कि सडक़ों पर जो मामूली लोग नियम-कायदे से चलते हैं, उनकी भी जिंदगी पूरी की पूरी खतरे में रहती है। इस खतरे के अनुपात में सरकार का उसे रोकने का कोई इंतजाम नहीं है। गाडिय़ों पर नजर रखने के लिए जो सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिए, उतना सस्ता इंतजाम भी सरकार समय रहते नहीं कर रही है। और गाडिय़ों की रफ्तार नापने के जो आसान उपकरण पूरी दुनिया में इस्तेमाल हो रहे हैं, उनको भी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। नतीजा यह हो रहा है कि लोगों की आदत ही ट्रैफिक नियम तोडऩे की होती चल रही है, और वक्त के साथ वह मजबूत भी होती जाती है।
जिस प्रदेश में मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, और डीजीपी बैठकें लेकर बार-बार सडक़ सुरक्षा की बात कहते हैं, उसके बाद भी उस पर अमल न होने की भला क्या वजह हो सकती है? अब तो जिस विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनी है, उस सरकार के आने के बाद लोकसभा और पंचायत-म्युनिसिपल चुनाव भी हो चुके हैं, और अब तो अगले करीब साढ़े तीन बरस वोटरों से दहशत खाने की कोई वजह भी सरकार के पास नहीं रह गई है। सरकार खुद केन्द्र सरकार के बनाए हुए सडक़ सुरक्षा नियमों पर अमल नहीं कर रही, सुप्रीम कोर्ट के कड़े फैसले और हाईकोर्ट की बार-बार की चेतावनी को भी अनदेखा कर रही है, और बिना किसी वजह से लोगों में अराजकता बढऩे दे रही है। यह हाल छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से हर सरकार का रहा, किसी सरकार ने अपने अफसरों को ट्रैफिक सुधारने का मौका ही नहीं दिया। नतीजा यह है कि गाडिय़ां चलाने वालों की एक पूरी पीढ़ी ऐसी आ गई है जिसने अपने बड़े लोगों को सडक़ों पर अराजकता से चलते देखा हुआ है, और वही सीखा हुआ है।
सडक़ों पर अराजकता बढऩे देने का कोई हक किसी सरकार को नहीं हो सकता क्योंकि इससे नियम-कायदा मानकर चलने वाले आम नागरिकों के हक मारे जाते हैं, और उनकी जिंदगी भी खतरे में पड़ती है। किसी सरकार को भला यह हक कैसे हो सकता है कि वह नियम मानने वाले लोगों की जिंदगी पर नियम तोडऩे वालों को खतरा बनने दे? सडक़ों पर ट्रैफिक को सुरक्षित कैसे बनाया जाए, इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने बहुत लंबे-चौड़े निर्देश दिए हुए हैं, जिन्हें मानना हर राज्य के लिए जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को यह जिम्मेदारी भी दी है कि वे अदालती फैसले पर अमल करवाएं। लेकिन बार-बार की नोटिस के बाद भी सरकार जिस बेफिक्री के साथ सडक़-नियम तोडऩे वालों के साथ दिखती है, वह हक्का-बक्का करता है। सिर्फ दिखावे के लिए, प्रतीकात्मक, और हांडी के चावल के एक दाने को निकालकर बाकी चावल पके होने का सुबूत पेश करने की तरह दस-बीस हजार लोगों में से किसी एक का चालान कार्रवाई के सुबूत की तरह पेश किया जाता है। यह आज की अराजक नौबत में जरूरी हो चुके इंजेक्शन लगाने की जगह उसकी दवाई को पूरे शहर की पानी सप्लाई में डाल देने जैसा है जिसका कि असर किसी पर कुछ भी नहीं पड़ेगा। यह किसी के मुंह में ड्रॉपर से एक ड्रॉप चाय डाल देने सरीखा है जिसका कि कोई स्वाद भी नहीं आएगा।
आज जब बहुत अच्छी रिकॉर्डिंग करने वाले कैमरों का इस्तेमाल हो रहा है, गाडिय़ों की रफ्तार पकडऩे और उनके चालान बनाने के उपकरण मौजूद हैं, तब सरकार की ढीली-ढाली नीयत जनता की जिंदगी खत्म कर रही है। यह भी याद रखने की जरूरत है कि जब अराजकता आसमान तक पहुंच जाती है, तो उसे धरती पर लाना बहुत आसान भी नहीं रहता। नशे में धुत्त जो लोग एक्सीडेंट करते हैं, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई, उनकी गाडिय़ां जब्त करने, ड्राइविंग लाइसेंस खत्म करने के बजाय मामूली चालान और जुर्माने से काम कैसे चल जाता है, यह भी लोगों को समझ आता है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को चाहिए कि राज्य में सडक़ों पर रोज हो रही मौतों को रोकने के लिए नियम तोडऩे वाले सौ फीसदी लोगों पर सबसे कड़ी कार्रवाई करने का हुक्म दें। प्रदेश की आम जनता का इतना तो हक है ही।